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Divyanshu kumar singh
White जिसके दिल में, बस्ती मेरी जान है, वह मेरी माँ है। पल-पल आती मुझको जिसकी याद है, वह मेरी माँ की ममता और प्यार है। माँ और माँ की ममता, एक ही इंसान के दो गुण है, कोई नहीं है एक-दूसरे से छोटा, सब अपने जगह महान हैं। माँ और माँ की ममता दोनों ही, मेरे लिए भगवान हैं। ~दिव्यांशु कुमार सिंह✍️ ©Divyanshu kumar singh #mothers_day जिसके दिल में, बस्ती मेरी जान है, वह मेरी माँ है। पल-पल आती मुझको जिसकी याद है,
Niaz (Harf)
वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। आग।।।।।। आग, लगा कर बस्ती में, खुद ही चिल्ला रहा है। ख़बर सब को है यहां, मेरे क़त्ल की। ख़बर सब को है यहां, मेरे क़त्ल की। वो इस क़त्ल को, हादसा बता रहा है। वो इस क़त्ल को, हादसा बता रहा है। वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। फ़रियाद भी करें तो , किससे करे।। फ़रियाद भी करें तो , किससे करे।। वो खुद नया नया कानून बना रहा है । वो खुद नया नया कानून बना रहा है । वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। ©Niaz (Harf) वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। आग।।।।।। आग, लगा कर बस्ती में, खुद ही चिल्ला रहा है। ख़बर सब को है यहां, मेरे क़त्ल की। ख़बर सब क
Ashutosh Mishra
White कुछ पाया,, सब कुछ खो करके चला दिवाना अपनी नगरी रस्ता-रस्ता बस्ती-बस्ती कहता जाता प्यार ना करना दुनिया वालों,,,,,मिट जाती है हस्ती अलफ़ाज मेरे✍️🙏🙏 ©Ashutosh Mishra #sad_shayari #सब_कुछ #खोया_पाया #दीवाना #बस्ती #हस्ती
Mahadev Son
ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी माँ का डेरा वैसे तो रोज भटकाता है आज मेरा भी ज़ी करता तुझे भटकाने को बस अब ले चल सपनों में सही बस तू ले चल अब उस बस्ती में जहाँ माँ का डेरा है ©Mahadev Son ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी म
Himanshu Prajapati
आप की बातें दिल पर लगतीं हैं, आपकी बातें दिल में बस्ती हैं, दोनों में नफ़रत और प्यार का अन्तर है..! ©Himanshu Prajapati #quotation आप की बातें दिल पर लगतीं हैं, आपकी बातें दिल में बस्ती हैं, दोनों में नफ़रत और प्यार का अन्तर है..!
Arora PR
Men walking on dark street ज़ुबा खामोश है और ख़ौफ़ खिर सर पर मंडरा रहा कातिलों क़ी इस बस्ती मे गुनाहो का बिगुल अब बजने मे है ©Arora PR कातिलो क़ी बस्ती
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
दर्द उगते रहे मैं गुनगुनाता रहा चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा हादसों की कितनी सूरत लिए वक्त आता रहा और'जाता रहा देवता मानने की, भूल हो गई पत्थरों पर सिर, टकराता रहा बस्ती के अंधेरे से घबरा गया रात भर उम्मीदें, जलाता रहा खुरच दी लकीरें हथेलियों से नसीब इस तरह मिटाता रहा मुर्दा एहसास की वो कहानी बेवज़ह सभीको सुनाता रहा तमाम उम्र गफ़लत में गुजरी हकीकत की मार खाता रहा ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #दर्द #उगते #रहे #मैं #गुनगुनाता रहा चोट खाकर भी,मुस्कुराता रहा हादसों की कितनी सूरत लिए वक्त आता रहा और'जाता रहा देवता मानने की, भूल हो
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल:- लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले । लुटाते प्यार चाहत करने वाले ।। जुबां जिनकी नहीं मीठी यहाँ पे । करें वो बात आहत करने वाले ।। तलाशो अब जहाँ में दीप लेकर । कई होगें शराफ़त करने वाले ।। बहुत आसान उनको खोजना है । यहाँ जो हैं मुसीबत करने वाले ।। गिने ही लोग हैं संसार में अब । बेटियों की हिफ़ाज़त करने वाले ।। सकूँ मिलता नही बिन माँ तुझे अब । चलो माँ की अक़ीदत करने वाले चला जा छोड़कर बस्ती प्रखर तू । यहाँ सब हैं नसीहत करने वाले ।। २३/०२/२०२४ -- महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले । लुटाते प्यार चाहत करने वाले ।।