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Arora PR

भगवान शैतान और इंसान #कविता

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Arora PR

शैतान #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से ,  दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो #कविता

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मनहरण घनाक्षरी :-
लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो ।
त्यागो अभी हृदय से ,  दुष्ट अभिमान को ।
नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो ,
चलो सब मिलकर, करो मतदान को ।
ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं
पहचानते  है हम , छुपे शैतान को ।
मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे,
रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१
वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता , 
पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से ।
मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे,
आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से ।
घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय,
देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से।
घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया ,
पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२
टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती ,
रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे ।
नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई ,
पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे ।
मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान ,
कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे ।
और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई,
जब तेरी याद आई ,  सुन लो बीमार थे ।।३
२८/०३/२०२४      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :-
लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो ।
त्यागो अभी हृदय से ,  दुष्ट अभिमान को ।
नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो ,
चलो

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- विषय - आँसू पश्चाताप के आँसू पश्चाताप के ,  निकल पड़े हैं आज । छल-बल से अब तक किया , जो जनता पे राज ।।१ #कविता

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दोहा :- विषय - आँसू पश्चाताप के

आँसू पश्चाताप के ,  निकल पड़े हैं आज ।
छल-बल से अब तक किया , जो जनता पे राज ।।१

आँसू पश्चाताप के , जिसको देते  दंड़ ।
दिखता तो संपूर्ण है , भीतर होते खंड़ ।।२

आँसू पश्चाताप के , धोये तेरे पाप ।
कुछ ही दिन में देखना , घट जाये संताप ।।३

आँसू पश्चाताप के , आयेंगे जब नैन ।
अंतरमन में देखना , आयेगा तब चैन ।।४

आँसू पश्चाताप के , गिरा सके इंसान ।
उसके अच्छे कर्म का , देते फल भगवान ।।५

अब कर्मो के दंड़ से , दुखी हुआ शैतान ।
आँसू पश्चाताप के , गिरा रहा नादान ।।६

नरभक्षी इंसान से , करो हमें प्रभु दूर ।
संग रहूँ इनके सदा , करो नहीं मजबूर ।।७

१०/०२/२०२४   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- विषय - आँसू पश्चाताप के


आँसू पश्चाताप के ,  निकल पड़े हैं आज ।

छल-बल से अब तक किया , जो जनता पे राज ।।१

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा । गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।। भूल कहाँ होती मानव से ... पूर्ण कहाँ है ये म #कविता

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गीत
भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा ।
गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।।
भूल कहाँ होती मानव से ...

पूर्ण कहाँ है ये मानव जो, संपूर्ण बना अब बैठा है ।
आज विधाता को ठुकराकर , जो ज्ञानी अब बन ऐठा है ।।
बता रहा है वो जन-जन को , मुझको पहचाना जायेगा ।
भूल कहाँ होती मानव से ...।

खूबी अपनी बता रहा है , वह घर-घर जाकर लोगों को ।
पर छुपा रहा वह सबसे अब, बढ़ते दुनिया में रोगों को ।।
किए जा रहा नित्य परीक्षण , की ये परचम लहरायेगा ।
भूल कहाँ होती मानव से ...।

संग प्रकृति के संरक्षण को , आहार बनाता जाता है ।
अपनी सुख सुविधा की खातिर , संसार मिटाया जाता है ।।
ऐसे इंसानों को कल तक , शैतान पुकारा जायेगा ।
भूल कहाँ होती मानव से ....

भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा ।
गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।।

१०/०२/२०२४       -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा ।

गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।।

भूल कहाँ होती मानव से ...


पूर्ण कहाँ है ये म

Neelam Modanwal

शैतान पप्पू😁🤣🤭 Äñgëĺîñä (Añgëľ) Mahi PRIYANKA GUPTA(gudiya) Anshu writer वंदना .... #कॉमेडी

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Divyanjli Verma

तो मैंने आज का दिन अपने फोन के कैलेंडर में कुछ ऐसे सेव कर लिया है जिससे मुझे याद रहे की कलयुग के आज के दिन ही किसी कली की बुरी नजर पड़ी थी म #विचार

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Divyanjli Verma

तो मैंने आज का दिन अपने फोन के कैलेंडर में कुछ ऐसे सेव कर लिया है जिससे मुझे याद रहे की कलयुग के आज के दिन ही किसी कली की बुरी नजर पड़ी थी म #विचार

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा    सरसी छन्द  मात्रा भार    :- १६/११ माता तेरे दर पर देखो , आया है शैतान । मान रहा है अपनी गलती , कहकर मैं नादान ।। #कविता

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विधा    सरसी छन्द 
मात्रा भार    :- १६/११

माता तेरे दर पर देखो , आया है शैतान ।
मान रहा है अपनी गलती , कहकर मैं नादान ।।
तेरा ही तो बालक हूँ मैं , भटक गया था राह ।
ठोकर खाकर मन में जागी , अब जीने की चाह ।।

काया-माया में मैं उलझा , भूल गया व्यवहार ।
रिश्ते-नाते तोड़ सभी मैं , किया सदा व्यापार ।।
पाप पुन्य का मर्म न जाना , बना रहा बलवान ।
बनकर पापी द्वार तुम्हारे , आया मैं भगवान ।।

किसको जाकर आज बताऊँ , मैं जीवन की भूल ।
यही कर्म मम जीवन पथ में , बने हुए हैं शूल ।।
उनको समझ लिया था भगवन , जो भी थे धनवान ।
मातु-पिता होते है भगवन ,  नही मिला  था ज्ञान ।।

०३/०१/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा    सरसी छन्द 

मात्रा भार    :- १६/११


माता तेरे दर पर देखो , आया है शैतान ।

मान रहा है अपनी गलती , कहकर मैं नादान ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- बात दिल में हमारे दबी रह गई । प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१ #शायरी

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ग़ज़ल :-

बात दिल में हमारे दबी रह गई ।
प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१

आँख में आँसुओं की नमी रह गई ।।
ज़िन्दगी में उसी की कमी रह गई ।।२

देख शैतान फिर से हुआ है खफ़ा ।
बाग में क्यों कली अधखिली रह गई ।३

ले गया कौन फल तोड़ कर बाग के ।
डालियों में ये नाजुक फली रह गई ।।४

डोर को छोड़कर जो उड़ी थी पतंग ।
फिर ज़मीं पर कहीं वो पड़ी रह गई ।।५

आज बरबाद ऐसे हुए हम यहाँ ।
पूर्वजों की ज़मीं बेचनी रह गई ।।६

कौन करता खुशामद किसी की यहाँ ।
कोर सबकी यहाँ पर फँसी रह गई ।।७

सो न पाया यहाँ मैं कभी रात में ।
नींद आँखों में मेरी धरी रह गई ।।८

प्यार जबसे हुआ है सुनो तो प्रखर ।
दिल हमारे अजब रोशनी रह गई ।।९

३०/१२/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


बात दिल में हमारे दबी रह गई ।

प्यास होंठो पे आकर थमी रह गई ।।१
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