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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- जन्मदिवस गुरुदेव का , बन आया त्यौहार । महादेव वरदान दे , ख्याति बढ़े संसार ।। गुरुवर ही भगवान है , समझा मैं नादान । पाया दिक्षा ज्ञान की , आज बना इंसान ।। लालायित मैं था बहुत , हूँ गुरुवर सानिध्य । तम जीवन का जो हरे , आप वही आदित्य ।। कुण्डलिया :- सीखे हमने छन्द के , जिनसे चन्द विधान । चलो करें गुरुदेव का , छन्दों से सम्मान ।। छन्दों से सम्मान , बढ़ाए मिलकर गौरव । इतने हम हैं शिष्य , नही थे उतने कौरव ।। मीठे प्यारे बोल , नहीं वे होते तीखे । मन की कहना बात , उन्हीं गुरुवर से सीखे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- जन्मदिवस गुरुदेव का , बन आया त्यौहार । महादेव वरदान दे , ख्याति बढ़े संसार ।। गुरुवर ही भगवान है , समझा मैं नादान ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल जिसकी खातिर मैं यहाँ फूलों का लेकर हार बैठा । वो छुपाए हाथ में अब देख लो तलवार बैठा ।।१ प्यार में जिसके लिए मैं जान तक ये वार बैठा । वो हमें ही देखकर अब देख लो फुफकार बैठा ।।२ फर्ज हमने बाप का कुछ इस तरह से है निभाया । कह रही औलाद मेरी वो मेरा सरकार बैठा ।।३ मत हँसों संसार पे रघुनाथ की जयकार बोलो । देखता है वो सभी को जो लगा दरबार बैठा ।।४ जन्म देकर जो हमे संसार के काबिल बनाया । मैं उसे ही इस तरह दहलीज से दुत्कार बैठा ।।५ पूछ लो गुरुदेव से वो ही बतायेंगे तुम्हें सच । माँ पिता की गोद में तो यह सारा संसार बैठा ।।६ कौन सा वो फर्ज है संतान का तूने निभाया । जो प्रखर तू माँगने अब आज है अधिकार बैठा ।।७ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल जिसकी खातिर मैं यहाँ फूलों का लेकर हार बैठा । वो छुपाए हाथ में अब देख लो तलवार बैठा ।।१
Deepa Didi Prajapati
सुंदर शरीर नहीं अपितु निर्मल सुंदर ह्रदय पर जो न केवल अपने वरन् सभी के दुःख से दुःखी हो , ईश्वर सहज ही रीझ जातें हैं। जो किसी को करूण रूदन देकर धन कमाते हैं, उसके पूजा, तीर्थ, भंडारों को वह दीनदयाल कहां अपनाते हैं। ©Deepa Didi Prajapati #जय गुरुदेव 🌹🙏🌹
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मातु-पिता की बात पर, होना नहीं उदास । वो तो इतना चाहते , बने न तू परिहास ।।१ गौरीशंकर नाम का , कर ले प्यारे जाप । मिट जायेंगे एक दिन , सब तेरे संताप ।।२ जीवन के हर मोड़ पर , करिये गुरु का ध्यान । हो जायेंगी आपकी , राहें फिर आसान ।।३ स्वस्थ करो गुरुदेव को , विनती है रघुनाथ । उनका अपने शिष्य पर , रहता निशिदिन हाथ ।।४ तन पर दिखता है नहीं , अब तो कहीं गुलाल । मन में ज्यों का त्यों रहा , सबके आज मलाल ।।५ रंग प्रीति का जब चढ़े , फीका लगे गुलाल । आज सखी पाहुन मिले , हुए लाल फिर गाल ।।६ भटक गये हैं लोग सब , बिगड़ गये त्यौहार । मुर्गा दारू बिन यहाँ , नज़र न आये प्यार ।।७ २८/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मातु-पिता की बात पर, होना नहीं उदास । वो तो इतना चाहते , बने न तू परिहास ।।१ गौरीशंकर नाम का , कर ले प्यारे जाप । मिट जायेंगे एक दिन , सब त
Banwari Kumar Rajbhar