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Divyanshu Pathak
मित्रता के लिए प्रेम चाहिए, शत्रुता का आधार अहंकार है। क्रोध है। हर समाज में प्रेम के मार्ग में भी अनेक निषेध है। जो व्यभिचार का मार्ग प्रशस्त करते हैं। समाज के निषेध प्रकृति के आगे घुटने टेक देते हैं। क्रोध- अहंकार तो आसुरी भाव ही है। जिस समाज में आसुरी भाव के साथ-साथ दैविक भाव पर भी निषेध हो, वहां समृद्धि खत्म ही समझो। वहां सारे व्यक्तित्व कुण्ठित अथवा आपराघिक ही नजर आएंगे। अधूरी कामना व्यक्ति को अघिक भटकाती है। उसे भूल पाना व्यक्ति के लिए कठिन होता है। भगवान चाहे याद आए या न आए, शत्रु का चेहरा सदा आंखों में रहता है। तब कैसे व्यक्ति कामना पार होकर वैराग्य में प्रवेश कर सकता है। वह तो उम्र भर निषेध तोड़कर कामना पूर्ति के लिए संघर्ष ही करेगा/करेगी। आओ सोने से पहले कुछ अच्छा विचार करें......... : ☺"वैराग्य"☺ : वैराग्य का मार्ग संघर्ष का नहीं हो सकता। शत्रुता का नहीं हो सकता। वह तो प
Kedar nath Shukla