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Devesh Dixit
White पर्यावरण (दोहे) देखा पर्यावरण को, विचलित होता मीत। नष्ट कर रहा यह सभी, नहीं समझता रीत।। कैसी हालत कर रहे, देखो ये नादान। वृक्ष सभी ये काट कर, बनते हैं अनजान।। दूषित भी ये कर रहे, हम सब की जो शान। इसने ही पाला हमें, ये ही है वरदान।। दाता ने हमको दिया, ये सुन्दर संसार। पाया पर्यावरण को, है अपना शृंगार।। धरती माता रो रहीं, देखा जो ये हाल। मिटता पर्यावरण है, ऐसा फैला जाल।। सोच समझ सब खो चुके, कैसे हों आबाद। बैठे हैं जिस डाल पर, उसे करें बर्बाद।। जीवों को भी हो रही, अब दिक्कत यह खास। भटक रहे वे ग्राम को, रखते उनसे आस।। भोजन की विपदा बड़ी, वो भी हैं भयभीत। मानव संकट है बड़ा, होगी कैसे जीत।। ........................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #पर्यावरण #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry पर्यावरण (दोहे) देखा पर्यावरण को, विचलित होता मीत। नष्ट कर रहा यह सभी, नहीं समझता रीत।।
#पर्यावरण #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry पर्यावरण (दोहे) देखा पर्यावरण को, विचलित होता मीत। नष्ट कर रहा यह सभी, नहीं समझता रीत।। #Poetry #sandiprohila
read moreAnkur tiwari
White गुरुर किस बात का है तुम्हे बोलो किस बात हवाला हैं सोच समझ लफ्ज़ जाया करों तुमने क्या बात कब निकाला है इन कंकड़ों से हमें ना डराओ तुम पत्थर हैं कोई फ़र्क नही पड़ता अंजान क्या बिगाड़ लोगे तुम मेरा मुझे तो ख़ुद ठोकरों ने पाला हैं @mr_master__sab ©Ankur tiwari #sad_shayariगुरुर किस बात का है तुम्हे बोलो किस बात हवाला हैं सोच समझ लफ्ज़ जाया करों तुमने क्या बात कब निकाला है इन कंकड़ों से हमें ना ड
#sad_shayariगुरुर किस बात का है तुम्हे बोलो किस बात हवाला हैं सोच समझ लफ्ज़ जाया करों तुमने क्या बात कब निकाला है इन कंकड़ों से हमें ना ड #SAD
read moreAJAY NAYAK
कुछ अलग तरह का बंदा हूं अँख से अँख मिलेगी तभी समझ आएगा तेरा किससे पड़ा है पाला अँख फोड़कर नही ये आज का वो बंदा है सिर्फ अँख मारकर निकल जाएगा –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #sadak #Eyes कुछ अलग तरह का बंदा हूं अँख से अँख मिलेगी तभी समझ आएगा तेरा किससे पड़ा है पाला
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
लिए त्रिशूल हाथों में गले में सर्प डाले हैं । सुना है यार हमने भी यही वो डमरु वाले हैं ।।१ नज़र अब कुछ इधर डालें लगा दो अर्ज़ मेरी भी। सुना हमने उसी दर से सभी पाते निवाले हैं ।।२ यही हमको निकालेंगे कभी बेटे बडे़ होकर । अभी जिनके लिए हमने यहाँ छोडे़ निवाले हैं ।।३ नहीं रोने दिया उनको पिया खुद आँख का पानी । दिखाते आँख अब वो हैं कि हम उनके हवाले हैं ।।४ किसी को क्या ख़बर पाला है मैंने कैसे बच्चों को वहीं बच्चे मेरी पगड़ी पे अब कीचड़ उछाले हैं।।५ यहाँ तुमसे भला सुंदर बताओ और क्या जग में । तुम्हारे नाम पर सजते यहाँ सारे शिवाले हैं ।।६ डगर अपनी चला चल तू न कर परवाह मंजिल की । तेरे नज़दीक आते दिख रहे मुझको उजाले हैं । ७ प्रखर भाता नहीं बर्गर उन्हें भाता नहीं पिज्जा । घरों में रोटियों के जिनके पड़ते रोज़ लाले हैं ।।९ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लिए त्रिशूल हाथों में गले में सर्प डाले हैं । सुना है यार हमने भी यही वो डमरु वाले हैं ।।१ नज़र अब कुछ इधर डालें लगा द
लिए त्रिशूल हाथों में गले में सर्प डाले हैं । सुना है यार हमने भी यही वो डमरु वाले हैं ।।१ नज़र अब कुछ इधर डालें लगा द #शायरी
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