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Anil Siwach
Anil Siwach
Poetry with Avdhesh Kanojia
दोहा- श्यामल छबि तन पीत पट, मोर मुकुट प्रभु माथ। युगल चरन में शत नमन, करूँ जगत के नाथ।। चौपाई- जय गिरिधर जय -जय व्रजनंदन। जोरि पानि हम करते वंदन।। तव पद पंकज नावहुँ शीशा आरति हरहु मोर जगदीशा।। परम शक्ति तव राधे रानी। वंदहि देवर्षि: अरु ध्यानी।। देवराज कर मान नसाई। अरु बिरंचि अभिमान हटाई।। पंच शत्रु मोहि घेरे ठाढ़े। अवगुन दोष सकल हैं बाढ़े।। त्राहिमाम प्रभु!शरण तिहारी। हौं प्रसन्न अब पातकहारी।। दोहा- जय माधव रणबाँकुरे!, नमन प्रेम अवतार। कण कण में छवि आपकी, महिमा अमित अपार।। #जन्माष्टमी #श्रीकृष्ण #कृष्णमेरे #krishna #poem #poetry #lovequote दोहा- श्यामल छबि तन पीत पट, मोर मुकुट प्रभु माथ। युगल चरन
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ भारत की समृद्ध ऋषि परंपरा को नमन करते हुए ऋषि पंचमी के पावन पर्व की समस्त देशवासियों को शुभकामनाएं...। सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय: कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश: ऋषि पंचमी पर सप्तऋषि को कोटि कोटि नमन...। 🙏🏵🙏🏵🙏🏵🙏 सभी देशवासियों और विशेष रूप से उत्कल समाज को नुआखाई पर्व की बधाई एवं शुभकामनाएं। नई फसल के आगमन, धरती एवं भगवान के वंदन और किसान भाईयों के बंधुत्व और एकत्व का प्रतीक यह त्यौहार ऋषि पंचमी के दिन मनाते हैं। गांव की समृद्धि, खुशहाली और सामाजिक संबंधों को यह त्यौहार प्रगाढ़ करे। ✍️Vibhor vashishtha Vs Meri Diary #Vs❤❤ भारत की समृद्ध ऋषि परंपरा को नमन करते हुए ऋषि पंचमी के पावन पर्व की समस्त देशवासियों को शुभकामनाएं...। सप्त ब्रह्मर्षि,
N S Yadav GoldMine
नारदजी विष्णु भगवान के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं आइये विस्तार से जानिए !!🌲🌲 {Bolo Ji Radhey Radhey} नारद जयंती :- 🎻 नारदजी विष्णु भगवान के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद मुनि विभिन्न लोकों में यात्रा करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश और पाताल का समावेश होता था। ताकि देवी-देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके। नारद मुनि के हाथ में हमेशा वीणा मौजूद रहता है। 🎻 उन्होंने गायन के माध्यम से संदेश देने के लिए अपनी वीणा का उपयोग किया। देवर्षि नारद व्यासजी, वाल्मीकि तथा परम ज्ञानी शुकदेव जी के गुरु माने जाते हैं। कहा जाता है कि नारद मुनि सच्चे सहायक के रूप में हमेशा सच्चे और निर्दोष लोगों की पुकार श्री हरि तक पहुंचाते थे। इन्होंने देवताओं के साथ-साथ असुरों का भी सही मार्गदर्शन किया। यही वजह है कि सभी लोकों में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। नारद मुनि की जन्म कथा :- ब्रहमा के पुत्र होने से पहले नारद मुनि एक गंधर्व थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्व जन्म में नारद उपबर्हण नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था। एक बार स्वर्ग में अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ वहां आए और रासलीला में लग गए। यह देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस गंधर्व की श्राप दे दिया कि वह शूद्र योनि में जन्म लेगा। 🎻 बाद में गंधर्व का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ। दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते। नारद मुनि बालक रुप में संतों का जूठा खाना खाते थे जिससे उनके ह्रदय के सारे पाप नष्ट हो गए। पांच वर्ष की आयु में उनकी माता की मृत्यु हो गई। अब वह एकदम अकेले हो गए। 🎻 माता की मृत्यु के पश्चात नारद ने अपना समस्त जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। कहते हैं एक दिन वह एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठे थे तभी अचानक उन्हें भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई। इस घटना के बाद उस उनके मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा और प्रबल हो गई। तभी अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उन्हें भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगें। 