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Dhaneshdwivediwriter
Unsplash मेरा सुख चैन खो रहा है, अंदर ही अंदर तेरी यादों का बवंडर उमड़ रहा है। . ©Dhaneshdwivediwriter #camping मेरा सुख चैन खो रहा है अंदर ही अंदर तेरी यादों का बवंडर उमड़ रहा है dhaneshdwivediwriter
#camping मेरा सुख चैन खो रहा है अंदर ही अंदर तेरी यादों का बवंडर उमड़ रहा है dhaneshdwivediwriter
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मेरा सुख चैन खो रहा है अंदर ही अंदर तेरी यादों का बवंडर उमड़ रहा है। ©Dhaneshdwivediwriter मेरा सुख चैन खो रहा है अंदर ही अंदर तेरी यादों का बवंडर उमड़ रहा है
मेरा सुख चैन खो रहा है अंदर ही अंदर तेरी यादों का बवंडर उमड़ रहा है
read moreVs Nagerkoti
सोचो अगर आप हर किसी को आसानी से समझ जाते है । और हर कोई अपनेपन का नाटक करने वाला ही आपका सबसे बड़ा शत्रू निकल जाय। तो कैसा महसूस होता है । जबकि आपने कभी सपने मैं भी उनका बुरा नहीं सोचा होता । आज यही सब होता है । शायद इस लिए भी कुछ इंसान आज किसी की मदद नहीं करते हो सकता है कि उन्होंने पहले ही सब कुछ भुगत लिया हो । अंदर की बात । ©Vs Nagerkoti #streetlamp अंदर की बात,,,
#streetlamp अंदर की बात,,,
read moreनवनीत ठाकुर
अपनी पहचान को मिटाना नहीं, दरिया बन, समंदर में समाना नहीं। फासलों में भी गहराई होती है, नज़दीकी अक्सर तबाही लाती है। किसी के कद से खुद को छोटा न कर, अपनी मिट्टी से जुड़ रिश्ता तोड़ा न कर। जो उड़ गए ऊँचाईयों की ओर, उनके कदमों तले रह गई ज़मीन की डोर। हर दरिया को समंदर की चाह नहीं होती, हर मोती के लिए साज़िश राह नहीं होती। ख़ुदी को बुलंद कर, गिरना मुमकिन है, याद रख, उड़ान में भी गिरावट का दिन है। जो दूर रहकर पास की बात करते हैं, वो अपने मुकाम की बुनियाद रखते हैं। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर अपने अंदर समंदर सा सुकून रख, ऊपर से शांत, अंदर जुनून रख। जो भीड़ के साथ चला, खो गया, जो अलग रहा, खुदा जैसा हो गया।
#नवनीतठाकुर अपने अंदर समंदर सा सुकून रख, ऊपर से शांत, अंदर जुनून रख। जो भीड़ के साथ चला, खो गया, जो अलग रहा, खुदा जैसा हो गया।
read moreSupriya Jha
White एक समंदर मेरे अंदर, जज़्बातों का है बवंडर, फिर भी मेरे होठो के अंदर, डर लगता है देखकर वर्तमान का मंजर, कहीं भविष्य पर न लग जाए कोई खंजर, चलना होगा हर कदम बहुत संंवर कर, तभी शायद मेरे प्रयास का परिणाम होगा सुंदर। ©Supriya Jha # एक समंदर मेरे अंदर
# एक समंदर मेरे अंदर
read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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