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meri_lekhni,_12
Black भरोसा करके उनके चंद मीठे अलफाजों पर, हम लुट गए उनके किए वादों पर, वरना किसी की क्या मजाल कोई लगा सके हमारी कीमत, हम तो बिक गए उनके लिए इतने सस्ते दामों पर।। ©meri_lekhni,_12 भरोसा करके,..... #पोएट्री #शायरी
कलम की दुनिया
White विश्वास हर रिश्ते की नीव है जहां विश्वास नहीं वहां रिश्ता नहीं ©कलम की दुनिया #विश्वास
GOAN
White हम वो कष्टी है जिस्का कोई किनारा ना hua हम सबके hue, मगर कोई हमारा ना hua.. ©GOAN PRASHAL #sad_shayari #पोएट्री
अमित कुमार
White मैं हूं कांटा गोरी तुम हो गुलाब की नजाकत कांटे हीं तो करते है गुलों की हिफाजत। मुझको संगदिल कहकर यूं इतराना छोड़ दे बरकरार है तेरी कोमलता ये है मेरी सराफत।। ©अमित कुमार विश्वास
विश्वास #शायरी
read morePrakash Vidyarthi
White ☝️शीर्षक - "मैं मज़दूर हूं"☝️ हां, मैं एक मज़दूर हूं। खपड़ैल झूगी झोपड़ियो में गुजर बसर करनेवाला। अपनी मेहनत के रंगों से दूसरों का नाम रंगनेवाला। दौलतमंद ,रईसो,अमीरों को आराम विश्राम देनेवाला। चिलचिलाती धूप जड़ा बरसात में भी काम करनेवाला। हर कार्य को श्री गणेश कर अंतिम अंजाम देनेवाला। जरूरत और उम्र के बंदिशों में पैसों को सलाम करनेवाला। गरीब बेबस लाचार नौकर पापी पेट के लिए बजबूर हूं।। हां मैं..........२ श्रमिक बन दिनरात कठिन परिश्रम करते रहता हूं। कृषक बनकर बंजर खेतों से भी अन्न रूपी सोना उपजाता हूं। तो कभी होटलों में प्लेट धोता हुं मेहमानों को पानी पिलाता हूं। कुली के भेष में कभी लोगों के समान ढोकर पहुंचाता हूं। कभी ईट जोड़कर गगनचुम्बी महल इमारतें बनाता हुं।। कहार बनकर किसी सजी दुल्हन की डोली उठाता हूं । कोई कहता बेशक हमें अनपढ़ गवांर बेलूर हूं। हां मैं........२ दूसरों के लिऐ जूते चप्पल बनाता हूं ख़ुद खाली पैर रेंगता हूं। हर किसी के लिए सुत्ते कातकर नए नए वस्त्र सिलता हुं ,।। पर अपने नंगे बदन को ढकने कि लिऐ एक धागे को तरसता हूं।। कल कारखानों में जान जोख़िम में डालकर मशीनें चलाता हूं। तो कभी कभार गिट्टी पत्थर को तोड़कर तराशकर सड़कें बनाता हुं। और थक हारकर वीरान सी इन सड़कों के किनारे चैन से सो जाता हूं।। भई सुख सुविधा से स्वयं मैं दूर हूं।। हा मैं.........२ मेरे भीं बाल बच्चे हैं परिवार हैं, पर रहने के लिए अपना आशियाना नही। दवा हैं भरपुर पर बीमार पड़ने पर हम अभागो के लिए सस्ता दवाखाना नहीं।। गाय भैंस आदि पशुओं को पालता हूं,चारा खिलाता हूं,देखभाल करता हूं। पर इसके दूध घी माखन मैं ख़ुद नहीं खा पाता हूं। साहब लोगों को बेच आता हूं।। बैंक और सरकार भी माफ नहीं करता,करजो के बोझ तले सदा दबा रहता हूं। बच्चों के पालन पोषण शादी ब्याह के चिंता में जनाब आत्महत्या भीं कर लेता हूं ।। महंगाई का मारा मैं बिल्कुल बेकसूर हूं।। हां मैं .........२ कभी मैं रिक्शा ठेला बस गाड़ी चलाकर ड्राइवर, खलासी के रूप मे । सफर में लोगों की सेवा करता हूं, उनके मंज़िल तक पहुंचाता हूं।। राष्ट्र निर्माण का मैं भी सूत्रधार हूं इसलिए देशहित लोकहित के विकास । में मैं भी पूरी ईमानदारी से भरपूर योगदान देता हूं अपना हाथ बटाता हूं ।। वसूलो के राह पर चलते रहता हूं अपनी धुन में कभी चीखता, चिलाता हूं। तो कभी संवेदनशील स्वभाव से भावनाओ में बहकर रोता, हंसता,गाता हूं।। हुं निर्धन दयालु पर नहीं राजा क्रूर हूं। हां मैं.........