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Ravendra
Ravendra
कमलेश मिश्र
*कालिदास* उसी डाल को काट रहे हैं,देखो बैठे कालिदास। जिनसे विश्व लगाए बैठा, है सेवा की पूरी आस। माता पिता बड़ा करते हैं, जिन्हें काटकर अपना पेट। जिनके द्वारा बने हुए हैं, आज पुत्रगण भारी सेठ। उनकी जरा अवस्था में भी,नहीं लगाते उनको पास। उसी डाल को काट-----। जिन्हें पिता ने ऋण लेकर भी,अच्छी शिक्षा दिलवाई। वक्त पड़ा तो भूल गए सब,पीठ उन्होंने दिखलाई। बूढ़े बापू को मिलता है, अपने बच्चों से ही त्रास। उसी डाल को काट-----। मातृ पितृ ऋण चुका न पाए,देवों का आभार नहीं। वे समाज को क्या देंगे,जिन्हें परिवारों से प्यार नहीं। बीवी बच्चों से बढ़कर उन्हें,कुछ भी दिखता नहीं खास। उसी डाल को काट ------। सेवा के हित करें नौकरी, सेवकपन का नाम नहीं। बिन रिश्वत के होता अब, दफ्तर में कोई काम नहीं। मलिक जैसा रौब दिखाते, बतलाते अपने को दास। उसी डाल को काट-----। जनता के सेवक बनकर जो,हाथ जोड़कर मांगें वोट। मालिक बन जाने पर उनके,गद्दों में भी निकलें नोट। अपनी जेबें भरते उनसे, नहीं देश को कोई आस। उसी डाल को काट-----। उसी डाल को काट रहे हैं देखो बैठे कालिदास।। ©कमलेश मिश्र महाकवि कालिदास.....
Anjali Jain
विवेकानंद स्मारक से ©Anjali Jain विवेकानंद स्मारक से 15.07.23 9.23pm
Ravendra
रिंकी✍️
पप्पू पास हो गया 👇 कविता अनुशीर्षक में पढ़े नोवी कक्षा में नौ बार फेल होने के बाद सब बदहवास हो गए इस बार न जाने कैसे पप्पू पास हो गया खबर सुनते ही सारे देखते रहे उसे नैन फाड़े अपने
यशवंत कुमार
हमारा वहम Read full poetry in caption हमारा वहम क्या रह जाएगा तेरे जाने के बाद? क्या रह जाएगा मेरे जाने के बाद? बस कुछ यादें, कुछ और भी क्या? उन यादों को भी कौन संभालेगा? और आख़
AK__Alfaaz..
सत्य, तन पर, इतिहास के, चीथड़े लपेटे, मिट्टी में पड़़ा, एक ओर कराह रहा था, विश्वास भी, अपनी प्रेयसी आस के संग, थोड़ी ही दूर, सभ्यता की, कटार से घायल हो, भूमि पर लहूलुहान पड़ा था, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #गृह_युद्ध सत्य, तन पर, इतिहास के, चीथड़े लपेटे,