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New प्रायोजित कार्यक्रम की प्रकृति Quotes, Status, Photo, Video

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Ashutosh Mishra

Jyoti

#leafbook # प्रकृति🌿🍃

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Unsplash  जब आप प्रकृति🌿🍃से सच्चा करते हैं, 
तो आप को दुनिया की
हर जगह खुबसूरत लगेगी।

©Jyoti #leafbook # प्रकृति🌿🍃

MOHAMMAD SUEAB

हुए कार्यक्रम यह एक समय शायरी हिंदी में

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Mayuri Bhosale

दिल की कहानी की

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❣️.......शायरी दिल की कहानी .......❣️

         हर दिल मे छूपी है एक कहानी💌
         पहले हमे लगती है ओ अपनी सहेली 👭
                       पर दिल के गहराई के समंदर तक जाकर 🌊🌊
                    देख लो ओ बन जाती है एक नई पहेली.....!!❓

©Mayuri Bhosale दिल की कहानी की

neelu

#sad_quotes आप कितना बेहतर करते जा सकते हैं यह तो आपके करने की प्रकृति पर निर्भर करता है आप क्या कर रहे हैं इसे ज्यादा कैसे कर रहे हैं निर

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White आप कितना बेहतर करते जा सकते हैं
 यह तो आपके करने की प्रकृति पर निर्भर करता है
आप क्या कर रहे हैं इसे ज्यादा कैसे कर रहे हैं
 निर्भर करता है

©neelu #sad_quotes आप कितना बेहतर करते जा सकते हैं
 यह तो आपके करने की प्रकृति पर निर्भर करता है
आप क्या कर रहे हैं इसे ज्यादा कैसे कर रहे हैं
 निर

neelu

#love_shayari हम #क्या #सिखते हैं यह तो हमारी #सीखने की #प्रकृति पर #निर्भर करता है पर #लोग हमें #सिखाने ही आते हैं....

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White हम क्या सिखते हैं
 यह तो हमारी 
सीखने की प्रकृति पर निर्भर करता है 
पर लोग हमें सिखाने ही आते हैं....

©neelu #love_shayari हम #क्या #सिखते हैं
 यह तो हमारी 
#सीखने की #प्रकृति पर #निर्भर करता है 
पर #लोग हमें #सिखाने ही आते हैं....

नवनीत ठाकुर

White दरख्त काट के हमने शहर बसाए,
अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है।

दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं,
हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है।

जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं,
फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है।

 हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा,
हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है।

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति

Vinod Mishra

"खुशी मानव की अपनी प्रकृति है." #विनोद #मिश्र #मोटिवेशन ✍️

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Ghanshyam Ratre

प्रकृति की सुंदरता

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नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

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जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
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