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जनकवि शंकर पाल( बुन्देली)

#sitarmusic पृिये सावन सुहावन,,कवित्त (सुमुखी सवैया छंद ) स्वरचित/मौलिक #कविता

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Manku Allahabadi

शिव तांडव स्त्रोत (भाग - 17) ............................................. पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे। तस्य स् #Shiva #mahadev #विचार #bambhole #mankuallahabadi #shivtandavstotram

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पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं 
यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी 
सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥


अर्थात- प्रात: शिवपुजन के अंत में 
इस रावणकृत शिव ताण्डव स्तोत्र के गान से 
लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा 
भक्त रथ, गज, घोड़ा आदि 
संपदा से सर्वदा युक्त रहता है.

शिव तांडव स्त्रोत 
(श्लोक-17)

©Manku Allahabadi शिव तांडव स्त्रोत (भाग - 17)
.............................................
पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्

||स्वयं लेखन||

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥   (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ क #जय_श्री_राम #कविता

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राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥

  (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |












🙏💐 जय श्री राम💐🙏 राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥

  (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ क

lalitha sai

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्द नुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भू #myworld #lalithasai

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माँ.. तू सर्व जगत जननी..
माँ.. तू सर्वांतर्यामी..❤️❤️ अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्द नुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। 
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भू

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 9 रावण को क्रोध आता है आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥ सीता के मुख से #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 9
रावण को क्रोध आता है
आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥
सीता के मुख से कठोर वचन अर्थात अपनेको खद्योत के (जुगनूके) तुल्य औररामचन्द्रजी को सुर्य के समान सुनकर रावण को बड़ा क्रोध हुआ जिससे उसने तलवार निकाल कर,
बड़े गुस्से से आकर ये वचन कहे ॥9॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

रावण सीताजी को कृपाण से भय दिखाता है
सीता तैं मम कृत अपमाना।
कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी।
सुमुखि होति न त जीवन हानी॥
हे सीता! तूने मेरा मान भंग कर दिया है।इस वास्ते इस कठोर खडग (कृपान) से मैं तेरा सिर उड़ा दूंगा॥हे सुमुखी, या तो तू जल्दी मेरा कहना मान ले,नहीं तो तेरा जी जाता है,(नही तो जीवन से हाथ धोना पड़ेगा)॥

माता सीता के कठोर वचन
स्याम सरोज दाम सम सुंदर।
प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा।
सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥
रावण के ये वचन सुनकर सीताजी ने कहा,हे शठ रावण, सुन,मेरा भी तो ऐसा पक्का प्रण है की या तो इस कंठ पर श्याम कमलो की मालाके समान सुन्दर और हाथिओ के सुन्ड के समान (पुष्ट तथा विशाल) रामचन्द्रजी की भुजा रहेगी या तेरी यह भयानक तलवार।अर्थात रामचन्द्रजी के बिना मुझे मरना मंजूर है,पर अन्य का स्पर्श नहीं करूंगी॥

माता सीता तलवार से प्रार्थना करती है
चंद्रहास हरु मम परितापं।
रघुपति बिरह अनल संजातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा।
कह सीता हरु मम दुख भारा॥
सीता उस तलवार से प्रार्थना करती है कि हे तलवार!तू मेरे संताप को दूर कर,क्योंकि मै रामचन्द्र जी की विरहरूप अग्निसे संतप्त हो रही हूँ॥
सीताजी कहती है, हे चन्द्रहास (तलवार)!तेरी शीतल धारासे (तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है, तेरी धारा ठंडी और तेज है) मेरे भारी दुख़ को दूर कर॥

मंदोदरी रावण को समझाती है
सुनत बचन पुनि मारन धावा।
मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई।
सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥
सीता जीके ये वचन सुन कर,रावण फिर सीताजी को मारने को दौड़ा।
तब मय दैत्य की कन्या मंदोदरी ने
निति के वचन कह कर उसको समझाया॥फिर रावण ने सीता जी की रखवारी सब राक्षसियों को बुलाकर कहा कि –तुम जाकर सीता को अनेक प्रकार से भय दिखाओ॥

रावण राक्षसियों को आदेश देता है
मास दिवस महुँ कहा न माना।
तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥
यदि वह एक महीने के भीतर मेरा कहना नहीं मानेगी,तो मैं तलवार निकाल कर उसे मार डालूँगा॥

