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YumRaaj ( MB जटाधारी )

अहङ्कारं पापं वा निर्गुणं यः । यमपुरं गच्छ यत्र सर्वे भूतानि गच्छन्ति #YumRaaj369 #नोजोटोहिंदी #विचार

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Deepen Singh

|| प्रेम इति कश्चन यः.....#sunlove #quaotes #Lo√€ #pyaar #mohabbat #Dil #geeta #krishan #Shayar

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Manku Allahabadi

शिव तांडव स्त्रोत (भाग - 17) ............................................. पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे। तस्य स् #Shiva #mahadev #विचार #bambhole #mankuallahabadi #shivtandavstotram

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पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं 
यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी 
सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥


अर्थात- प्रात: शिवपुजन के अंत में 
इस रावणकृत शिव ताण्डव स्तोत्र के गान से 
लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा 
भक्त रथ, गज, घोड़ा आदि 
संपदा से सर्वदा युक्त रहता है.

शिव तांडव स्त्रोत 
(श्लोक-17)

©Manku Allahabadi शिव तांडव स्त्रोत (भाग - 17)
.............................................
पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्

Soumya Ranjan Mishra

Happy Ganesh Chaturthi #ganeshchaturthi  #ganesha #india #writing #yqsong 
Happy Ganesh Chaturthi !
#GaneshChaturthi2019 #Ganeshotsav2019 #GanpatiBappaMorya 
नमा

i am Voiceofdehati

धनहीनो न हीनश्च, धनिक: स सुनिश्चयः। विद्यारत्नेन हीनो यः,स हीनः सर्ववस्तुषु।। धनहीन व्यक्ति यदि विद्यारूपी धन से युक्त है तो वह दीन-हीन नह #hindutva #Sanskrit #nitisatkam #suvicharquotes

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धनहीनो न हीनश्च, धनिक: स सुनिश्चयः।
विद्यारत्नेन हीनो यः,स हीनः सर्ववस्तुषु।।

 धनहीन व्यक्ति यदि विद्यारूपी धन से युक्त है तो वह दीन-हीन नही होता अपितु वह निश्चय ही धनवान होता है, किन्तु विद्यारूपी रत्न से जो वंचित है वह निश्चित ही सभी प्रकार से दीन-हीन होता है। धनहीनो न हीनश्च, धनिक: स सुनिश्चयः।
विद्यारत्नेन हीनो यः,स हीनः सर्ववस्तुषु।।

 धनहीन व्यक्ति यदि विद्यारूपी धन से युक्त है तो वह दीन-हीन नह

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।। यः सर्वज्ञः सर्वविद् यस्य ज्ञानमयं तपः। तस्मादेतद् ब्रह्म नाम रूपमन्नं च जायाते ॥ जो 'सर्वज्ञ' है, सर्वविद् है, 'वह' जिसका तप

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।।  ओ३म् ।।

यः सर्वज्ञः सर्वविद् यस्य ज्ञानमयं तपः।
तस्मादेतद् ब्रह्म नाम रूपमन्नं च जायाते ॥

जो 'सर्वज्ञ' है, सर्वविद् है, 'वह' जिसका तप ज्ञानमय है, 'उससे' ही यह 'ब्रह्म', यह 'नाम' 'रूप' एवं 'अन्न' उत्पन्न होते हैं।

He who is the Omniscient, the allwise, He whose energy is all made of knowledge, from Him is born this that is Brahman here, this Name and Form and Matter.

( मुण्डकोपनिषद् १.१.९ ) #।।  ओ३म् ।।

यः सर्वज्ञः सर्वविद् यस्य ज्ञानमयं तपः।
तस्मादेतद् ब्रह्म नाम रूपमन्नं च जायाते ॥

जो 'सर्वज्ञ' है, सर्वविद् है, 'वह' जिसका तप

AB

💕🌸 ॐ नमः शिवाय 🌸💕 _________________________________________________ अनुवाद :- जिन्होंने यक्ष स्वरूप धारण किया है,

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यक्षस्वरूपाय   जटाधराय    पिनाकस्ताय   सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥                          💕🌸 ॐ नमः शिवाय 🌸💕
_________________________________________________

अनुवाद :- जिन्होंने यक्ष स्वरूप धारण किया है,

Bazirao Ashish

असित - गिरि - समं स्यात् कज्जलं सिन्धु - पात्रे । सुर - तरुवर - शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ॥ लिखति यदि गृहीत्वा #पौराणिककथा

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असित - गिरि - समं   स्यात्   कज्जलं  सिन्धु - पात्रे ।
सुर - तरुवर - शाखा          लेखनी           पत्रमुर्वी ॥
लिखति      यदि      गृहीत्वा      शारदा    सर्वकालं ।
तदपि    तव      गुणानामीश     पारं     न      याति ॥

अर्थ: हे प्रभु (शिव जी)! यदि नीले या काले रङ्ग के समान पर्वतों को सागर रूपी दवात में घोलकर काली स्याही और देवलोक के कल्पवृक्ष की शाखाओं की लेखनी/कलम बनायी जाय/जा सके।
यदि माँ शारदा/सरस्वती स्वयं अनन्तकाल तक आपके गुणों की व्याख्यान लिखती रहें तब भी आपके सम्पूर्ण गुणों का को नहीं लिखा जा सकता। अर्थात् आप आदि व अनन्त हैं।
🙏

©Bazirao Ashish असित - गिरि - समं   स्यात्   कज्जलं  सिन्धु - पात्रे ।
सुर - तरुवर - शाखा          लेखनी           पत्रमुर्वी ॥
लिखति      यदि      गृहीत्वा

Poet Shivam Singh Sisodiya

SrimadBhagwadgeeta 4.9 जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ || जन्म – जन्म; 

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जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ ||
{SrimadBhagwadgeeta 4.9}

 



भावार्थ


हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | SrimadBhagwadgeeta 4.9

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ ||



जन्म – जन्म; 

Poet Shivam Singh Sisodiya

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ || योगिनाम् – योगियों में से; अपि – भी; सर्वेषाम्

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योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना |
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ ||

भावार्थ
समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अन्तःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अन्तरंग रूप में युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है | यही मेरा मत है | योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना |

श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ ||



योगिनाम् – योगियों में से; अपि – भी; सर्वेषाम्
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