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Parul Sharma
Father नन्हे कदमों को चलना सिखाया उँगली पकड़कर जहाँ दिखाया तुमने दी अभिव्यक्ति तुमसे बनी जीवन कृति कभी फटकारा कभी दुलारा जीवन का हर पाठ पढ़ाया अपना सुख चैन नींद गवाँ कर हमारा हर सपना सजाया तपती धूप में छाँव हो इस नन्हें पौधे की जाँन हो बढ़ते कदमों के लिये जमीं मेरी बुलंदी के लिये आँसमान हो छोटे से आशियाने की हो आत्मा इस जहाँ के हो परमात्मा पहले गुरू पहले मित्र आपने दिखाई मुझे मंजिल बचपन, यौवन या जरा कोई न ले पाया आपकी जगह इस दुनियाँ में सबसे प्यारे हैं मेरे पापा पारुल शर्मा नन्हे कदमों को चलना सिखाया उँगली पकड़कर जहाँ दिखाया तुमने दी अभिव्यक्ति तुमसे बनी जीवन कृति कभी फटकारा कभी दुलारा जीवन का हर पाठ पढ़ाया अपन
Yogyata Sharma
शिक्षक (Read caption) कलम थमा कर लिखना सिखाया है, नई नई चीजे सीखा कर आगे बढ़ाया है, जब माँ का हाथ छोड़ कही जाना न चाहते थे, तब हाथ पकड़ कर अपना रास्ता चुनना सिखाया ह
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी, गुज़रे सब सालों की फसल बरबाद लगी| एक-एक करके सारा वक्त लूट लिया सबने, रिश्तों की ज़िम्मेदारियाँ लालची दामाद लगी| जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी… शहर की रोशन सड़कों में तन्हाई का बसेरा है, हमें मोहल्लों की स्याह गलियां आबाद लगी| जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी… बूढ़े बाप ने जवान बेटों को फटकारा जब, मेरे कानों को उसकी हुंकार फरयाद लगी| जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी… हकीकत के पिंजरे में होसला टूट जाता है, मुझे तो ख्वाबों की दुनिया ही आज़ाद लगी| जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी… ये सच है की दुआओं का असर हुआ मगर, ये भी हुआ के दुआ मेरे गिरने के बाद लगी| जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी… एक नहीं सैकड़ों को देखा है मैंने ‘अंकुर’, हम जैसों की दुनिया में बहुत तदाद लगी| जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी… जिंदिगी को चख कर देखा तो बेस्वाद लगी, गुज़रे सब सालों की फसल बरबाद लगी| एक-एक करके सारा वक्त लूट लिया सबने, रिश्तों की ज़िम्मेदारियाँ लालची द
Divya Joshi
मेरा क्या कसूर एक झलक ©Divya Joshi "माँ कैसी है दीदी?" माँ की इतनी चिंता होती तो ऐसा कदम उठाती तुम? मैने फटकारा। "फौरन घर आजाओ। सब तुम्हारी बात मान गए हैं।" "ये किसने कहा आप
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma