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Kulbhushan Arora
दीपावली 🪔🪔🪔🪔 *राम* जी का संदेश *काल* की चेतावनी समय सबको चेता रहा कितना पतन हुआ हमारा दिखला रहा समय के इस वर्ष में समय की सुनो
kumaarkikalamse
प्रिय मुकुल, मैं जानता हूँ पत्र लिखना जितना मुझे पसंद है उतना तुम्हें भी और हाँ मैं तुम्हें हक़ से 'तुम' कह सकता हूँ..। पत्र में तुमसे हुई कुछ गुफ़्तगू लिख रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ तुम वर्तमान में रहकर, भूत को जियो गे और भविष्य को सुन्दर करोगे..। पहला संस्मरण :- दिन, दिनाँक तो याद नहीं पर जब पहली बार तुमसे मैंने दाऊ सुना था, सच में ख़ुद को बलराम मानने लगा था और यकीन होने लगा था कि बड़ा हूँ.. (मज़ाक नहीं है यह) यहां पर ज्यादतर लेखक, पाठक मुझे भाई, सर या दोस्त ही कहते, दाऊ कभी नहीं सुना, ना ही कभी जिंदगी में अब तक किसी ने सामने से कहा.. यह मेरी लाइफ में सुना शायद सबसे प्यारा संबोधन हैं मेरे लिए क्योंकि इसमे केवल संबोधन नहीं, प्यार है, सम्मान है..। प्रिय मुकुल, मैं जानता हूँ पत्र लिखना जितना मुझे पसंद है उतना तुम्हें भी और हाँ मैं तुम्हें हक़ से 'तुम' कह सकता हूँ..। पत्र में तुमसे हुई
रिंकी✍️
हँस रहे है जनाब क्या हुआ ? हँस रहे है क्या कोई जोक सुना? नही नही जनाब वो कहते है मैं सच बोलती हूँ। मैं तो हर कदम पर झूठ टटोलती हूँ। इसलिए बस जोर जोर से हँस रही हूँ। आज कौन सा झूठ बोलू यही सोच रही हूं। लेकिन जनाब ये झूठ बोलने की आदत , सिर्फ मेरी नही । नेता भी भी भाषण में यही गाते है। हम तो जनता है विचारे फंस जाते है। डॉक्टरों की तो बस न पूछे जनाब । झूठ बोलकर पैसे बहुत कमाते है। आखिर नकली बीमारी की , दवा जो हम खाते है। झूठ तो बहुत बलवान है जनाब। यहाँ इसके दम पर साधारण मनुष्य भी, ढोंगी साधु और पंडित बन जाते है। ✍️रिंकी हँस रहे है जनाब क्या हुआ ? हँस रहे है क्या कोई जोक सुना? नही नही जनाब वो कहते है मैं सच बोलती हूँ। मैं तो हर कदम पर झूठ टटोलती हूँ। इसलिए ब
Garima Singh
मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए। ©Garima Singh मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए। #viral #T
Insprational Qoute
बढ़ाइये ऐसे कदम,जाए लक्ष्य के पार, 1 2 1 222 111,21 111 2 21 पीछे फ़िर हटना नही,आये फूल या खार। 22 1 1 112 12, 22 21 2 21 हौसला न गिराना,न राह से डगमगाना, 2 1 2 1 1 2 2,1 2 1 2 111 2 2, चलना हो बेख़ौफ़,न ही मनोबल गिराना 1 1 2 2 22 1 , 1 2 1 2 11 1 2 2, सम्पूर्ण हो काज ,न करने से घबराइये, 1 1 211 221,1 11 2 2 11212, रख विश्वास मन मे,बस कदम को बढ़ाइये, 1 1 1121 11 2,11 111 2 1 2 12 ----------------------------------------------- कुंडलिया छंद की परिभाषा ———————————------------ –कुंडलिया छंद दोहा और रोला छंद से मिलकर बन
Insprational Qoute
नित नित ध्यान लगाये,सु सम्पन्न हो काज, न करो ऐसा कर्म तुम,करनी पड़े फिर लाज, सब जन का मान कर,बन जाये सब हितैषी, याद करे जमाना , छाप छोड़ दे ऐसी, निशिदिन काज कर्म कर,पूर्ण हो जीवन सार, भटकना न लक्ष्य से,सँवर जायेगा संसार। प्रतियोगिता : BKJ-9 समय सीमा : 9:15AM-10:00PM दिनाँक : 07.11.2020 विषय : स्वैछिक विषय पर एक कुंडलिया लिखना है। -----------------------------
B Pawar
"असहायों का आसरा मत छीन बेजुबानो को सता ना बुद्धि हीन निर्दोष जीवों को काटते हो पाखंडीयों जीवों को धर्म में बाँटते हो।" जीवों पर हिंसा से पहले तुम क्यूँ नहीं सुनते उनका करुण रुदन जीवों पर हिंसा से पहले तुम क्यूँ नहीं महसूस करते उनका वेदन। जीवों पर यातना से पहले तुम क्यूँ नहीं सुनते उनकी चीख पुकार जीवों की हत्या से पहले तुम क्यूँ नहीं सुनते उनकी गुहार। "मुर्दा खोर", हो तुम सारे मांसभक्षी यों तुम हो हत्यारे वाणी से भी हिंसा करते कर्मों से भी हिंसा करते। तुम्हारे कुकर्मों से ही , धरती पर हो रहा है असंतुलन चलते इसके दुष्प्रभाव से , हो रहा जलवायु परिवर्तन। मुर्दाखोर “मुर्दाखोर” से मेरा मतलब , उन सभी माँसाहारी इंसानो से है जो अपनी भूख , दूसरे निरपराधी जीवो को मारकर मिटाते है।अब यदि आप माँसाहारी
Pankh.... Ek Soch ✍️
मै तो तुझमे ही रहती हूं कान्हा तू रहता कहां है !! कान्हा तू रहता कहां है !! ••••••••••••••••••••••••••••••••• कान्हा की बाहों में राधा आज थोड़ा खोई खोई सी लागे है कान्हा ने पूछ लिया ,
Divyanshu Pathak
मंदिर 02 प्रेम पथ के यात्री को क्रोध विक्षिप्त कर डालता है। क्योंकि प्रेम अहंकार शून्य स्थिति में संभव है। क्रोध अहंकार का पर्याय है। प्रेम ह्वदय मे रहता है,अहंकार बुद्धि में। स्वभाव से दोनों ही विरोधाभासी हैं। प्रेम में व्यक्ति स्वयं को कभी नहीं देखता। प्रेमी के आगे स्वयं लीन हो जाता है। जैसे मन्दिर में ईश्वर के आगे समर्पित होकर चित्त में उसको स्थिर कर लेता है। यही तो प्रेम की परिभाषा है। वहां कभी दो नहीं रहते। सही अर्थो में तो कर्म का कर्ता भी व्यक्ति नहीं होता। जब कामना तथा कामना पूर्ति का निर्णय दोनों ही व्यक्ति के हाथ में नहीं हैं,तब उसका कर्ता