🎻 समय आने पर यही बालक(नारद मुनि) ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए जो नारद मुनि के नाम से चारों ओर प्रसिद्ध हुए। देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है। N S Yadav..... नारद जयंती उत्सव और पूजा विधि :- 🎻 नारद मुनि भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते थे। उनकी भक्ति करते थे इसलिए नारद जयंती के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन करें। इसके बाद नारद मुनि की भी पूजा करें। गीता और दुर्गासप्त शती का पाठ करें। इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी भेट करें। अन्न और वस्त्रं का दान करें। इस दिन कई भक्त लोगों को ठंडा पानी भी पिलाते हैं। 🎻 ऋषि नारद आधुनिक दिन पत्रकार और जन संवाददाता का अग्रदूत है। इसलिए दिन को पत्रकार दिवस भी कहा जाता है और पूरे देश में इस रूप में मनाया जाता है। उन्हें संगीत वाद्य यंत्र वीना का आविष्कारक माना जाता है। उन्हें गंधर्व के प्रमुख नियुक्त किया गया है जो दिव्य संगीतकार थे। उत्तर भारत में इस अवसर पर बौद्धिक बैठकें, संगोष्ठियों और प्रार्थनाएं आयोजित की जाती हैं। इस दिन को आदर्श मानकर पत्रकार अपने आदर्शों का पालन करने, समाज के लोगों के प्रति दृष्टिकोण और जन कल्याण की दिशा में लक्ष्य रखने का प्रण करते हैं। ©N S Yadav GoldMine #boat नारदजी विष्णु भगवान के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं आइये विस्तार से जानिए !!🌲🌲 {Bolo Ji Radhey Radhey} नारद जयंती :- 🎻 नारदजी वि
Anil Siwach
PARBHASH KMUAR
आज भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की एक सुंदर कथा का वर्णन करेंगे। इस कथा में आप जानेंगे कि किस प्रकार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को अपने पति परमेश्वर के रूप में प्राप्त किया। माता पार्वती ने हिमालय पर्वत के घर में जन्म लिया था, और बचपन से ही उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प ले लिया था। उन्होंने कई वर्षों तक हिमालय पर्वत पर विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए कठोर तपस्या की। यह देखकर देवी पार्वती के पिता पर्वत राज अत्यंत चिंतित हो गए थे। एक दिन देवर्षि नारद उनके पिता के पास पहुंचे और कहने लगे- हे राजन, भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करने के इच्छुक हैं, इस विषय में आपके क्या विचार हैं? यह सुनकर पर्वत राज को हार्दिक प्रसन्नता हुई और वह भगवान विष्णु के साथ अपनी पुत्री का विवाह करवाने के लिए मान गए। देवर्षि नारद ने यह संदेश भगवान विष्णु तक पहुंचा दिया और साथ ही माता पार्वती को भी इस बारे में बता दिया।जब पार्वती जी को इस बात की जानकारी हुई तो वह अत्यंत निराश हो गईं, क्योंकि उन्होंने तो मन ही मन में भगवान भोलेनाथ को अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया था। माता पार्वती ने दुखी होकर, यह बात अपनी सहेली को बताई और उनकी सखी ने पार्वती जी की सहायता करने का निश्चय किया। इसके बाद उनकी सहेली ने पार्वती जी को एक घने जंगल में एक गुफा में छिपा दिया। माता पार्वती ने उस गुफा में भगवान शिव की पूजा के लिए रेत के शिवलिंग का निर्माण किया और वह घोर तपस्या में लीन हो गईं। संयोग से माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में की थी और साथ ही उन्होंने निर्जला व्रत भी रखा था। आखिरकार भगवान शिव माता पार्वती की सच्ची निष्ठा और तप से प्रसन्न हुए और उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दे दिया। इसके बाद माता पार्वती ने व्रत का पारण किया। वहीं दूसरी ओर पर्वत राज भी अपनी पुत्री को ढूंढते-ढूंढते गुफा तक आ पहुंचे। माता पार्वती ने अपने पिता को वहां घर छोड़कर गुफा में रहने का कारण बता दिया। साथ ही उन्होंने अपने पिता को यह भी बताया कि भगवान शिव ने उनका वरण कर लिया है और इस प्रकार उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने वर के रूप में प्राप्त करने का संकल्प पूर्ण कर लिया है। इसके पश्चात् राजा पर्वत राज ने भगवान विष्णु से माफी मांगी और वह आखिरकार अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से करवाने के लि ए तैयार हो गए। अंततः भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ। इस प्रकार भगवान शिव और पार्वती का पुनर्मिलन संभव हो पाया। ©parbhashrajbcnegmailcomm आज भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की एक सुंदर कथा का वर्णन करेंगे। इस कथा में आप जानेंगे कि किस प्रकार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ
