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atrisheartfeelings
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥ जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥ मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥ पुनि संभारि उठी सो लंका। जोरि पानि कर बिनय ससंका॥ जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥ बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥ तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥ तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥ #sundarkand #sunderkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #devotional #goodmorning मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंक
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 3 हनुमानजी छोटा सा रूप धरकर लंका में प्रवेश करने का सोचते है पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥3॥ हनुमानजी ने बहुत से रखवालो को देखकर मन में विचार किया की मै छोटा रूप धारण करके नगर में प्रवेश करूँ ॥3॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम लंकिनी का प्रसंग और ब्रह्माजी का वरदान हनुमानजी राम नामका स्मरण करते हुए लंका में प्रवेश करते है मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥1 हनुमानजी मच्छर के समान छोटा-सा रूप धारण कर,प्रभु श्री रामचन्द्रजी के नाम का सुमिरन करते हुए लंका में प्रवेश करते है॥लंकिनी, हनुमानजी का रास्ता रोकती हैलंका के द्वार पर लंकिनी नाम की एक राक्षसी रहती थी।हनुमानजी की भेंट, उस लंकिनी राक्षसी से होती है।वह पूछती है कि, मेरा निरादर करके (बिना मुझसे पूछे) कहा जा रहे हो? हनुमानजी लंकिनी को घूँसा मारते है जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥ मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥2॥ तूने मेरा भेद नहीं जाना? जहाँ तक चोर हैं, वे सब मेरे आहार हैं॥ महाकपि हनुमानजी उसे एक घूँसा मारते है,जिससे वह पृथ्वी पर लुढक पड़ती है। लंकिनी हनुमानजी को प्रणाम करती है पुनि संभारि उठी सो लंका। जोरि पानि कर बिनय ससंका॥ जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥3॥ वह राक्षसी लंकिनी, अपने को सँभाल कर फिर उठती है और डर के मारे हाथ जोड़ कर हनुमानजी से कहती है॥ लंकिनी, हनुमानजी को, ब्रह्माजी के वरदान के बारे में बताती है जब ब्रह्मा ने रावण को वर दिया था, तब चलते समय उन्होंने राक्षसों के विनाश की यह पहचान मुझे बता दी थी कि॥ ब्रह्माजी के वरदान में राक्षसों के संहार का संकेत बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥ तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥4॥ जब तू बंदर के मारने से व्याकुल हो जाए,तब तू राक्षसों का संहार हुआ जान लेना। हनुमानजी के दर्शन होने के कारण, लंकिनी खुदको भाग्यशाली समझती है हे तात! मेरे बड़े पुण्य हैं, जो मैं श्री रामजी के दूत को अपनी आँखों से देख पाई। विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 133 से 143 नाम 133 लोकाध्यक्षः समस्त लोकों का निरीक्षण करने वाले 134 सुराध्यक्षः सुरों (देवताओं) के अध्यक्ष 135 धर्माध्यक्षः धर्म और अधर्म को साक्षात देखने वाले 136 कृताकृतः कार्य रूप से कृत और कारणरूप से अकृत 137 चतुरात्मा चार पृथक विभूतियों वाले 138 चतुर्व्यूहः चार व्यूहों वाले 139 चतुर्दंष्ट्रः चार दाढ़ों या सींगों वाले 140 चतुर्भुजः चार भुजाओं वाले 141 भ्राजिष्णुः एकरस प्रकाशस्वरूप 142 भोजनम् प्रकृति रूप भोज्य माया 143 भोक्ता पुरुष रूप से प्रकृति को भोगने वाले 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 3 हनुमानजी छोटा सा रूप धरकर लंका में प्रवेश करने का सोचते है पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरों नि