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Abhishek Choudhary Sanskrit
प्रात: दन्तधावनङ्कृत्वा, स्वजनकञ्जननीञ्च नत्वा। ततश्च भगवत्भजनङ्गीत्वा, मनसा कार्यम् अध्ययनम्।। प्रात: दांतों की सफाई करके(Brush) अपने माता-पिता को नमन करके भगवान का भजन गाकर तत्पश्चात् मन लगाकर अध्ययन करना चाहिए। पौष्टिकमल्पाहारं भुक्त्वा, विद्यालयाय सज्जो भूत्वा। समये विद्यालयम् आप्त्वा, मनसा कार्यम् अध्ययनम्।। पौष्टिक अल्पाहार करके विद्यालय हेतु तैयार होकर समय से विद्यालय पहुंच कर तत्पश्चात् मन लगाकर अध्ययन करना चाहिए । सन्ध्याकाले क्रीडित्वा, दूरदर्शनमीक्षित्वा। अग्रजैस्सह वार्ताङ्कृत्वा, मनसा कार्यम् अध्ययनम्।। सायंकाल में खेल-कूद करके दूरदर्शन देखकर बड़ों के साथ वार्तालाप करके तत्पश्चात् मन लगाकर अध्ययन करना चाहिए। कवि:- अभिषेककुमार ©Abhishek Choudhary Sanskrit #Books
#Nikita kour
प्यारी जिंदगी मैंने खुद अनुभव की है जिन्दगी को करीब से परेशानियों से थके ओर परेशानियों में दबे लोगो को , उनके पास भीड़- वाली गैदरिंग तो हैं, लेकिन उनके करीब कोई नहीं होता है जो उनके मन के भारीपन की थकान को दूर कर सके सिर्फ बीयर की बोतलें होती है जो उनके परेशानियों को दबा दे , ©#Nikita kour #Nikita kour
Rakhi Saroj
किताबों से अब इश्क ज्ञान के लिए नहीं बस तस्वीरें शेयर होने तलक का रह गया है। ©Rakhi Saroj #Books
#Nikita kour
दूसरे लोग मेरे काम से संतुष्ट हो सकते हैं, लेकिन मैं तब तक संतुष्ट नहीं होऊंगा जब तक मैं अपने काम में पूर्णता नहीं लाऊंगा। ©#Nikita kour #poetry Nikita kour
#Nikita kour
आज मैं एक कॉफी शॉप में बैठा थी एक लड़की मेरे पास आई, वह पेन बेच रही थी और मुझसे कहा एक पेन खरीद लो , मेरी एक सबसे अच्छी दोस्त मेरे सामने बैठी थी, उसने मुझे बताया कि पेन बहुत गंदा है ओर्र मुझे भी ऐसा लगा कि उसने इस कलम को कूड़ेदान से ही उठाया है, लेकिन मेरे लिए यह मायने नहीं रखता, क्योंकि मुझे नहीं पता कि उसे किस महत्वपूर्ण काम के लिए पेन बेचना पडरहा है , इसलिए मैंने बिना कुछ सोचे उससे 10 रुपये में वह पेन खरीद लिया, उसके बाद जब मैं अपने घर पोहची , तो मैंने उस पेन को धोया, फिर मैंने देखा कि वह पेन बिल्कुल अलग दिख रहा था कुछ तो बात है इस कलम में जिसे मैं महसू कर पा रही हूं , ©#Nikita kour #Nikita kour
" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
बिछड़ते वक्त उसे में जज्बातों से भरे कुछ लिफ़ाफे दूंगा। फूल और तोहफ़े तो सभी देते हैं यादों के तौर पर, कहकर अलविदा "शमी", उसे तोहफ़े में अपनी, कुछ पसंदीदा किताबे दूंगा। ©" शमी सतीश " (Satish Girotiya) #Books
#Nikita kour
सोचा था इस भिड से अलग ही अपनी पहचान बनाऊंगी। लेकिन ए भीड़ ही मेरी परछाई बन जाएगी सोचा ना था मैंने , हम भी ईन किताबों की भीड़ के पन्नों में छा जाएंगे सोचा ना था मैंने, ©#Nikita kour #quote Nikita kour writer