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नित्यानंद गुप्ता
प्रतिकूलताओं को हटाने व अनुकूलताओं को पाने में लगे ऐ मानवी मन! तू अपनी डिग्रियां पाने, धन इकट्ठा करने, आलीशान मकान बनाकर बाहर से रस पाने की अंतहीन दौड़ को छोड़कर; इसका सौंवा हिस्सा भी प्रभु का सहज, सुलभ व अत्यंत मधुर रस पाने में लगा दे तो तेरी मनमानी भागदौड़ का अंत आ जाए। #बापूजी
Dev Thakur9758
बात बात पर मुझे मेरी गलतियां गिनाने लगा है..... जबसे मेरा बेटा अब कमाने लगा है...... #बापूजी
नित्यानंद गुप्ता
ज्ञान की ज्योति जगने दो। इस शरीर की ममता को टूटने दो। शरीर की ममता टूटेगी तो अन्य नाते रिश्ते सब भीतर से ढीले हो जायेंगे। अहंता ममता टूटने पर तुम्हारा व्यवहार प्रभु का व्यवहार हो जाएगा। तुम्हारा बोलना प्रभु का बोलना हो जाएगा। तुम्हारा देखना प्रभु का देखना हो जाएगा। #Bapuji #बापूजी
नित्यानंद गुप्ता
वासना रहित चित्त में ही शान्ति का अनुभव सम्भव है। भगवान शान्त हैं पर उनके भक्त प्रशान्त हैं। भक्त जितेंद्रिय है इसलिए इन्द्रिय सुख की कामनाओं से रहित है और यह अप्राप्त होने पर उन्हें क्रोध नहीं आता। भक्त अपने योग और क्षेम के लिए निश्चिन्त रहता है। -पूज्य बापूजी #पूज्य #बापूजी
Satguru ki kripya
सत्संग विचार जिसके घर में भी हर रोज सत्संग विचार होते हैं उन घरों की आदि समस्याएं दूर हो जाती है सत्संग विचार परमात्मा के नाम पर होने चाहिए क्योंकि आप इंसान होने का कोई तो कर्तव्य निभाई है आप कुछ थोड़ा समय निकाल कर श्रीमद्भागवत गीता जी को पढ़िए मेरे गुरु तत्वदर्शी जगत रामपाल जी महाराज के द्वारा लिखित ज्ञान गंगा पुस्तक को पढ़िए मंगाइए फ्री में आर्डर कीजिए अपना नाम पता एड्रेस मैसेज कीजिए किताब आपके घर पर पहुंच जाएगी जीवन का अनमोल ज्ञान का खजाना है जो सूक्ष्म ज्ञान है जिसे प्राप्त करने के लिए लोग बड़े-बड़े संत महात्माओं की खोज करते हैं उनके दर्शन को भटकते हैं इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आपकी 1000 परसेंट प्रॉब्लम ठीक हो जाएगी ©Satguru ki kripya सत्संग विचार सत्संग विचार
HP
आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवादी, पलायनवादी विचार इन सत्संगों में मिलते हैं। फालतू लोग अपना समुदाय बढ़ाने के लिए सस्ते नुस्खे बताते रहते हैं या किसी देवी देवता के कौतूहल भरे चरित्र सुनाकर उनके सुनने मात्र से स्वर्ग, मुक्ति आदि मिलने की आशा बँधाते रहते हैं। ऐसा विडम्बनापूर्ण सत्संग किसी का क्या हित साधेगा? सत्संग