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👉 Bhagwan Ka Hastakshep बेकाबू स्थिति में भगवान का हस्तक्षेप यदि दैवी शक्तियाँ रोकथाम करने में समर्थ हैं, तो समय रहते वह सब क्यों नहीं करती। इतनी हैरानी उत्पन्न होने के बाद क्यों चेतती हैं? इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि प्रत्येक घटनाक्रम के पीछे मनुष्य को सीखने लायक बहुत कुछ होता है। किस मार्ग पर चलने का क्या परिणाम हो सकता है इसे देखने अनुभव करने से भी मनुष्य बहुत कुछ सीखता है। अस्तु दैवी शक्तियों का हस्तक्षेप तभी चलता है जब जन सामान्य की अपनी क्षमताएं चूक जाती हैं। आशा यही की जाती है कि जब मनुष्य बिगाड़ कर सकता है, तो उसी को बनाना या सुधारना भी चाहिए। बनाने, सुधारने के उपाय पिछले दिनों मनुष्य करता रहा है। इन दिनों भी कर रहा है, पर वे इस स्तर के नहीं जितने के होने चाहिए। ऐसी दशा में जब स्थिति हर दृष्टि से बेकाबू हो जाती है तभी भगवान हस्तक्षेप करते हैं। अन्यथा यही आशा करते हैं कि बिगाड़ने वाले सुधारें भी। सुधारने की प्रक्रिया इन दिनों परोक्ष जगत में चल रही है। समय आने पर सामान्यजन उसका प्रत्यक्ष रूप भी देखेंगे। ✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 📖 अखण्ड ज्योति- जुलाई 1984 बेकाबू स्थिति में भगवान का हस्तक्षेप
Narendra Sonkar
ऐ! सुनो करते आए हो सदियों से भ्रमित किसी वर्ण का नहीं स्थिति का नाम है दलित ©Narendra Sonkar "वर्ण का नहीं स्थिति का नाम है दलित" #Moon
BSagar
"बहुत ज्यादा तकलीफ हो जाती है तो उस दिन आंख से आंसू नही निकलता है साधारण परिस्थिति में आंसू निकलता है और जिस दिन बहुत भयानक तकलीफ होगी न उस दिन आंसू नही निकलेगा उस दिन इंसान शांत हो जाता है ! ©NSagar स्थिति
Shubham Tripathi
रे मनुज किस बात से ऐंठा हुआ है किसकी कुपित आशा लिए बैठा हुआ है जिंदगी की झंझावाटों को देखकर भी हाथ पर रख हाथ क्यों बैठा हुआ है रे मनुज किस बात से ऐंठा हुआ है किसने कर दी है तेरी पुरषार्थ छोटी क्यों नहीं मिलता किसानो को ही रोटी सोच करके ठान ले अपने ह्रदय में मेहनत ही है हाथों की तेरी लकीरें किस बात से गर्वित हुए बैठा हुआ है रे मनुज किस बात से ऐंठा हुआ है कर्जा वर्जा लेकर अपने साथ में धोती कुर्ता लेकर अपने हाथ में जेठ की तपती हुई इस धूप में बारिश की आशा लिए बैठा हुआ है रे मनुज किस बात से ऐंठा हुआ है पेट पीठ हो गए समकोण है किसी बात की गुमान में नेता हुआ है चुनकर भेजा जिसे वो सोता हुआ है सत्ता के कुर्सी पर तेरे मेहनत का मसलन लगाये सीने पर चढ़ कर तेरे बैठा हुआ है रे मनुज किस बात से ऐंठा हुआ है स्थिति
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी छोटी सी उम्र,काम मतबाले है बड़े बड़े लोगन के कान्हा आँखों के तारे है ब्रज के भाग्य में,मंगल हो रहे सारे है मटकी में मक्खन देख,ताक रहे मित्र सारे है लीला कर के,बज्र को आनन्द करा रहे है गाय माता को मान बढ़ाये के घर घर सम्पन्नता बढ़ा रहे है भारत की आर्थिक योजना का बाल कृष्ण खाका बता रहे है। प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" भारत की आर्थिक स्थिति का खाका बता रहे है
Roshan Mishra
कई बार कई आयामों में अपने आप को माँ की ही जैसी स्थिति पे पाता हूँ, कभी कभी लगता है मेरा जीवन काल भी अल्प ही रहने वाला है । #०२ स्थिति
भारद्वाज
आथिर्क स्थिति कितनी भी अच्छी क्यों ना हो, जिंदगी का मजा लेने के लिए, तो मानसिक स्थिति का अच्छा होना ही जरूरी होता हैं। Bhardwaj DS....writer #मानसिक# स्थिति