N S Yadav GoldMine
नारद जी की जन्म कथा :- {Bolo Ji Radhey Radhey} 🌺 देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। एक बार ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवन्नाम का संकीर्तन करने के लिए आए। नारद जी भी अपनी स्त्रियों के साथ उस सभा में गए। भगवान के संकीर्तन में विनोद करते हुए देखकर ब्रह्मा जी ने इन्हें शाप दे दिया। जन्म लेने के बाद ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। इनकी माता दासी का कार्य करके इनका भरण-पोषण करने लगीं। 🌺 एक दिन गांव में कुछ महात्मा आए और चातुर्मास्य बिताने के लिए वहीं ठहर गए। नारद जी बचपन से ही अत्यंत सुशील थे। वह खेलकूद छोड़ कर उन साधुओं के पास ही बैठे रहते थे और उनकी छोटी-से-छोटी सेवा भी बड़े मन से करते थे। संत-सभा में जब भगवत्कथा होती थी तो यह तन्मय होकर सुना करते थे। संत लोग इन्हें अपना बचा हुआ भोजन खाने के लिए दे देते थे। 🌺 साधुसेवा और सत्संग अमोघ फल प्रदान करने वाला होता है। उसके प्रभाव से नारद जी का हृदय पवित्र हो गया और इनके समस्त पाप धुल गए। जाते समय महात्माओं ने प्रसन्न होकर इन्हें भगवन्नाम का जप एवं भगवान के स्वरूप के ध्यान का उपदेश दिया। 🌺 एक दिन सांप के काटने से उनकी माता जी भी इस संसार से चल बसीं। अब नारद जी इस संसार में अकेले रह गए। उस समय इनकी अवस्था मात्र पांच वर्ष की थी। माता के वियोग को भी भगवान का परम अनुग्रह मानकर ये अनाथों के नाथ दीनानाथ का भजन करने के लिए चल पड़े। एक दिन जब नारद जी वन में बैठकर भगवान के स्वरूप का ध्यान कर रहे थे, अचानक इनके हृदय में भगवान प्रकट हो गए और थोड़ी देर तक अपने दिव्य स्वरूप की झलक दिखाकर अन्तर्धान हो गए। 🌺 भगवान का दोबारा दर्शन करने के लिए नारद जी के मन में परम व्याकुलता पैदा हो गई। वह बार-बार अपने मन को समेट कर भगवान के ध्यान का प्रयास करने लगे, किंतु सफल नहीं हुए। उसी समय आकाशावाणी हुई, अब इस जन्म में फिर तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद रूप में मुझे पुन: प्राप्त करोगे। 🌺 समय आने पर नारद जी का पांच भौतिक शरीर छूट गया और कल्प के अंत में वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए। देवर्षि नारद भगवान के भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं। यह भगवान की भक्ति और महात्म्य के विस्तार के लिए अपनी वीणा की मधुर तान पर भगवद् गुणों का गान करते हुए निरंतर विचरण किया करते हैं। इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इनके द्वारा प्रणीत भक्ति सूत्र में भक्ति की बड़ी ही सुंदर व्याख्या है। अब भी यह अप्रत्यक्ष रूप से भक्तों की सहायता करते रहते हैं। 🌺 भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष, ध्रुव आदि भक्तों को उपदेश देकर इन्होंने ही उन्हें भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। इनकी समस्त लोकों में अबाधित गति है। इनका मंगलमय जीवन संसार के मंगल के लिए ही है। यह ज्ञान के स्वरूप, विद्या के भंडार, आनंद के सागर तथा सब भूतों के अकारण प्रेमी और विश्व के सहज हितकारी हैं। 🌺 अविरल भक्ति के प्रतीक और ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाने वाले देवर्षि नारद का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक भक्त की पुकार भगवान तक पहुंचाना है। वह विष्णु के महानतम भक्तों में माने जाते हैं और इन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है। भगवान विष्णु की कृपा से यह सभी युगों और तीनों लोगों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। ©N S Yadav GoldMine नारद जी की जन्म कथा :- {Bolo Ji Radhey Radhey} 🌺 देवर्षि नारद पहले गन्धर्व थे। एक बार ब्रह्मा जी की सभा में सभी देवता और गन्धर्व भगवन्नाम का