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 395 से 406 नाम 
395 विरामः जिनमे प्राणियों का विराम (अंत) होता है
396 विरजः विषय सेवन में जिनका राग नहीं रहा है
397 मार्गः जिन्हे जानकार मुमुक्षुजन अमर हो जाते हैं
398 नेयः ज्ञान से जीव को परमात्वभाव की तरफ ले जाने वाले
399 नयः नेता
400 अनयः जिनका कोई और नेता नहीं है
401 वीरः विक्रमशाली
402 शक्तिमतां श्रेष्ठः सभी शक्तिमानों में श्रेष्ठ
403 धर्मः समस्त भूतों को धारण करने वाले
404 धर्मविदुत्तमः श्रुतियाँ और स्मृतियाँ जिनकी आज्ञास्वरूप है
405 वैकुण्ठः जगत के आरम्भ में बिखरे हुए भूतों को परस्पर मिलाकर उनकी गति रोकने वाले
406 पुरुषः सबसे पहले होने वाले

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 9
रावण को क्रोध आता है
आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥
सीता के मुख से

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 8 माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥ और अपन #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 8
माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में
निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥
और अपने पैरो में दृष्टि लगा रखी है- मन रामचन्द्रजी के चरणों में लीन हो रहा है-सीताजीकी यह दीन दशा(दुःख) देख कर,हनुमानजीको बड़ा दुःख हुआ॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

अशोक वाटिका में रावण और सीताजी का संवाद-रावण का अशोक वन में आना
तरु पल्लव महँ रहा लुकाई।
करइ बिचार करौं का भाई॥
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा।
संग नारि बहु किएँ बनावा॥
हनुमानजी वृक्षों के पत्तो की ओटमें छिपे हुए,मन में विचार करने लगे कि
हे भाई अब मै क्या करू?इनका दुःख कैसे दूर करूँ?॥उसी समय बहुत सी स्त्रियोंको संग लिए रावण वहाँ आया।
जो स्त्रिया रावणके संग थी,वे बहुत प्रकार के गहनों से बनी ठनी थी॥

रावण सीताजी को भय दिखाता है
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा।
साम दान भय भेद देखावा॥
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी।
मंदोदरी आदि सब रानी॥
उस दुष्ट ने सीताजी को अनेक प्रकार से समझाया।साम, दाम, भय और भेद अनेक प्रकार से दिखाया॥रावणने सीता से कहा कि हे सुमुखी!जो तू एक बार भी मेरी तरफ देख ले तो हे सयानी, मंदोदरी आदि सब रानियो को॥

सीताजी तिनके का परदा बना लेती है
तव अनुचरीं करउँ पन मोरा।
एक बार बिलोकु मम ओरा॥
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
सुमिरि अवधपति परम सनेही॥
(जो ये मेरी मंदोदरी आदी रानियाँ है, इन सबको)तेरी दासियाँ बना दूं, यह मेरा प्रण जान॥रावण का वचन सुन
बीचमें तृण रखकर (तिनके का आड़ – परदा रखकर),परम प्यारे रामचन्द्र जी का स्मरण करके,सीताजी ने रावण से कहा –

सीताजी रावण को श्रीराम के बाण की याद दिलाती है
सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा।
कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी।
खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥
हे रावण! सुन,खद्योत अर्थात जुगनू के प्रकाश से कमलिनी कदापी प्रफुल्लित नहीं होती।किंतु कमलिनी सूर्यके प्रकाश से ही प्रफुल्लित होती है।अर्थात तू खद्योत के (जुगनूके) समान है, और रामचन्द्रजी सूर्यके सामान है॥सीताजी ने अपने मन में ऐसे समझ कर, रावणसे कहा कि(जानकी जी फिर कहती है, तू अपने लिए भी ऐसा ही मन मे समझ ले)रे दुष्ट! रामचन्द्रजीके बाण को अभी भूल गया क्या?
वह रामचन्द्रजी का बाण याद नहीं है॥

सठ सूनें हरि आनेहि मोही।
अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥
अरे निर्लज्ज! अरे अधम!
रामचन्द्रजी के सूने तू मुझको ले आया।
तुझे शर्म नहीं आती॥

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विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 335 से 346 नाम 
335 पुरन्दरः देवशत्रुओं के पूरों (नगर)का ध्वंस करने वाले हैं
336 अशोकः शोकादि छः उर्मियों से रहित हैं
337 तारणः संसार सागर से तारने वाले हैं
338 तारः भय से तारने वाले हैं
339 शूरः पुरुषार्थ करने वाले हैं
340 शौरिः वासुदेव की संतान
341 जनेश्वरः जन अर्थात जीवों के इश्वर
342 अनुकूलः सबके आत्मारूप हैं
343 शतावर्तः जिनके धर्म रक्षा के लिए सैंकड़ों अवतार हुए हैं
344 पद्मी जिनके हाथ में पद्म है
345 पद्मनिभेक्षणः जिनके नेत्र पद्म समान हैं
346 पद्मनाभः हृदयरूप पद्म की नाभि के बीच में स्थित हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 8
माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में
निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥
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