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रजनीश "स्वच्छंद"
भाव लिए मैं फिरता हूँ।। भाव लिए मैं फिरता हूँ, मुझे कवि ना कह जाना, काम मेरा भावों के संग बन शब्द है बह जाना। मैं नदी नहीं, मैं सागरतल, कब बांधों ने रोका है, मेरी राह प्रसस्त करे, भाव-समीर का झोंका है। मैं एक बंजारा, मतवाला अल्हड़ और जिद्दी भी, कलम छुपाये बैठा हूँ, पाप पुण्य और सिद्धि भी। ना व्यापारी काश्तकार, ना रचता रचनाकार कोई, मैं विद्रोही अटल रहा, ज्यों मेरा न रहा दरबार कोई। बन पुस्तक मैं बिका नहीं, ना पन्नों ने मुझे समेटा है, ना एकलव्य सा शिष्य हूँ मैं, ना मेरा कोई प्रणेता है। लिए लेखनी निकल पड़ा, पाती ये दुनिया सारी है, लिए पात्र तेरे द्वार खड़ा, भाव का ही तो भिखारी है। ना विद्व हुआ ना मूर्ख रहा, अंतर कैसे परिभाषित हो, आधार बदलते रहते हैं, जैसा शाशक और शाषित हो। लिए लकुटी निकल पड़ा, जबतक पांव ये बोझ उठाएंगे, अवसान मेरा जो आ जाये, तुमको लोग ये रोज सुनाएंगे। ©रजनीश "स्वछंद" भाव लिए मैं फिरता हूँ।। भाव लिए मैं फिरता हूँ, मुझे कवि ना कह जाना, काम मेरा भावों के संग बन शब्द है बह जाना। मैं नदी नहीं, मैं सागरतल, कब
Ravendra