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Andy Mann
स्त्री एक क़िताब की तरह होती है जिसे देखते हैं सब अपनी-अपनी ज़रुरतों के हिसाब से... कोई सोचता है उसे एक घटिया और सस्ते उपन्यास की तरह तो कोई घूरता है उत्सुक-सा एक हसीन रङ्गीन चित्रकथा समझ कर ! कुछ पलटते हैं इसके रङ्गीन पन्ने अपना खाली वक़्त गुज़ारने के लिए तो कुछ रख देते हैं घर की लाइब्रेरी में सजा कर किसी बड़े लेखक की कृति की तरह स्टेटस सिम्बल बना कर ! कुछ ऐसे भी हैं जो इसे रद्दी समझ कर पटक देते हैं घर के किसी कोने में तो कुछ बहुत उदार हो कर पूजते हैं मन्दिर में किसी आले में रख कर गीता क़ुरआन बाइबिल जैसे किसी पवित्र ग्रन्थ की तरह ! स्त्री एक क़िताब की तरह होती है जिसे पृष्ठ दर पृष्ठ कभी कोई पढ़ता नही समझता नही आवरण से ले कर अन्तिम पृष्ठ तक, सिर्फ़ देखता है टटोलता है ! और वो रह जाती है अनबांची, अनअभिव्यक्त, अभिशप्त सी ब्याहता हो कर भी कुआंरी सी, विस्तृत हो कर भी सिमटी सी ! छुए तन में एक अनछुआ मन लिए सदा ही !!! ©Andy Mann #स्त्री puja udeshi Sangeet... अदनासा- Ashutosh Mishra Neel
#स्त्री puja udeshi Sangeet... अदनासा- Ashutosh Mishra Neel
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खरीद रहा था मोह्ब्बत की चादर बाज़ार -ए- इश्क़ से , ऊपर से आवाज आई कफन भी लेते जाना अक्सर यार बेबफ़ा होते है ©Andy Mann #इश्क़_के_रंगरूप sushil. Ak.writer_2.0 Neel Ashutosh Mishra Sangeet...
#इश्क़_के_रंगरूप sushil. Ak.writer_2.0 Neel Ashutosh Mishra Sangeet...
read moreआधुनिक कवयित्री
क्या लिखूं पापा पर, हर घर में उजाला हैं पापा। हर रिश्ते को बांधकर रखते, ऐसे मोतियों की माला है पापा। करते हैं सबकी हर ख्वाइशे पूरी, ख़ुद की मनत्ते चाहे रह जाए अधूरी। सारी जिमेदारियो का बोझ उठाते हैं, अपना दर्द न किसी को बताते हैं। सहनशील ओर धेर्यवान हैं पापा, मेरे हर अरमान हैं पापा। पापा हैं तो बचपना है, बिन पापा के न कोई अपना हैं। पापा हर सघर्षो से लड़ना सिखाते, सही ओर गलत में भेद बताते। जन्म जरूर देती हैं मां, पर चलना पापा ने सिखाया। खवाइशे पूरी करने के लिए, ख़ुद को झोंक देते हैं, अपने घर की राजकुमारी पराए घर को सौंप देते है। ये तो सिर्फ़ पापा का ही जिगर हैं, पापा के रहते हम निडर है। मेरे हर ख़्वाब है पापा, मेरी जिंदगी की किताब है पापा। ©आधुनिक कवयित्री मेरे पापा Ashutosh Mishra Rakesh Srivastava V.k.Viraz
मेरे पापा Ashutosh Mishra Rakesh Srivastava V.k.Viraz
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White प्रेम सिर्फ अंग को पा लेने का नाम नही हे प्रेम तो आत्मा और शरीर के निचोड़ से जो तरंग उमंग लहर मदहोशी निकलती है जिसके आगोश में जा कर खुद को खुद का भी होश न रहे बस खुद को एक ऐसी जगह पहुंचाने की चाहत हो जहां पर पहुंच के जिस्म के अंग अंग से ले कर आत्मा तक को वो सुकून और वो एहसास मिले जिसको परम सुकून को पाने की चाहत में आपने खुद को यहां तक पहुंचाया हे उस परम आनंद को पा लेना ही सम्पूर्ण आनद संपूर्ण त्याग और सम्पूर्ण प्रेम है । ©Andy Mann #love_shayari sushil. Sangeet... Sharma_N Ak.writer_2.0 Ashutosh Mishra
#love_shayari sushil. Sangeet... Sharma_N Ak.writer_2.0 Ashutosh Mishra
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