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Bharat Bhushan pathak
#RIPRohitSardana महाकाल! विषहर, धर मार ये विषधर। दे दान, जीवनज्योति सबको देकर क्षमादान अबोध जान, कर दया तू दयावान। जब भी मुख को, हम खोलें हो केवल ॐ निनाद, स्वाँस ॐ निश्वास ॐ ॐ ही हो प्रश्वास। और ॐ ही उच्छवास🙏 भारत भूषण पाठक"देवांश"🙏🌹🙏 ©Bharat Bhushan pathak महाकाल! विषहर, धर मार ये विषधर। दे दान, जीवनज्योति सबको देकर
कवि कुमार रोहित
Shipra Pandey ''Jagriti'
जिस पर हम बेधड़क दूर तलक चल देते थे बात ही बात में कभी साथ तो कभी आस लिए कौन होता था उन सड़कों पर तेरे मेरे सिवाय मौन की चादर ओढ़े हम दोनों ही गहरी उच्छवास लेते साध चलने की आभिलिप्सा मौन तोड़ने की अकुलाहट जब जब गुजरना होता है मौन के सुनसान गलियारे से वो तुम्हारे साथ का विरान सड़क बहुत याद आता है हाँ..! विरान ही तो होता था वो सड़क हम साथ होकर भी अजनबी सा मौन जो लेते पर आज.. आज वो मौन वो बातों का खालीपन याद आता है। आज सोचती हूँ कभी कभी मौन में भी संवाद से ज्यादा भाव प्रवाह होता है। ©Shipra Pandey ''Jagriti' #WoSadak जिस पर हम बेधड़क दूर तलक चल देते थे बात ही बात में कभी साथ तो कभी आस लिए कौन होता था उन सड़कों पर तेरे मेरे सिवाय मौन की चादर ओ
Shree
है ना, कहिए! तुम कोई नहीं हो मेरे, पर हां मेरे सब कुछ हो, अंबर रुठ जाए तो सूरज दिन ठहर जाए तो चंदा वक्त की फ़ेहरिस्त में सबब तुम सुकूं,तुम्हीं एतवार
Dr. Naveen Prajapati
मजनू को लैला की, रांँझा को हीर की राधा को श्याम की, सीता को राम की । धनुर्धर को तीर की, निर्वस्त्र को चीर की; प्यासे को नीर की, सिंहासन को वीर की । आत्मा को शरीर की, मानव को ज़मीर की; अग्नि को समीर की,अभागे को तक़दीर की । धरती को सूरज की, पंक को नीरज की; चकोर को चांँद की, सिंदूर को मांँग की । माली को फूल की, वृक्ष को मूल की; धोबी को धूप की, शिल्पकार को रूप की । वृद्ध को लाठी की, कुम्हार को माटी की; दीए को बाती की, कवि को ख्याति की । अंतरंग को शुद्धि की, समाज को समृद्धि की; विद्यार्थी को बुद्धि की, संन्यासी को सिद्धि की । भूखे को पकवान की, सेना को जवान की ; बांझ को संतान की, बेघर को मकान की। अज्ञानी को ज्ञान की, डॉक्टर को सम्मान की; देश को संविधान की, जीवन को विज्ञान की । संबंध को विश्वास की, रूह को एहसास की; मिट्टी को उच्छवास की, भोगी को विलास की अन्धकार को प्रकाश की, देश को विकास की; घमंडी को विनाश की ,और विचारों को निकास की । #dr_naveen_prajapati #शून्य_से_शून्य_तक #कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है.. हे प्रियतम ! मुझे तुम्हारी जरूरत उतनी है, जितनी - मजनू को लैला की