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Indian Kanoon In Hindi

52वें संविधान संशोधन पर कानून :-

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White 52वें संविधान संशोधन पर कानून :- 

* राजनीतिक दल-बदल लम्बे समय से भारतीय राजनीति का एक रोग बना हुआ था और 1967 से ही राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक (एंटी-डिफेक्शन लॉ) लगाने की बात उठाई जा रही थी। अन्ततोगत्वा आठवीं लोकसभा के चुनावों के बाद 1985 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से 52वें अमेंडमेंट विधेयक पारित कर राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगा दी। इसे संविधान की दसवीं अनुसूची में डाला गया। मोटे तौर पर 52वें संविधान संशोधन के इस विधयेक में निम्न प्रावधान किये गए हैं:-

* निम्न परिस्थितियों में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – यदि वह स्वेच्छा से अपने दल से त्यागपत्र दे दे। यदि वह अपने दल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना सदन में उसके किसी निर्देश के प्रतिकूल मतदान करे या मतदान में अनुपस्थित रहे। परन्तु यदि 15 दिनों निम्न परिस्थितियों में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – के अन्दर दल उसे इस उल्लंघन के लिए क्षमा कर दे तो उसकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

* निम्न परिस्थितियों में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता बनी रहेगी – यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये। यदि कोई मनोनीत सदस्य शपथ लेने के बाद 6 माह की अवधि में किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये। किसी राजनीतिक दल के विलय पर सदस्यता समाप्त नहीं होगी, यदि मूल दल में कम-से-कम 2/3 सांसद/विधायक दल छोड़ दें। यदि लोकसभा/विधानसभा का अध्यक्ष अपना पद छोड़ देता है तो वह अपनी पुरानी में लौट सकता है, इसको दल-बदल नहीं माना जायेगा।

* किसी राजनीतिक दल के विलय की स्थिति को राजनीतिक दल-बदल की सीमा के बाहर रखा गया है। राजनीतिक दल-बदल का कारण राजनीतिक विचारधारा या अन्तःकरण नहीं अपितु सत्ता और पदलोलुपता या अन्य लाभ ही रहे हैं। इस दृष्टि से दल-बदल पर लगाई गई रोक “भारतीय राजनीति को स्वच्छ करने और राजनीति में अनुशासन लाने का एक प्रयत्न” ही कहा जा सकता है। वस्तुतः इस कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दलीय अनुशासन के बीच संतुलित सामंजस्य बैठाया गया है।

* दल-बदल (एंटी-डिफेक्शन) को रोकने की दिशा में यह विधेयक एक शुरुआत ही माना जा सकता है। दल-बदल की स्थिति के पूरे निराकरण के लिए और बहुत कुछ अधिक करना पड़ेगा। राजनीतिक नैतिकता ही इस स्थिति का पूर्ण निराकरण हो सकती है।

©Indian Kanoon In Hindi 52वें संविधान संशोधन पर कानून :-

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विद्युत अधिनियम कानून :-

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White विद्युत अधिनियम कानून :- 

* भारत वर्ष मे विद्युत आपूर्ति उद्योग सबसे पहले 1910 मे भारतीय विद्युत अधिनियम-1910 के अंतर्गत कानूनी रूप से नियंत्रित किया गया था। 1948 मे विद्युत आपूर्ति अधिनियम लागू किया गया एवं विद्युत नियामक आयोग अधिनियम 1998 के द्वारा इसमे सुधार किये गये इन तीनो अधिनियमो के प्रावधानो को समग्र रूप से विवेक युक्त बनाने के लिये राज्यो, स्टैक धारको तथा विशेषज्ञो से विचार विमर्श के बाद विद्युत अधिनियम 2003 को भारतीय संसद से पारित कराया गया।

* विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण , व्यापार और प्रयोग से संबंधित, विद्युत उद्योग में प्रतियोगितात्मक विकास करने के लिये तथा उपभोक्ताओ के हित संरक्षण हेतु देश के समस्त हिस्से में विद्युत की आपूर्ति करने, विद्युत शुल्क के युक्तियुक्तकरण करने, बिजली की दरो मे सबसिडियो से संबंधित पारदर्शी नीतियो को सुनिश्चित करने, विद्युत प्रदाय की हितैषी नीतियो को दक्ष एवं पर्यावरणीय तरीके से विकसित करने, केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, राज्य नियामक आयोगो का गठन करने एवं अपीलिय अधिकारण की स्थापना करने के लिये कानून को सुव्यवस्थित रूप से स्थापित करने हेतु विद्युत अधिनियम 2003 लाया गया है।

* विद्युत की चोरी, विद्युत लाइनो और सामग्रियो की चोरी, चुराई गई सामग्री वापस प्राप्त करने पर दंड के प्रावधान, विद्युत संपत्ति को नुकसान पहुचाने पर शासकीय न्याय निर्णयन अधिकारी द्वारा ध्यान में रखे जाने वाले घटक इत्यादि के प्रावधान अधिनियम के भाग 14 में दिये गये है। भाग 15 एवं 16 विशेष विद्युत न्यायालय के गठन संबंधी प्रक्रिया, विशेष विद्युत न्यायालयो की शक्तियां एवं विद्युत संबंधी विवादो के निपटारे पर केंद्रित है। भाग 17 में रेलमार्गो, राजमार्गो, विमान पत्तनो, नहरो इत्यादि सार्वजनिक स्थलो के संरक्षणात्मक उपबंध हैं।

©Indian Kanoon In Hindi विद्युत अधिनियम कानून :-

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भारतीय स्टाम्प अधिनियम कानून :-

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White भारतीय स्टाम्प अधिनियम कानून :- 

* भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के अनुसार निर्धारित स्टाम्प शुल्क से कम पर दस्तावेज बनाया जाना अपराध है। इसका सीधा अर्थ है कि 50 या 100 रु. के स्टाम्प पर बने किरायानामे गलत हैं। यदि किसी मकान का किराया 10 हजार रुपए प्रतिमाह है तो उसका सालाना कुल किराया 1 लाख 20 हजार रुपए होगा। तीन साल के लिए यदि किराया अनुबंध होता है तो इस सालाना किराए की कुल राशि का दो फीसदी यानी 2400 रुपए का स्टाम्प अनुबंध के लिए आवश्यक होगा। इसलिए उचित स्टाम्प शु्ल्क का भुगतान करें।

©Indian Kanoon In Hindi भारतीय स्टाम्प अधिनियम कानून :-

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राष्ट्रीय न्यास अधिनियम कानून :-

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White राष्ट्रीय न्यास अधिनियम कानून :- 

* इस अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकार का यह दायित्व है कि वह ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क अंगघात, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिए, नई दिल्ली में राष्ट्रीय न्यास का गठन करे। केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किए गए राष्ट्रीय न्यास को यह सुनिश्चित करना होता है कि इस अधिनियम में वर्णित उद्देश्यों पूरे हों । राष्ट्रीय न्यास के न्यासी बोर्ड का यह दायित्व है कि वे वसीयत में उल्लिखित किसी भी लाभग्राही के समुचित जीवन स्तर के लिए आवश्यक प्रबंध करें और विकलांगजनों के लाभ हेतु अनुमोदित कार्यक्रम करने के लिए पंजीकृत संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करें । इस अधिनियम के उपबन्ध राष्ट्रीय न्यास पर जवाबदेही, मॉनीटरिग, वित्त, लेखा और लेखा-परीक्षा के मामले में बाध्यकारी होंगे ।

©Indian Kanoon In Hindi राष्ट्रीय न्यास अधिनियम कानून :-

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नागरिकता संशोधन विधेयक :-

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White नागरिकता संशोधन विधेयक :- 

* केंद्र सरकार के एक विधेयक (The Citizenship (Amendment) Bill, 2016) को लेकर असम में तरह-तरह के अनुमान लगाये जा रहे हैं और इस विधेयक का नाम है नागरिकता संशोधन विधेयक। 

* केंद्र सरकार ने 2016 में एक ऐसा विधेयक लाया जिसको लेकर असम में सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है ये विधेयक है नागरिकता संशोधन विधेयक 2016।

