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Mohit Kumar Goyal
दरख्तों से ताल्लुक का हुनर सीख ले इंसान,, जड़ों में ज़ख्म लगता हैं, टहनियाँ सूख जाती हैं... ©Mohit Kumar Goyal दरख्तों से ताल्लुक का हुनर सीख ले इंसान,, जड़ों में ज़ख्म लगता हैं, टहनियाँ सूख जाती हैं... #MoonBehindTree
Sneh_Mehta💕
ताल्लुक़ का हुनर, कोई दरख़्तों से सीखें, जड़ों में ज़ख़्म लगते ही , टहनियाँ सूख जाती हैं.... ताल्लुक़ का हुनर कोई दरख़्तों से सीखें, जड़ों में ज़ख़्म लगते ही टहनियाँ सूख जाती हैं... #sneh
Mohammad Ibraheem Sultan Mirza
कटी हुई टहनियाँ भी क्या कहीं छाँव देती है, हद से ज़्यादा उम्मीदें तो हमेशा ही घाव देती है, मौहम्मद इब्राहीम सुल्तान मिर्जा, कटी हुई टहनियाँ भी क्या कहीं छाँव देती है... हद से ज़्यादा उम्मीदें तो हमेशा ही घाव देती है...
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} कटी हुई टहनियाँ भी कहाँ छाँव देती है, हद से ज्यादा उमीदें हमेसा घाव ही देती है! ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} कटी हुई टहनियाँ भी कहाँ छाँव देती है, हद से ज्यादा उमीदें हमेसा घाव ही देती है!
Ashish 9917374450
Shivani mehra
Anjali Bhanushali
My First Story ..✍ Plz Ek Bar Zaroor Padhe..✍ ------------------------------------------------ माता-पिता तुल्य वृक्ष एवँ उसकी सन्तान ------------------------------------------------ #NojotoQuote ------------------------------------------------ माता-पिता तुल्य वृक्ष एवँ उसकी सन्तान ------------------------------------------------
Vedantika
जीवन देते वृक्ष को पोषण देती, मिट्टी उसकी माँ ही है। वृक्ष की टहनियाँ कली संभाले, टहनी कली की माँ ही है। कली एक पुष्प को जन्मे, कली पुष्प की माँ ही है। पंछी की उड़ान संग उड़े जो, हवा भी पंछी की माँ ही है। सूरज को जो ठंडा कर दे, दुनिया की हर माँ ही है। हवा की लहर बन जो मन महकाये, ओस की ठंडी फुहारें माँ ही है। (Read in Caption) Day:10 जीवन देते वृक्ष को पोषण देती, मिट्टी उसकी माँ ही है। वृक्ष की टहनियाँ कली संभाले, टहनी कली की माँ ही है।
CalmKazi
//पतन// रोज़ की धूप को अपने पर सहता, एक पेड़ राहगीरों को छांव देता। उस पेड़ पर अनेक थी टहनियाँ नयी पुरानी, एक जवान थी कोंपल जिसे मानते सब सयानी। वो सवालों और बातों के बीच बड़ी हुई और धूप सेंकतीं ज़मीन को देखती रही। एक रोज़ वो बोल पड़ी अपने तने से “कुछ कर गुज़रती मैं भी ज़मीन से, आते जाते सब राहतों की ख़ैर देते हैं हम भी वहाँ जा कर कुछ कह लेते हैं” उसने बनायी साँठ गाँठ अपनी टहनी से बोली तूफ़ान में उड़ चलते हैं जल्दी से। बहुत इंतज़ार बाद आयी वो हवा बूढ़ी टहनी का जिसने साथ दिया। बेफ़िक्र हो गिरी शहतूत से वो पत्ती ज़माने को दिलचस्पी, टहनियों में थी। धरती के गर्भ में उसके जाने का अलग क़िस्सा है शायद वो किसी तने का हिस्सा है। Part 5 of गाथा-ए-दरख़्त Click on #GathaEDarakht for more parts. //पतन// रोज़ की धूप को अपने पर सहता, एक पेड़ राहगीरों को छांव देता।