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Yogi Sonu
White अगर जीवन में समाधी न हो तो जीवन कैसा होगा भाग दौड़ होगी ईश्या होगी प्रतिस्पर्धा होगी जीवन एक जंगली जानवर जैसा बन जायेगा फिर उसे भुलाने के लिए मादक द्रव्य का सेवन पर समाधी अपने आप में एक दुनिया है परमार्थ की दुनिया जिस दुनिया मे आदिपुरुष योग में स्थापिता है । ©Yogi Sonu अगर जीवन में समाधी न हो तो जीवन कैसा होगा भाग दौड़ होगी ईश्या होगी प्रतिस्पर्धा होगी जीवन एक जंगली जानवर जैसा बन जायेगा फिर उसे भुलाने के लि
Yogi Sonu
योग का एक फ़ायदा है पति कुछ भी बोले पत्नी कुछ भी बोले फ़र्क ही नही पड़ता योग का यह सबसे मजेदार लाभ है है न मजेदार ©Yogi Sonu योग का एक फ़ायदा है पति कुछ भी बोले पत्नी कुछ भी बोले फ़र्क ही नही पड़ता योग का यह सबसे मजेदार लाभ है है न मजेदार #jokas #teatime
Yogi Sonu
White योग का सारा सार जो ऊर्जा हमारे काम केंद्र पर संग्रहित है उस ऊर्जा को उठा कर शहस्त्रार तक लाना उस यात्रा का जो मार्ग है वह शून्य है इसी मार्ग से हमे यात्रा करनी है । एक तरह प्रकृति दूसरे तरफ परमात्मा । ©Yogi Sonu योग का सारा सार जो ऊर्जा हमारे काम केंद्र पर संग्रहित है उस ऊर्जा को उठा कर शहस्त्रार तक लाना उस यात्रा का जो मार्ग है वह शून्य है इसी मार्ग
Manojkumar Srivastava
White विशाल से विशाल पत्थर सैकड़ों साल पड़ा रहता है तो उसमें कोई गतिविधि और हलचल नहीं होती! वह हिल- डुल नहीं सकता और न कोई क्रिया कर सकता क्योंकि वह अचेतन है,निष्क्रिय है! दूसरी ओर चींटी सबसे छोटा जीव है फिर भी चल,फिर सकता है,आगे- पीछे चल सकता है! खा पी सकता है,सो सकता है और वह जो चाहे वह क्रिया कर सकता है क्योंकि वह चेतन है,सजीव है! मनुष्य के अलावा अन्य जीवों में चेतना का स्तर न्यून होता है! चेतना जितनी अधिक होगी सृजनशीलता,चिन्तनशीलता- मननशीलता उतनी अधिक होगी जिससे नये- नये विचार उत्पन्न होंगे! मनुष्यों में भी चेतना का स्तर समान नहीं होता! मैंने इंटरमीडिएट में तर्कशास्त्र पढ़ा है! इसमें मनुष्य और पशु में अन्तर बताया गया है! मनुष्य= पशुता+ विवेकशीलता (Human beings=Animality + Rationality) चिन्तन- मनन करनेवाले प्राणी को मनुष्य कहा गया है और जो चिन्तन- मनन में दक्ष होता है उसे मुनि कहते हैं! अत: मुनियों को चिन्तन- मनन से भागना नहीं चाहिए! किसी भी विषय पर निष्पक्ष होकर तार्किक रूप से विचार करना चाहिए किन्तु यह घोर आश्चर्य का विषय है हर वर्ग- अनपढ़,शिक्षित,उच्च शिक्षित,गरीब,धनी से चिन्तन- मनन की प्रवृत्ति लुप्त हो रही है! मुनि समाज में स्थिति सुखद नहीं है! किसी विषय पर चर्चा नहीं करना और किसी पुस्तक में जो भी लिखा गया है उसे ही अन्तिम मान लेना मानसिकता बन गयी है जो मुनि समाज के विकास में बाधक बन सकता है! जय जय जीव मुनि/ मुनिमती जी!🙏🌺🌻🌹🌷 सद्गुरु योगेश्वर शिव मुनि महाराज की जय! ©Manojkumar Srivastava #nightthoughts #योग का महत्त्व#
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