* इस विधेयक में कुछ प्रावधान ऐसे हैं जो NRC में नाम दर्ज कराने के नियमों से मेल नहीं खाते।

* हालाँकि विधेयक अभी संसद से पारित नहीं हुआ है लेकिन इसे लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं।

* 19 जुलाई, 2016 को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यह विधेयक लोक सभा में पेश किया।

* विधेयक के जरिये नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया जायेगा।

* विधेयक में नागरिकता हासिल करने के प्रावधानों में संशोधन करने का प्रावधान है।

* नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 में अवैध प्रवासी उन्हें माना गया है जो गैर-पासपोर्ट के बिना भारत में प्रवेश करता है या फिर स्वीकृत समय से ज्यादा दिनों बाद भी भारत में रहता है।

* इसमें कुछ समूहों का जिक्र किया गया है जिनके साथ अवैध प्रवासियों की तरह व्यवहार नहीं किया जायेगा।

* विधयेक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेशी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसियों और ईसाइयों के लिए ख़ास प्रावधान किये गए हैं। ये लोग अगर 6 साल से भारत में रह रहे हैं तो नागरिकता के लिए दावेदारी पेश कर सकते हैं।

* अन्य लोगों के लिए यह अवधि 11 साल है।

* विधेयक के इस प्रावधान को लेकर असम में काफी विवाद हो रहा है. असम के कई राजनैतिक समूहों का कहना है कि केंद्र सरकार की इस विधेयक और NRC के तहत नागरिकता के प्रावधानों में टकराव है. मौजूदा कानून के तहत 24 मार्च, 1971 से पहले भारत आये विदेशियों को ही NRC में जगह दी जा सकती है. लेकिन यदि केंद्र सरकार का नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हो गया तो बांग्लादेश से आने वाले गैर-मुस्लिम 6 साल में ही नागरिकता के दावेदार हो जायेंगे।

©Indian Kanoon In Hindi नागरिकता संशोधन विधेयक :-

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प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज अधिनियम कानून :-

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White प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज अधिनियम कानून :- 

* कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि लोग सड़कों के किनारे लगे पेड़ जाने अनजाने में काट देते हैं या फिर अपने घर के कैंपस आदि से लगने वाले पेड़ मजबूरी में काटते हैं ताकि पेड़ से परेशानी न हो। लेकिन यह जानना जरूरी है कि राजधानी दिल्ली में पेड़ काटना अपराध की श्रेणी में रखा गया। 

* पेड़ को बचाने के लिए 1994 में एक कानून बनाया गया था जिसे दिल्ली प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज एक्ट 1994 का नाम दिया गया। उक्त एक्ट के तहत एक कंपिटेंट अथॉरिटी का गठन किया गया है। इसके लिए एक अधिकारी होता है जिसे ट्री ऑफिसर कहा जाता है। फॉरेस्ट ऑफिसर ही यह ट्री ऑफिसर का काम देखता है।

* अगर आंधी तूफान या किसी अन्य प्राकृतिक कारणों से पेड़ की डाली टूट गई हो या फिर आधा पेड़ सड़क पर आ गया हो तो ऐसे पेड़ काटे जा सकते हैं लेकिन इसके लिए कानूनी प्रावधान यह है कि अगर समय है तो इस बारे में संबंधित अधिकारी यानी ट्री ऑफिसर को सूचित किया जाना चाहिए या इसके लिए भी समय नहीं है तो पेड़ काटने के बाद इसके बारे में तुरंत ट्री ऑफिसर को सूचित किया जाए। सामान्य तौर पर भी पेड़ काटने के पहले ट्री ऑफिसर को यह बताना होगा कि पेड़ काटना क्यों जरूरी है। कारण अगर जायज होगा तो ट्री ऑफिसर पेड़ काटने की इजाजत दे सकता है। लेकिन किसी भी परिस्थिति में काटे गए पेड़ के बदले ट्री ऑफिसर पेड़ काटने वालों को यह आदेश दे सकता है कि एक पेड़ के बदले उन्हें इतने पेड़ लगाने होंगे। ट्री ऑफिसर प्रत्येक पेड़ का हिसाब रखता है और पेड़ सुरक्षित कैसे रहे इसके लिए काम करता है। अगर बिना इजाजत और तय नियम का उल्लंघन करते हुए कोई पेड़ काटता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है।

