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Neelam Modanwal

🙏मेंरी छंद की अवधारणा🙏 फूल में जैसे बसी है गंध की अवधारणा. गीत में वैसे रही लय छंद की अवधारणा.. एक तितली चुम्बनों ही चुम्बनों में ले गयी. #कविता

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Shubhendra Jaiswal

Ankur tiwari

#Free कभी मन से मन की बात करों कभी खुद से भी मुलाकात करो दुनियां की भीड़ में खोवो मत थोड़ा सा खुद पर ध्यान करों माना कि फुर्सत नही तुम्ह #Poetry

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White कभी मन से मन की बात करों 
कभी खुद से भी मुलाकात करो
दुनियां की भीड़ में खोवो मत 
थोड़ा सा खुद पर ध्यान करों 
माना कि फुर्सत नही तुम्हें 
दिनभर की आपाधापी से
माना कि कठिन परीक्षा में 
दौड़ रहे हो तुम आगे बाकी से
फिर भी थोड़ा सा धीर धरो 
खुद के मन को वश में लो कर
आगे अभी और कठिनता हैं 
इतने भी मत बन जाओ निडर 
हां माना हिम्मत भी है तुझमें 
पर थोड़ा डरना भी होता हैं 
जीत की लय में मत पालो गुरुर 
कभी हार से भी मिलना होता हैं 
बस वही एक क्षण जीवन का
हर मार्ग निर्धारित करता हैं 
पर्वत सा उठने की खातिर 
मिट्टी में झुकना पड़ता हैं

©Ankur tiwari #Free 
कभी मन से मन की बात करों 
कभी खुद से भी मुलाकात करो
दुनियां की भीड़ में खोवो मत 
थोड़ा सा खुद पर ध्यान करों 
माना कि फुर्सत नही तुम्ह

Santosh Jangam

Love या कवितेतून कवी एका अज्ञात प्रेमाची वेदना व्यक्त करत आहे. त्याला ती व्यक्ती कधीच भेटली नाही, तरीही तिच्यासाठी त्याच्या मनात प्रेम आणि #मराठीकविता

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N S Yadav GoldMine

#hanumanjayanti24 {Bolo Ji Radhey Radhey} आत्मा प्रकति से पृथक सत्ता है, ये सब किसी के भी वस में नही है, यह केवल एक उस परमसत्ता भगवान श्र #भक्ति

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Santosh Jangam

#tumharesaath मराठी गझल "मनस्वप्न" प्रेमाची खोलवर जळणारी ज्योत आणि विरहाची वेदना हे या गझलेचे सार आहे. प्रेमाची आठवण आणि भेटीची आस असलेली व #मराठीशायरी

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह । भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।। कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता मंदिर मस्जि #कविता

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कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जिद देख , दुवाएं में है झुकता ।।
दीन-हीन को कष्ट , दिलाने आगे बढ़ना ।
चाहे फिर भी आज , स्वयं को सुख में रखना ।।

०५/०४/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जि

AwadheshPSRathore_7773

मृत्युंजय महादेव मंत्र मेरी आवाज़ में सुनेगा और please don't mind अगर कुछ लय ताल और छन्द उपर नीचे हो गए हों तो.......OK thank you so much fo #पौराणिककथा

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Kavi Avinash Chavan(युवा कवी)

गावं माझा वेदना... #मराठीकविता

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