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vikas Mourey
हो रही तैयारी पूरी दशरथ पुत्र के राजभवन की। उत्साह में झूम रही है कलियां और ये बगिया सारी। झूम रहे हैं संग नर नारी। योगी आए मोदी आए दास बनकर आय कुलपति प्रोहित पुजारी। आई है संग में संतों की टोली अरे तैयार हो जाओ सब लेकर हाथों में पूजा की थाली आ रहे हैं भगवाधारी। हो रही तैयारी पूरी दशरथ पुत्र के राजभवन की 🙏🙏🙏..........जय जय श्री राम....🙏🙏🙏🙏 लेखक विकास मौर्य✍✍✍✍ राम के राजभवन की तैयारी🙏🙏🙏🙏 विकास के अल्फाज✍✍✍✍
Pratima pandey
मनुष्य अपने अच्छे गुणों के कारण ही श्रेष्ठता को प्राप्त होता है, ऊंचे आसन पर बैठने के कारण नहीं। राजभवन की सबसे ऊंची चोटी पर बैठने पर भी कौआ कभी गरुड़ नहीं बन सकता। ©Pratima pandey #friends मनुष्य अपने अच्छे गुणों के कारण ही श्रेष्ठता को प्राप्त होता है, ऊंचे आसन पर बैठने के कारण नहीं। राजभवन की सबसे ऊंची चोटी पर बैठने
#maxicandragon
मै नहीं कहता के वो बदला है हाँ मैं ये कहता हूँ ये बदला है बदला बदलते रूप का बदला बदलते स्वरूप का बदल तो गया था वो उस दिन नष्ट कर अधर्म स्थापित धर्म हुआ था जिस दिन उसी स्थापना का ये बदला है क्या कहते हो भाई, बैरी कही बदला है वो बदल के पोषक अपनी करतूतों को ढंकता है दिन मे पांच प्रकार से अपने ईष्ट देव को तकता हैं तोडे कई 33कोटी तुमने लिखा नहीं कुछ खुद तुमने गर इतने ही तुम साक्षर होते तो पृथ्वी चपटी न कहते हम होते जब राजभवन में तब तुम पाषाण युग मे होते यही कसमसाहट से ही तुमने प्रण लिया था लेंगे बदला सत्य सनातन अजर अमर है जो था है और कभी न बदला #बदला #साधारणमनुष्य #Sadharanmanushya ©#maxicandragon मै नहीं कहता के वो बदला है हाँ मैं ये कहता हूँ ये बदला है बदला बदलते रूप का बदला बदलते स्वरूप का बदल तो गया था वो उस दिन नष्ट कर अधर्म
Niharika singh chauhan (अद्विका)
" चुनावी मौसम " देखिए इस मुल्क में कैसा निजाम है लोकतंत्र फूंकने का इंतजाम है सत्ता पर काबिज हो पाएगा वही जिसके पास जितना बड़ा तामझाम है *
Manaswin Manu
रजनीश "स्वच्छंद"
मैं लिखता हूँ।। बातें सबकी मैं लिखता हूँ, सच के सम्मुख मैं टिकता हूँ। कभी बंधा मैं पन्नों में, फिर सरेआम मैं बिकता हूँ। कभी विरल तो कभी सघन, भाव मैं सिंचित करता हूँ। हो दरबारी राजभवन में, ना मैं किंचित रहता हूँ। आदि अनन्त दुर्लभ भी कभी, कभी तुतलाता बालक हूँ। मां की ममता में लोट लोट, पीछे चलता एक शावक हूँ। मील का पत्थर बनूँ कभी, पथद्रष्टा मूक बधिर रहा। दवानल बन कभी उमड़ता, कभी मैं शीतल क्षीर रहा। पाप पुण्य के महासमर में, मैं दोनों को भाता हूँ। रावण बन हरता सीता भी, कभी मैं लक्ष्मण भ्राता हूँ। तुम जो पाठक बन जाओ, मैं खड़ा तटस्थ अनुयायी हूँ। गर मैं तुमको छू न सका, कागज़ पर छिड़का स्याही हूँ। लज्जा भी कहुँ न लज्जित हूँ, मैं रक्त हुआ न रंजित हूँ। हृदय भाव मे ढलता हूँ, कभी समुचित कभी खण्डित हूँ। वीर पढ़ें और धीर पढ़ें, कुछ प्रश्न उठा मैं चलता हूँ। और कभी बना पागल प्रेमी, प्रियतमा की बांहों में गलता हूँ। बस गिने चुने ही अक्षर हैं, भाव अप्रतिम मैं गढ़ता हूँ। हाथ पकड़ मैं कभी सहायक, बन अन्तर्द्वन्द्व कभी मैं लड़ता हूँ। ईश की भी गाथा मुझमे, दानव का भी सरोकार रहा। कभी हूँ बनता कुरुक्षेत्र, मानवता का त्योहार रहा। कभी कोई गुणगान करे, कभी मुझमे ऐब निकाले हैं। ले दर्पण देखो निज को, चित-जड़ित कई कई ताले हैं। चलो विवेक की बात कहुँ, पार्श्व गीत एक गाता हूँ। जब खड़ी मानवता दो राहे पे, बन इतिहास मैं आता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" मैं लिखता हूँ।। बातें सबकी मैं लिखता हूँ, सच के सम्मुख मैं टिकता हूँ। कभी बंधा मैं पन्नों में, फिर सरेआम मैं बिकता हूँ। कभी विरल तो कभी सघ
TheInsaneInk
ये कैसा कत्ल ऐ आम है! check caption ये कैसा कत्ल ऐ आम है। जिस्म बेलिबास है। हवस बेलगाम है। इश्क का खोया नाम है। लाखों संदेश हों सनम की खातिर फ़ोन पर, पर अम्मी अब्बू के नाम के खत