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Naina ki Nazar se
"कौन रुकेगा" कौन किसके लिए रुका औऱ कौन यहां रुकेगा वक़्त का पहिया है जनाब न रुका है न ही रुकेगा चले जाना तुम कभी होकर यहां से बेपरवाह हवाओं में होगा ज़िक्र तेरा फिजाओं को भी तेरी चाह शहर में तेरी यादों को आने से कौन टोकेगा मीठी भिनी खुश्बुओं को महकने से कौन रोकेगा दीदार का न होगा जुनून न तेरी चाहत का इंतज़ार आने पर तेरे आहट नही होगी और नैनो पर होगा रुखसार परिंदे को पिंजरे से मुहब्बत करने से कौन रोकेगा अजनबी जब हो ही गए तुम शहर जाने से कौन रोकेगा उसके रहते उससे ही एक चाहत सी हो गयी सुबह-शाम की सलाम-दुआ इसकी आदत सी हो गयी किताबों में लिखी इबारत तेरे सिवा कौन समझेगा जिंदगी तेरे फ़लसफ़े को जो तू न चाहे तो कौन रोकेगा --------------------------------- @ दिनेश चन्द्र, मुगलसराय 05 दिसम्बर / 2021 ©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता
Naina ki Nazar se
🙏🙏 रूठ बैठा संवाद चुप है उपस्थिति ऐसी कि अनुपस्थिति चुप है अब मैं तुझमे शेष हूँ नज़रो में तुम्हारे हृदय और होठो पर एक चुप विशेष हूँ बीच दोनो के चुप अब अनकहे संवाद दम तोड़ रहे है स्वछंद थी तुम्हारी बातें हाँ को ना और ना को हाँ में बदल रहे है मानकर चाहता नैनो में ख्वाब बनकर जिंदा रहना, बचा रहना दोनो के दरमियाँ अब तो बिना बन्धन,रिश्तो के बिना जो थे संवाद ,चुप है उम्र भर वह बरसती रही नदी सागर को तरसती रही सूने होठो को मीठे बोल दे खुद तबस्सुम को तरसती रही बुलन्दियों पर गुमां नही नज़रो में पाक तू नही कोई गुनाह तू लफ्ज़ और लहज़े पर तेरे बहुत ऐतबार है अब भी मुझे समक्ष नैनो के खड़ी है मेरी तू एक उम्र है और अपनी उम्र से बड़ी है एक मीठी नदी है तू नृत्य करते जल संगीत उसका कलकल गीत चुप है। --------------- ------------- ------- - *दिनेश चन्द्र, मुग़लसराय* 08 सितम्बर /2022 ©Naina ki Nazar se दिनेश चंद्र की कविता #philosophy