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SANIR SINGNORI
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे.. जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे..🥀 . ©SANIR SINGNORI कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
read moreRAVI PRAKASH
Unsplash छोड दिए वो रास्ते जिस पर सिर्फ मतलबी लोग मिला करते थे..! ©RAVI PRAKASH #library छोड दिए वो रास्ते जिस पर सिर्फ मतलबी लोग मिला करते थे..!
#library छोड दिए वो रास्ते जिस पर सिर्फ मतलबी लोग मिला करते थे..!
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी घुटन कियो लिबासों में हो रही है फेशनो के नाम पर नंगेपन की नुबायस हो रही है सादगी अंगों की बनी रहे सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे लगता है बाजारू रुख असभ्यताओ को निमंत्रण दे रहा है फले फूले बाजार,कट लिबास कर अंगप्रदर्शन को तज्जबो दे रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे
#chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे
read moreKK क्षत्राणी
बच्चों का साथ सुकून भरा होता है जब तक वो मासूम होते हैं दिल भी उनको देख कर झूम लेता है...
read moreShashi Bhushan Mishra
आस्तीन के साँप बहुत थे फुर्सत में जब छाँट के देखा, झूठ के पैरोकार बहुत थे आसपास जब झाँक के देखा, बाँट रही खैरात सियासत मेहनतकश की झोली खाली, नफ़रत की दीवार खड़ी थी अल्फ़ाज़ों को हाँक के देखा, जादू-टोना, ओझा मंतर, पूजा-पाठ सभी कर डाले, मिलती नहीं सफलता यूँही धूल सड़क की फाँक के देखा, धरती से आकाश तलक की यात्रा सरल कहाँ होती है, बड़ी-बड़ी मीनारों से भी करके सीना चाक के देखा, कदम-कदम चलता है राही दिल में रख हौसला मिलन का, मंज़िल धुँधला दिखा हमेशा सीध में जब भी नाक के देखा, चलना बहुत ज़रूरी 'गुंजन' इतनी बात समझ में आई, हार-जीत के पैमाने पर ख़ुद को जब भी आँक के देखा, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' ©Shashi Bhushan Mishra #आस्तीन के सांप बहुत थे#
#आस्तीन के सांप बहुत थे#
read moreneelu
White यह तो नहीं पता... दशहरे पर कितने रावण जले थे पर देखते हैं.... दिवाली पर कितने राम बनते हैं ©neelu #sunset_time यह तो #नहीं पता... #दशहरे पर #कितने #रावण जले थे पर #देखते हैं.... #दिवाली पर #कितने #राम #बनते हैं
Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी हदे सब पार कर अंधाधुंध जहर बाँट रहे है विकासवाद का ढोल पीटकर दिन जीवन के घटा रहे है बदल रहे है मौसम के तेवर प्रदूषण से अंग अंग गले जा रहे है छटपटाते अब दिन गुजर रहे है रोगो के कितने वेरेंटियर रोज आ रहे है सरकारों ने हाथ खड़े कर दिये बस जुर्माने और चालान काटकर वाह वाही विज्ञापनों से लूटे जा रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #sunset_time रोगो के कितने वेरेंटियर आ रहे है #nojotohindi
#sunset_time रोगो के कितने वेरेंटियर आ रहे है #nojotohindi
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