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Deepak
Yusufi Media
ग़लत बात पर गुस्सा आ जाना शराफत है, लेकिन उसी गुस्से को पी जाना मोमिन की निशानी है ©Yusufi Media ग़लत बात पर गुस्सा आ जाना शराफत है, लेकिन उसी गुस्से को पी जाना मोमिन की निशानी है #YusufiMedia #islamicpost #viralpost
ग़लत बात पर गुस्सा आ जाना शराफत है, लेकिन उसी गुस्से को पी जाना मोमिन की निशानी है #YusufiMedia #islamicpost #viralpost
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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset तुम तब भी ग़लत फ़हमी में थे तुम अब भी ग़लत फ़हमी में हो उसका कोई मतलब ही नही तुम जिस गहमा गहमी में हो ©Vk srivastav तुम तब भी ग़लत फ़हमी में थे #Life #Quotes #Poetry #SAD #Love #Shayari #vksrivastav
तुम तब भी ग़लत फ़हमी में थे #Life #Quotes Poetry #SAD Love Shayari #vksrivastav
read moreDev singhaniya
लड़का ग़लत हो तो उसे एक लड़की सुधार सकती है लेकिन लड़की अगर अपने चरित्र का सौदा करने पे आ जाये तो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं सुधार सकती। शुभ प्रभात ©Dev singhaniya लड़का ग़लत हो तो उसे एक लड़की सुधार सकती है लेकिन लड़की अगर अपने चरित्र का सौदा करने पे आ जाये तो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं सुधार सकती।
लड़का ग़लत हो तो उसे एक लड़की सुधार सकती है लेकिन लड़की अगर अपने चरित्र का सौदा करने पे आ जाये तो उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं सुधार सकती।
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White कुछ ग़लत हो तो सवाल अच्छा है जवाब ना मिले सही तो बवाल अच्छा है ©Vk srivastav कुछ ग़लत हो तो #vksrivastav #Love #Quotes #Shayari #SAD #poem #Trending #viral #Dil
कुछ ग़लत हो तो vksrivastav Love Quotes Shayari SAD poem Trending viral Dil
read morejameel
White ये कैसी दीवानों की दीवानगी है क्या उन्हे सही गलत की पहचान भी है जिसे ढूँढ रहे है मन्दिर और मस्जिद में जनाब हमारे सर पर आसमान भी है जमील ©jameel Khan # सही ग़लत #
# सही ग़लत #
read moretheABHAYSINGH_BIPIN
दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे, जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे। खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा, पड़ी ज़ंजीरों से ख़ुद को कब तक बाँधोगे। वक़्त के साथ बेहिसाब ग़लतियाँ की हैं तुमने, सलाखों के पीछे ख़ुद को कब तक छुपाओगे? जो कभी साथ छांव सा था, वह अब छूट गया, आख़िर खुद से ये जंग कब तक लड़ोगे। लोग माफ़ी देते हैं एक-दूसरे को अक्सर, आख़िर तुम खुद को कब तक सताओगे। रिहाई जुर्म से नहीं मिलती, यह तो मालूम है, आख़िर ग़लतियों पर कब तक पछताओगे। प्रकृति में सूखी डालें भी बहार में पनपती हैं, खुद को सहलाने का वक़्त कब तक टालोगे। वक्त हर नासूर बने ज़ख्मों को भी भरता है, आख़िर ज़ख्मों को भरने से कब तक डरोगे। ©theABHAYSINGH_BIPIN दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे, जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे। खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा, पड़ी ज़ंजीरों से ख़
दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे, जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे। खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा, पड़ी ज़ंजीरों से ख़
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