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Singer Chandradeep Lal Yadav
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।। रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान । अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।। कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात । रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।। रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल । एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।। अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात । समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।। नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज । करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।। उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण । रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।। जो कुछ जीवन में मिला , बाबा तेरा प्यार । व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।। हृदय स्मृतियों में चले , बचपन के वह काल । हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।। जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार । कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।। जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल । एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।। बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल । कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती
Arvind Kumar Yadav
Ravendra
bhim ka लाडला official
Mamta Singh
आप सभी को विश्व कविता दिवस कि हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹 अनुशीर्षक में पढ़े 🙏 ©Mamta Singh #WritersSpecial कविता ये हैं क्या!! चंद शब्दों,या कुछ पंक्तियों का समूह। या किसी विरहनी के अंतर्मन से निकली व्यथा। किसी भक्त के वाणी से निकल