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Parasram Arora
एक कली नन्ही सीi. इतराई थी अपनी गंध भरी देह देख कर आज वह विवशता के झांसे मे हा जा फंसी आया था भ्र्मर रसविहीन कर गया था उसे औऱ रवि किरणों ने शुष्कतकीओर ढकेल दिया उसे.... सुबह ही तो जन्मी थी कितनी प्रसन्न थी वो हाय जीवन उसका नष्ट हुआ ऐसी ये क्या शाम हुईं यहां हरचीज बनती औऱ बिगड़ती हैँ सत्तत प्रवाह हैँ कुछभी यहां स्थिर नहीं....... मरण धर्मा.....
DR. LAVKESH GANDHI
बुद्ध पूर्णिमा आज का दिन है बहुत ही पावन अवतरण, ज्ञान प्राप्ति एवं महानिर्वाण तीनों हुआ पूर्णिमा के ही पावन दिन चलो हमसब भी अहिंसा को अपनाएंँ महात्मा बुद्ध के आदर्शो को जीवन में अपनाएँ शान्ति और सौहाद्र का संदेश जन-जन तक पहुंचाएंँ ©DR. LAVKESH GANDHI #BudhhaPurnima # # अहिंसा परमो धर्मा :#
SK Poetic
“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: ” इस श्लोक के अनुसार अहिंसा ही मनुष्य का परम धर्म हैं और जब जब धर्म पर आंच आये तो उस धर्म की रक्षा करने के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म हैं। यानि हमें हमेशा अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लकिन अगर हमारे धर्म पर और राष्ट्र पर कोई आंच आ जाये तो हमें अहिंसा का मार्ग त्याग कर हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए। क्यूंकि वह धर्म की रक्षा की लिए की गई हिंसा ही सबसे बड़ा धर्म हैं। जैसे हम अहिंसा के पुजारी है लकिन अगर कोई हमारे परिवार को कोई हानि पहुंचता हैं तो उसके लिए की गई हिंसा सबसे बड़ा धर्म हैं। वैसा ही हमारे राष्ट्र के लिए हैं। ©S Talks with Shubham Kumar #safar अहिंसा परमो धर्मा