* कानून का उल्लंघन करने वालो के खिलाफ इस मामले में गिरफ्तारी भी हो सकती है। अगर किसी ने बिना इजाजत पेड़ काट दिए हों और इसकी शिकायत ट्री ऑफिसर को किए जाने पर ट्री ऑफिसर चाहे तो खुद या पुलिस की मदद से उस शख्स को गिरफ्तार करवा सकता है। ट्री ऑफिसर की शिकायत पर ही इस एक्ट के तहत केस चलता है और दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद और एक हजार रुपये तक जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है।

©Indian Kanoon In Hindi प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज अधिनियम कानून :-

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52वें संविधान संशोधन पर कानून

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White 52वें संविधान संशोधन पर कानून :- 

* राजनीतिक दल-बदल लम्बे समय से भारतीय राजनीति का एक रोग बना हुआ था और 1967 से ही राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक (एंटी-डिफेक्शन लॉ) लगाने की बात उठाई जा रही थी। अन्ततोगत्वा आठवीं लोकसभा के चुनावों के बाद 1985 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से 52वें अमेंडमेंट विधेयक पारित कर राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगा दी। इसे संविधान की दसवीं अनुसूची में डाला गया। मोटे तौर पर 52वें संविधान संशोधन के इस विधयेक में निम्न प्रावधान किये गए हैं:-

* निम्न परिस्थितियों में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – यदि वह स्वेच्छा से अपने दल से त्यागपत्र दे दे। यदि वह अपने दल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना सदन में उसके किसी निर्देश के प्रतिकूल मतदान करे या मतदान में अनुपस्थित रहे। परन्तु यदि 15 दिनों निम्न परिस्थितियों में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – के अन्दर दल उसे इस उल्लंघन के लिए क्षमा कर दे तो उसकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

* निम्न परिस्थितियों में संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता बनी रहेगी – यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये। यदि कोई मनोनीत सदस्य शपथ लेने के बाद 6 माह की अवधि में किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाये। किसी राजनीतिक दल के विलय पर सदस्यता समाप्त नहीं होगी, यदि मूल दल में कम-से-कम 2/3 सांसद/विधायक दल छोड़ दें। यदि लोकसभा/विधानसभा का अध्यक्ष अपना पद छोड़ देता है तो वह अपनी पुरानी में लौट सकता है, इसको दल-बदल नहीं माना जायेगा।

* किसी राजनीतिक दल के विलय की स्थिति को राजनीतिक दल-बदल की सीमा के बाहर रखा गया है। राजनीतिक दल-बदल का कारण राजनीतिक विचारधारा या अन्तःकरण नहीं अपितु सत्ता और पदलोलुपता या अन्य लाभ ही रहे हैं। इस दृष्टि से दल-बदल पर लगाई गई रोक “भारतीय राजनीति को स्वच्छ करने और राजनीति में अनुशासन लाने का एक प्रयत्न” ही कहा जा सकता है। वस्तुतः इस कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दलीय अनुशासन के बीच संतुलित सामंजस्य बैठाया गया है।

* दल-बदल (एंटी-डिफेक्शन) को रोकने की दिशा में यह विधेयक एक शुरुआत ही माना जा सकता है। दल-बदल की स्थिति के पूरे निराकरण के लिए और बहुत कुछ अधिक करना पड़ेगा। राजनीतिक नैतिकता ही इस स्थिति का पूर्ण निराकरण हो सकती है।

