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Priya Kumari Niharika
शीर्षक: लालफीताशाही से दरख्वास्त निष्पक्ष विचारों का प्रवाह एकत्व रुधिर के कण-कण में सहयोग का ढूंढो एक वजह दृढ़ निश्चय हो अंतर्मन में बिन मौसम तुम बरसात बनो लाचारों के ख्यालात बनो हर ओर निराशा हाथ लगे उत्थान की तुम सौगात बनो जज्बातों में ना उलझो तुम अपने तर्कों से सहमत हो हाथों से तेरे मुफलिस के निर्मित आशाओं का छत हो भीषण संकट की ढाल बनो डंके की चोट की ताल बनो मानव की रक्षा हेतु तुम धरती मैया के लाल बनो समझो जन-जन की पीड़ा तुम समाधान करो हर संकट का लहरों से तुम अब डरो नहीं शक्ति समझो तुम कंकट का ऊपरी सतह की सत्ता के भय से ना तू रुक पाना अब विकसित तू करना राष्ट्र स्वयं अवरुद्ध न होंगी रहे तब अपनी सत्ता के नीचे की,हर सतह संवारो हाथो से विकास नहीं आता , समझे...... नारे लगते हैं बातों से ©verma priya शीर्षक: लालफीताशाही से दरख्वास्त निष्पक्ष विचारों का प्रवाह एकत्व रुधिर के कण-कण में सहयोग का ढूंढो एक वजह दृढ़ निश्चय हो अंतर्मन में
भाग्य श्री बैरागी
"भारतीय होली में 'प्राकृतिक विविधता' ने भी भाग लिया है, अपने रंग लिए, पानी लिए प्रकृति ने भी भंग जमके पिया है।" कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें Team 24 रंगीला हिंदुस्तान के सदस्यों के लिए होली के हमजोली प्रतियोगिता के पांचवें दिन का विषय है -रंगीला हिंदुस्तान आप सबको इसमें बताना है
Vibha Katare
बचपन की यादें.. लातूर ( महाराष्ट्र) में आए भूकंप की... पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें 🙏 ईश्वर की यह बड़ी कृपा है मुझ पर अभी तक कि मैं किसी प्राकृतिक आपदा से दो-चार नहीं हुई हूँ अभी तक ,वरन ज़िन्दगी के कई महत्वपूर्ण दौर पार कर चुकी
joshi joshi diljala
आओ तुम्हें में द्वापर की एक कथा सुनाता हूं| एक अद्भुत बालक था उसकी कथा सुनाता हूं| अभिमन्यु मां के पेट में ही उसने चक्रव्यू को तोड़ना सीख लिया बाहर निकलना छोड़ो उसने दिलों को जीतना सीख लिया मौत नाच रही थी संघ चक्रव्यू के घेरे में तीर तलवार पड़े थे सोच में हम आ गए किसके फेरे में हथियार सिसक रही थी जब उसके तन को छूते थे धरती अंबर भी देख देख चुपके-चुपके रोते थे जख्म बुलाते थे अपनों को कोई तो मरहम लाएं जान जानी है तो जाए पर सूर्य छिपने तक रुक जाए जब पीड़ा हद से गुजरने लगी धरती मैया फटने लगी जिस्म के टुकड़े टुकड़े हो गए फिर भी वह लड़ता रहा कौरवों के सीने पर जैसे कोई खंजर चलता रहा कॉल खड़ा था सर पर पराक्रम देख रोता रहा अन्याय इस धरती पर सदियों से होता रहा हाथ जोड़ ऊपर वाले से और यही कहता रहा यह बालक अद्भुत है भगवान हार नहीं मानेगा कि नहीं चलेंगे तो रथ का पहिया भी निकालेगा रक्त का दरिया देख करण बली रोने लगा अपने बेटे के जख्मों पर दुआओं का मरहम रखने लगा फिर कायर दुर्योधन ने ऐसा आदेश दिया एक नियति बालक पर छे छे लोगों ने वार किया दिल का दर्द करण बली से जब बर्दाश्त नहीं हुआ फिर अपनी तलवार कारों के बेटे की तरफ मोड़ दिया मार कटारी बेटे को खुद सीने से लगाया है| हे ऊपर वाले कैसी तेरी लीला कैसी तेरी माया है अब पिता ने बेटे को आदेश दिया अभिमन्यु तो अभिमन्यु था आदेश स्वीकार किया और अभिमन्यु बोला मेरे पिता से कहना और मैंने रणभूमि में सब को परास्त किया हां पुत्र तुझ अर्जुन को नहीं मुझको भी नाज है आज के बाद जब भी कोई इतिहास दौर आएगा अर्जुन करण से पहले वीर अभिमन्यु का नाम आएगा पुत्र हम श्रेष्ठ रह गए दोनों और तुम सर्वश्रेष्ठ हो गए और पुत्र अब तुम शांत हो जाओ महाबली की आंखों में अभिमन्यु ने देख दम तोड़ दिया|........................... करण सा दानी अभिमन्यु सा बिर नहीं होगा| होने को कुछ भी हो सकता है झूठे संसार में| अब कोई महाभारत होगा इस पूरे संसार में| जोशी इस कथा से बुराइयों का मरण होगा| ©joshi joshi diljala आओ तुम्हें में द्वापर की एक कथा सुनाता हूं| एक अद्भुत बालक था उसकी कथा सुनाता हूं| अभिमन्यु मां के पेट में ही उसने चक्रव्यू को त
Anamika Nautiyal
टीम रंगीला हिंदुस्तान की अंतिम दिन की रचना अनु शीर्षक में पढ़ें Dedicating a #testimonial to कोरा काग़ज़ ™️ टीम 24- रंगीला हिंदुस्तान team captain -Anamika Nautiyal Team captain :- Anamika Nautiyal
माधुरी"मुस्कान"शर्मा
विनती है द्वार मैया करो बेड़ा पार मैया, बिटिया के मन की भी सुन लो पुकार माँ। घट घट वासी दाती दर्शन दे दो मुझे, अपनी शरण लेलो करो बेड़ापार माँ।। मात आदिशक्ति आप आप भव तारिणी हो, फंसी देखो नाव मेरी बीच मझधार माँ।। निज कामना को लिए भटकी हूँ द्वार द्वार, आई हूँ शरण मेरा कर दो उद्धार माँ।। ©माधुरी"मुस्कान"शर्मा मैया
संजय श्रीवास्तव
छठ पर्व हर साल आता है माँ तुम भी आओ न देखो न बाजार में आ गये हैं गन्ना केला नींबू अन्नानास अरसा का पत्ता सब है माँ मैने गेहूं भी साफ कर छत पर डाल दिया है और बैठा हूँ डंडा लेकर जैसे तुम बैठती थी जूठा न कर दे कोई पक्षी तुम आ जाती मां दऊरा में प्रसाद भरने मुझे ही तो लेकर जाना है घाट पर नंगे पांव पैदल मां तुम कब आओगी वो देखो सूरज भगवान निकलने वाले है आसमान रक्तिम आभा लिये दस्तक दे रहा है अर्घय देने का पल आ गया सब तो हैं बस तुम नही हो माँ। संजय श्रीवास्तव छठ मैया