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theABHAYSINGH_BIPIN
राहों की खोज चलते रहिए आगे, बढ़ते रहिए आगे, कहीं तो मक़ान होगा, कहीं तो मंज़िल होगी। मिलते रहिए अपनों से, मिलते रहिए गैरों से, कहीं तो एहसास होगा, कहीं तो पहचान होगी। हाथ बढ़ाते रहिए, हिम्मत बढ़ाते रहिए, कहीं तो पुकार होगी, कहीं तो सांस होगी। लड़ते रहिए अंधेरों से, लड़ते रहिए धुंध-कोहरे से, कहीं तो आसमान होगा, कहीं तो रोशनी होगी। सदैव बढ़ते रहिए, चौकस रहिए हर वक्त, कहीं तो लकीर होगी, कहीं तो नज़र होगी। डरना क्यों है दोपहरी से, उत्साह भरते रहिए, कहीं तो धूप होगी, कहीं तो छांव होगी। अग्रसर रहिए जलधारा में, थमने न पाए विजयी रथ, कहीं तो मिट्टी होगी, कहीं तो पत्थर होगी। साधते रहिए हिम्मत, सौर्य के गीत भी गाते रहिए, कहीं तो सफ़लता होगी, कहीं तो विजयी होगी। ©theABHAYSINGH_BIPIN #walkingalone राहों की खोज चलते रहिए आगे, बढ़ते रहिए आगे, कहीं तो मक़ान होगा, कहीं तो मंज़िल होगी।
#walkingalone राहों की खोज चलते रहिए आगे, बढ़ते रहिए आगे, कहीं तो मक़ान होगा, कहीं तो मंज़िल होगी।
read mores गोल्डी
घने कोहरे में सुबह का ये पहर... चाय संग तुम्हारे पुराने मैसेजेस और बैकग्राउंड में बजता.... ... ... "बहुत आयी गयीं यादें मगर इस बार तुम्हीं आना" 💞 ©s गोल्डी घने कोहरे में सुबह का ये पहर... चाय संग तुम्हारे पुराने मैसेजेस और बैकग्राउंड में बजता.... ... ... "बहुत आयी गयीं यादें मगर इस बार तुम्हीं आ
घने कोहरे में सुबह का ये पहर... चाय संग तुम्हारे पुराने मैसेजेस और बैकग्राउंड में बजता.... ... ... "बहुत आयी गयीं यादें मगर इस बार तुम्हीं आ
read morePoet Kuldeep Singh Ruhela
Unsplash ओढ़कर चादर कोहरे की देखो जनवरी आ गई प्यार के उमंगों को जवान बनाने की देखो आज घड़ी आ गई ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #snow ओढ़कर चादर कोहरे की देखो जनवरी आ गई प्यार के उमंगों को जवान बनाने की देखो आज घड़ी आ गई
#snow ओढ़कर चादर कोहरे की देखो जनवरी आ गई प्यार के उमंगों को जवान बनाने की देखो आज घड़ी आ गई
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कौन है जो सूरज को धमका रहा, कोहरे का जाल यूं फैला रहा? क्यों उजाले को निगलने चला, सांसों तक को ठंडा बना रहा? ठंड में अब पानी भी डरा रहा, खुद को भाप में बदल रहा। किसको यह कारीगरी सूझी है, जो प्रकृति पर कहर ढा रहा? कौन है जो चुराने चला, जो इतनी जल्दी दिन ढल रहा? समय को घेरने वाला कौन, जो हर पल को सर्दी में ढल रहा? उतार दिया है काम का बोझ, काम छोड़ खुद को गर्म कर रहा। सर्दी से ठिठुर गए हैं सारे, इंसान बैठा अलाव जला रहा। निकले ही हाथ-पैर हो गए सुन्न, हवा में ऐसी नमी छोड़ रहा। अब तो पानी पीना भी मुश्किल है, कौन है जो बर्फ से पानी भिगो रहा? ©theABHAYSINGH_BIPIN कौन है जो सूरज को धमका रहा, कोहरे का जाल यूं फैला रहा? क्यों उजाले को निगलने चला, सांसों तक को ठंडा बना रहा? ठंड में अब पानी भी डरा रहा, खु
कौन है जो सूरज को धमका रहा, कोहरे का जाल यूं फैला रहा? क्यों उजाले को निगलने चला, सांसों तक को ठंडा बना रहा? ठंड में अब पानी भी डरा रहा, खु
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कोहरे से ठिठुर गया है सूरज दिखता नहीं कहीं भी मुहूर्त। छाई है काली घटा सी धुंध, धरती ढकी बर्फ की चादर में। हाथ-पैर अब जमने लगे हैं, सर्दी ने रोका हर काम। हिम्मत भी थरथर कांप उठी, लिपटे हम गर्म चादर में। उठकर मुंह धुलना भी दुश्वार है, किसने बर्फ डाल दी पानी में? कौन है जो यूं कहर ढा रहा, पूरे गांव को कैद किया है घर में? राह अंधेरी, जमी हुई है, थोड़ी उम्मीद बची है मन में। चलता हूं बस सहारे इसके, जो दिख रहा टॉर्च की रोशनी में। शिथिल पड़े हैं मेरे जज्बात, आलस ने ले लिया गिरफ्त में। यह कैसा दिन, एक पल न सुहा, सिकुड़ा पड़ा हूं एक चादर में। हर कदम जैसे थम सा रहा, जीवन को ढो रहा धुंध में। क्या कभी सूरज की रौशनी लौटेगी, या मैं यूं ही खो जाऊं रजाई में? ©theABHAYSINGH_BIPIN #coldwinter कोहरे से ठिठुर गया है सूरज दिखता नहीं कहीं भी मुहूर्त। छाई है काली घटा सी धुंध, धरती ढकी बर्फ की चादर में। हाथ-पैर अब जमने लगे
#coldwinter कोहरे से ठिठुर गया है सूरज दिखता नहीं कहीं भी मुहूर्त। छाई है काली घटा सी धुंध, धरती ढकी बर्फ की चादर में। हाथ-पैर अब जमने लगे
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