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Bharat Bhushan pathak
चित्रपदा छंद विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण चार चरण, दो-दो समतुकांत भगण भगण गुरु गुरु २११ २११ २ २ नीरद जो घिर आए। तृप्त धरा कर जाए।। कानन में हरियाली। हर्षित है हर डाली।। कोयल गीत सुनाती। मंगल आज प्रभाती। गूँजित हैं अब भौंरे। दादुर ताल किनारे।। मेघ खड़े सम सीढ़ी। झूम युवागण पीढ़ी।। खेल रहे जब होली। भींग गये जन टोली।। दृश्य मनोहर भाते। पुष्प सभी खिल जाते।। पूरित ताल तलैया। वायु बहे पुरवैया।। भारत भूषण पाठक'देवांश' ©Bharat Bhushan pathak #holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध
Anjali Singhal
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विधा :- तोमर छन्द करके अन्न का दान । बनना तुम सब महान ।। अर्जित तुम करो ज्ञान । गुरु का फिर रखो ध्यान ।। १ मन से उनको पुकार । भरेगें वह भंडार ।। खुद को न समझ अनाथ । भोलेनाथ है साथ ।।२ प्रेम की कर शुरुआत । मधुर उसकी हर बात ।। उसको मान आराध्य । लिखे जो सबका भाग्य ।।३ छन-छनाती जो कान । उसकी है मधुर तान ।। पायल है सुनो नाम । प्रियतम का यही धाम ।।४ मेघ है मेरे केश । पिया को दे संदेश ।। प्रेम से थामें हाथ , नही अब छोड़ें साथ ।।५ ०४/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा :- तोमर छन्द करके अन्न का दान । बनना तुम सब महान ।। अर्जित तुम करो ज्ञान ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
रोला छन्द गीत हरते सबके कष्ट हैं , देखो राधेश्याम । घर-घर सुमिरन हो रहा , राधा कान्हा नाम ।।दो० आए हैं घनश्याम , संग राधा को लेकर । कर लो उन्हें प्रणाम , खड़े है यमुना तटपर ।। आए हैं घनश्याम .... बरसेगा अब प्रेम , धरा पर रिमझिम-रिमझिम । देख गगन में आज , सितारे करते टिम-टिम ।। मगन सभी है लोग , खबर कान्हा की पाकर । आए तारन हार , खुशी है अब यह घर-घर ।। आए हैं घनश्याम ..... बरस रहें है मेघ , बोलते देखो दादुर । पवन चली है जोर , खुशी से होकर आतुर ।। सभी जताएं हर्ष , आज देखो जी भरकर । कान्हा राधा संग , सभी के रहते घर-घर ।। आए है घनश्याम .... मंदिर-मंदिर आज , भीड़ भक्तों की भारी । स्वागत में तैयार , जगत की हर नर नारी ।। मेवा फल औ फूल , सभी लाएं हैं चुनकर । अधरो पर मुस्कान , निखर आई है खुलकर ।। आए हैं घनश्याम..... हाथ जोड़ सब लोग अब , कर लो इन्हें प्रणाम । प्रकट भये घनश्याम फिर , देखो मथुरा धाम ।।दो० आए हैं घनश्याम , संग राधा को लेकर । कर लो उन्हें प्रणाम , खड़े हैं यमुना तट पर ।। ०६/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR रोला छन्द गीत हरते सबके कष्ट हैं , देखो राधेश्याम । घर-घर सुमिरन हो रहा , राधा कान्हा नाम ।।दो०
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्ड़लिया छन्द सावन की चलने लगी , सुंदर देख बयार । झूला झूलन को चली , आज सखी जब चार ।। आज सखी जब चार , बैठी सुनों हिंडोला । गाये वह मल्हार , गीत में था जो रोला ।। करके ऊँची पेंग , देखती घर का आँगन । ले सबका मन मोह , देख लो सुंदर सावन ।। ११/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सावन की चलने लगी , सुंदर देख बयार । झूला झूलन को चली , आज सखी जब चार ।। आज सखी जब चार , बैठी सुनों हिंडोला । गाये वह मल्हार , गीत में था जो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
वृत्तभार छन्द १११ २२१ २२ तनय की ओर देखा । निधन पे शोर देखा ।। हृदय में दु:ख जागा । बहुत वो था अभागा ।। अटल है मृत्यु रेखा । बस यही सत्य देखा ।। जगत है मोह माया । शरण में दास छाया ।। प्रकृति की ओर देखा । पवन में शोर देखा । बहुत उत्कृष्ट प्यारे । सुबह के थे नजारे ।। उड़ गई धूल सारी । पवन ने हाथ मारी । गरज के मेघ आए । गगन से नीर लाए ।। ०२/०८/२०२३ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR वृत्तभार छन्द १११ २२१ २२ तनय की ओर देखा । निधन पे शोर देखा ।। हृदय में दु:ख जागा । बहुत वो था अभागा ।।
Rajesh Sharma
बरस रहा है मेघ कभी हौले कभी वेग सावन की छटा निराली चहुं ओर बस हरियाली प्रकृति का हम पे उपकार करती जो वर्षा फुहार सृष्टि का ये श्रृंगार प्रभु कृपा का आधार जीवन के सूखे भी छट जायेगे थोड़ा बारिश का इंतजार करो गर बादल जीवन पे छाए हो क्या पता तुम पे बरसने आए हो बरस रहा है मेघ, कभी हौले कभी वेग ©Rajesh Sharma #bestfrnds बरस रहा है मेघ
Nisheeth pandey
रिमझिम बारिश आई मधुर हँसी पेड़ की पत्तों में लाई .. पेड़ की टहनियों में कोंपलों हेतु खोले शतद्वार नए , ताजगीभरा रंग और बहार नए , तपन की उलझन सुलझाए सारे , पंक्षि सारे कोयल गाये मल्हार नए , शीतल बूँदों की बारिश जीवन और प्राण है मेरा , पत्तियों का सूखा बदन, हुआ रिमझिम बारिश से हरा भरा में परिवर्तन प्रकृति ने किया विनय निवेदन ऐ नभ अनुपम वरदान तेरा , सारी उम्र मिलता रहें ये वरदान प्रियदान तेरा ! रिमझिम बारिश आई मधुर हँसी पेड़ की पत्तों में लाई ..………. #निशीथ ©Nisheeth pandey #Pattiyan रिमझिम बारिश आई मधुर हँसी पेड़ की पत्तों में लाई .. पेड़ की टहनियों में कोंपलों हेतु खोले शतद्वार नए , ताजगीभरा रंग और बहार नए ,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- देख रहे हैं मेघ को , देखो आज किसान । अबके बरसे जो यहाँ , सबको मिले निदान ।। फसल सूखती जा रही , कब होगी बरसात । बतलाओ भगवन मुझे , होगी कब शुरुआत ।। आज खिलायेगें सजन , हमको रोटी नून । बरसो से खाये नही , रोटी हम दो जून ।। दुष्ट जगत में बढ़ रहे , ले लो प्रभु अवतार । तुम ही कर सकते यहाँ , इनका अब संहार ।। आज मिलन की रैन है , लाए प्रिय बारात । देखो न मुलाकात यह , है अपनी सौगात ।। २२/०६/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- देख रहे हैं मेघ को , देखो आज किसान । अबके बरसे जो यहाँ , सबको मिले निदान ।। फसल सूखती जा रही , कब होगी बरसात । बतलाओ भगवन मुझे , ह