२ शायद दिमाग़ से पैदल हूं इसलिए देशभक्तों की देशभक्ति में नहीं हमारा नाम हैं। चतुर सियारों धूर्त जानवरों की सूची में हमारा त्याग तपस्या समर्पण सब गुलाम है।। कैसी ये मिट्टी की मलिन मूल हैं, रहम कोई करता कहां कहीं कांटे तो कहीं फूल हैं। मानवता की बड़ी भूल हैं पीढ़ी दर पीढ़ी कोई फलफुल रहा सब अपने में मशगूल हैं।। न कोई सहानुभूति न अच्छा रूल हैं ,स्वार्थ के नदियों के ऊपर तारीफो के जर्जर पुल हैं। शिक्षा के धूल बने फिरे हम विद्यार्थी गरीबों के नसीब में कहां कोई अपना स्कूल हैं।। अब अपनी किस्मत मजदूरी के उमंग में मगरूर हूं। हां मैं,,.........२ स्वरचित -: प्रकाश विद्यार्थी आरा बिहार ©Prakash Vidyarthi #safar #मजदूरदिवस #मजदूरी #पोएट्री #कविताएं #thouthtOfTheDay
Bhawna Sagar Batra
White मैं अपने अश्कों की कहानी लिखूंगी , कोई याद बहुत पुरानी लिखूंगी , जिसे पढ़कर तुम पहुंच जाओगे गुज़रे वक्त में , मैं वो एहसास अपनी जुबानी लिखूंगी। ©Bhawna Sagar Batra #safar #पोएट्री #Videos #Poetry
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read morePrakash Vidyarthi
।।।।।।।कलम ए विद्यार्थी।।।।।।। +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ आज सुबह सबेरे चमचमाती धूप में नीले अम्बर को निहारती जैसे किसी हिरण रूपी रौशनी को देखा! सुनसान बंजर खेतों के बीच खड़ी चारों तरफ फलों से लदे लहराती गेहूं चने के झूमते पौधों और टहनी को देखा !! लूक छिप लूक छिप झगड़ा मेल कभी फुटबॉल क्रिकेट का सेल भाई बहन पड़ोसी भेल मानव और जानवर में फिर कैसा बेमेल । छुक छुक मंद गति से कभी तेज़ रफ़्तार से चल रही थीं अपनी रेल! सफ़र था विद्यालय तक का पर देख रहा था मैं कुछ दूसरा खेल !! उठकर तो कभी बैठकर झांक रहा था उच्चकर मैं खिड़की से भी! कितनी सुन्दर कितनी प्यारी हिरण न भाग रही थी हिचकी से भी।। टेढ़ी +मेढ़ी लकड+अकड़ सी सिंघ सोभती पाती हुईं थीं कानों को सिर कर सीधा मासूम भरी कोमल निगाहों से आह रही थीं वाणो को!। उछल कूद लगा भूल गईं थीं शायद शान्ति की थीं तालाश में आनन्द अब न उसे कुछ आ रहा था हरे भरे फूलों और घास में । अकेली निर्जन वातावरण में बन की विरहन सी सजी दुलहन प्रेम पिपासी लग रही थीं खोई थी प्यारे प्रभू के आश में ।। पहले जैसा अब कुछ भाव न दिखा जैसे कोई जंगली डरती हैं कनक खनक न कुछ बता रही थी मृग नयनी बस आहे भरती हैं! पूछ का पक्ष बना संकेतक बालो का प्रमाण अब बताता है। कोई धनुर्धर महाबली किसी का आजकल न पीछा करता हैं!! चेहरे का भाव बता रहा था उसकी भी मन की कुछ ईक्षा थीं प्यार नफरत के वृत्ताकार केंद्र बीच होनेवाली अग्नि परीक्षा थीं! सोच रही थीं गर कोई मिले भी तो न कन्हैया और न श्रीराम सा थीं ख्वाइश घायल दिल के उसको महादेव कैलाशी महान सा।। @विद्यार्थी ©Prakash Vidyarthi #aaina #पोएट्री #कविताएं
मुसाफिर
तू मेरा चाहत या जरूरत नहीं तू मेरा दिल ही हो । जो तेरी ही बातों से धड़कता। तेरी यादों में ही डूब कर मुस्कुराता रहता हूं। समझता हूं कोई ओर रहे या ना रहे। तुम हमेशा साथ रहोगी। ©मुसाफिर #विश्वास