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कुमार रंजीत (मनीषी)
जरा खयाल करो! तुमसे पहले अरबों-अरबों लोग इस पृथ्वी पर हो चुके हैं। तुम्हारे जैसे ही सपने देखने वाले लोग। तुम्हारे जैसा ही धन इकट्ठा करने वाले लोग। तुम्हारे जैसे ही पद-लोलुप, पदाकांक्षी, धन -लोलुप, धनाकांक्षी! वे सब अब कहां हैं? उनका नाम भी तो पता नहीं। वे कहां खो गए? हो सकता है, जिस धूल पर तुम चल कर आए हो उस धूल में पड़े हों। तुम जिस जगह बैठे हो, हो सकता है, वहीं उनकी लाश गड़ी हो, वहीं उनकी हड्डियां गल गई हों। कभी वे भी अकड़ कर चलते थे जैसा अकड़ कर तुम चलते हो। कभी किसी का जरा सा धक्का लग गया था तो नाराज हो गए थे, तलवारें खिंच गई थीं। आज धूल में पड़े हैं और कोई भी उनको पैरों से रौंदे चला जा रहा है। न नाराज हो सकते हैं, न तलवारें खींच सकते हैं। ओशो ©Kumar Ranjeet #ओशो #विचार #Nojoto #KumarRanjeet
हिंदीवाले
जिससे मिलने के बाद जीने की उम्मीद बढ़ जाएगी, समझना वो ही प्रेम है। ~ ओशो ©हिंदीवाले जिससे मिलने के बाद जीने की उम्मीद बढ़ जाएगी, समझना वो ही प्रेम है। ~ ओशो #us #ओशो
Bobby(Broken heart)
महान दार्शनिक और सदगुरु ओशो के विचार मित्रता के संबंध नाभि के संबंध हैं, तीन तरह के संबंध मनुष्य के जीवन में होते हैं। बुद्धि के संबंध, जो बहुत गहरे नहीं हो सकते। गुरु और शिष्य में ऐसी बुद्धि के संबंध होते हैं। प्रेम के संबंध, जो बुद्धि से ज्यादा गहरे होते हैं। हृदय के संबंध, मां—बेटे में, भाई— भाई में, पति—पत्नी में इसी तरह के संबंध होते हैं, जो हृदय से उठते हैं। और इनसे भी गहरे संबंध होते हैं, जो नाभि से उठते हैं नाभि से जो संबंध उठते हैं, उन्हीं को मैं मित्रता कहता हूं। वे प्रेम से भी ज्यादा गहरे होते हैं। प्रेम टूट सकता है, मित्रता कभी भी नहीं टूटती है। जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे कल हम घृणा भी कर सकते हैं। लेकिन जो मित्र है, वह कभी भी शत्रु नहीं हो सकता है। और हो जाए, तो जानना चाहिए कि मित्रता नहीं थी। यह अकारण नहीं था। बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे जीवन में मैत्री होनी चाहिए। किसी ने बुद्ध को पूछा भी कि आप प्रेम क्यों नहीं कहते? बुद्ध ने कहा मैत्री प्रेम से बहुत गहरी बात है। प्रेम टूट भी सकता है। मैत्री कभी टूटती नहीं। और प्रेम बांधता है, मैत्री मुक्त करती है। प्रेम किसी को बांध सकता है अपने से, पजेस कर सकता है, मालिक बन सकता है, लेकिन मित्रता किसी की मालिक नहीं बनती, किसी को रोकती नहीं, बांधती नहीं, मुक्त करती है। और प्रेम इसलिए भी बंधन वाला हो जाता है कि प्रेमियों का आग्रह होता है कि हमारे अतिरिक्त और प्रेम किसी से भी नहीं। लेकिन मित्रता का कोई आग्रह नहीं होता। एक आदमी के हजारों मित्र हो सकते हैं, लाखों मित्र हो सकते हैं, क्योंकि मित्रता बड़ी व्यापक, गहरी अनुभूति है। जीवन की सबसे गहरी केंद्रीयता से वह उत्पन्न होती है। इसलिए मित्रता अंततः परमात्मा की तरफ ले जाने वाला सबसे बड़ा मार्ग बन जाती है। जो सबका मित्र है, वह आज नहीं कल परमात्मा के निकट पहुंच जाएगा, क्योंकि सबके नाभि—केंद्रों से उसके संबंध स्थापित हो रहे हैं और एक न एक दिन वह विश्व की नाभि—केंद्र से भी संबंधित हो जाने को है। साधना पथ, प्रवचन-२, ओशो ©Bobby(Broken heart) महान दार्शनिक और सदगुरु ओशो के विचार संबंधों के ऊपर....#bobby_sadeyes #freebird