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D.R. divya (Deepa)
इस ऋतु बसंत की आड़ में अगर तुम चाहो तो इक रोज हम भी मिलेंगे, बसंत के असंख्य कुसुमों के बीच दो फूल हम भी खिलेंगे। ये ऋतुराज स्थिर रहे या ना रहे, हम अपनी वस्ल का ये सिलसिला हर मौसम में भी जारी रखेंगे। तुम अगर चाहो तो, मिलकर कुछ गीत भी प्रेम के गुनगुनाते रहेंगे। जिस तरह आकाश घिर जाता है मेघों की ओट से, हम भी उसी भांति प्रणय से घिर जाएंगे। ताउम्र ये हाथ तुम्हारे हाथों में ही रहे , इसलिए इक रोज इसी प्रणय के साथ, परिणय सूत्र में बंध जाएंगे। तुम अगर चाहो तो, इस ऋतु बसंत की आड़ में इक रोज हम भी मिलेंगे ।। ©D.R. divya (Deepa) #Basant #Love #Life #you #Trending
Sanjeev Suman
Autumn ये पत्तों की टहनियों से जुदा होने का मौसम है। तन्हा छोड़ उन्हें हवाओं से इश्क लड़ाने का मौसम है। ये पतझड़ है। गम की नम आंखों से झांकती टहनियों के वीराने का मौसम है। जो शाख से टूटकर जा चुके अब उन्हें भुलाने का मौसम है। ये पतझड़ है। गर्म हवाओं से दूर सर्द हवाओं का मौसम है। बहार ए वफ़ा की न फिक्र कर ये बेवफाओं का मौसम है। ये पतझड़ है ©Sanjeev Suman #autumn #patjhad ka Mahina
Dr Nutan Sharma Naval
मुक्तक खिल गए पुष्प फिर से बसंत में। सौंधी सी महक फिर से बसंत में। कूके कोकिल भी गुनगुनाती हुई। सब रहे हैं बहक फिर से बसंत में। ©Dr Nutan Sharma Naval #muktak#basant #nutannaval
SHIVA KANT(Shayar)
पतझड़ जैसे एहसासों में, तुम मोहब्बत की बयार हो..! शुष्क होते अल्फ़ाज़ों की, यूँ मौसम-ए-बहार हो..! ©SHIVA KANT(Shayar) #GingerTea #bahaar
Saumitra Tiwari
पलाश के वनों का फूलों से खिल जाना आम के बागों का बौर से लद जाना सरसों का पीलापन और बालियों का मुस्काना इसका मतलब है फिर बसंत का आ जाना ----सौमित्र तिवारी ©Saumitra Tiwari #agni #Nature #Basant
Dr Nutan Sharma Naval
मुक्तक खिल गए पुष्प फिर से बसंत में। सौंधी सी महक फिर से बसंत में। कूके कोकिल भी गुनगुनाती हुई। सब रहे हैं बहक फिर से बसंत में। ©Dr Nutan Sharma Naval #मुक्तक_श्रृंखला#basant#nutannaval