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विद्युत अधिनियम कानून

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विद्युत अधिनियम कानून :- 

* भारत वर्ष मे विद्युत आपूर्ति उद्योग सबसे पहले 1910 मे भारतीय विद्युत अधिनियम-1910 के अंतर्गत कानूनी रूप से नियंत्रित किया गया था। 1948 मे विद्युत आपूर्ति अधिनियम लागू किया गया एवं विद्युत नियामक आयोग अधिनियम 1998 के द्वारा इसमे सुधार किये गये इन तीनो अधिनियमो के प्रावधानो को समग्र रूप से विवेक युक्त बनाने के लिये राज्यो, स्टैक धारको तथा विशेषज्ञो से विचार विमर्श के बाद विद्युत अधिनियम 2003 को भारतीय संसद से पारित कराया गया।

* विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण , व्यापार और प्रयोग से संबंधित, विद्युत उद्योग में प्रतियोगितात्मक विकास करने के लिये तथा उपभोक्ताओ के हित संरक्षण हेतु देश के समस्त हिस्से में विद्युत की आपूर्ति करने, विद्युत शुल्क के युक्तियुक्तकरण करने, बिजली की दरो मे सबसिडियो से संबंधित पारदर्शी नीतियो को सुनिश्चित करने, विद्युत प्रदाय की हितैषी नीतियो को दक्ष एवं पर्यावरणीय तरीके से विकसित करने, केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, राज्य नियामक आयोगो का गठन करने एवं अपीलिय अधिकारण की स्थापना करने के लिये कानून को सुव्यवस्थित रूप से स्थापित करने हेतु विद्युत अधिनियम 2003 लाया गया है।

* विद्युत की चोरी, विद्युत लाइनो और सामग्रियो की चोरी, चुराई गई सामग्री वापस प्राप्त करने पर दंड के प्रावधान, विद्युत संपत्ति को नुकसान पहुचाने पर शासकीय न्याय निर्णयन अधिकारी द्वारा ध्यान में रखे जाने वाले घटक इत्यादि के प्रावधान अधिनियम के भाग 14 में दिये गये है। भाग 15 एवं 16 विशेष विद्युत न्यायालय के गठन संबंधी प्रक्रिया, विशेष विद्युत न्यायालयो की शक्तियां एवं विद्युत संबंधी विवादो के निपटारे पर केंद्रित है। भाग 17 में रेलमार्गो, राजमार्गो, विमान पत्तनो, नहरो इत्यादि सार्वजनिक स्थलो के संरक्षणात्मक उपबंध हैं।

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भारतीय स्टाम्प अधिनियम कानून

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भारतीय स्टाम्प अधिनियम कानून :- 

* भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 के अनुसार निर्धारित स्टाम्प शुल्क से कम पर दस्तावेज बनाया जाना अपराध है। इसका सीधा अर्थ है कि 50 या 100 रु. के स्टाम्प पर बने किरायानामे गलत हैं। यदि किसी मकान का किराया 10 हजार रुपए प्रतिमाह है तो उसका सालाना कुल किराया 1 लाख 20 हजार रुपए होगा। तीन साल के लिए यदि किराया अनुबंध होता है तो इस सालाना किराए की कुल राशि का दो फीसदी यानी 2400 रुपए का स्टाम्प अनुबंध के लिए आवश्यक होगा। इसलिए उचित स्टाम्प शु्ल्क का भुगतान करें।

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राष्ट्रीय न्यास अधिनियम कानून

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राष्ट्रीय न्यास अधिनियम कानून :- 

* इस अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकार का यह दायित्व है कि वह ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क अंगघात, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिए, नई दिल्ली में राष्ट्रीय न्यास का गठन करे। केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किए गए राष्ट्रीय न्यास को यह सुनिश्चित करना होता है कि इस अधिनियम में वर्णित उद्देश्यों पूरे हों । राष्ट्रीय न्यास के न्यासी बोर्ड का यह दायित्व है कि वे वसीयत में उल्लिखित किसी भी लाभग्राही के समुचित जीवन स्तर के लिए आवश्यक प्रबंध करें और विकलांगजनों के लाभ हेतु अनुमोदित कार्यक्रम करने के लिए पंजीकृत संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करें । इस अधिनियम के उपबन्ध राष्ट्रीय न्यास पर जवाबदेही, मॉनीटरिग, वित्त, लेखा और लेखा-परीक्षा के मामले में बाध्यकारी होंगे ।

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