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राजेश गुप्ता'बादल'

कोई प्यासा खून का तो कोई पागल ज़हर खाने को बैठा है, ना मालुम आजकल इंशा अपने में ही क्यूं यूं ऐंठा ऐंठा है। Bina Babi Ishpreet Chabra Madan

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कोई प्यासा खून का तो कोई पागल ज़हर खाने को बैठा है,
ना मालुम आजकल इंशा अपने में ही क्यूं यूं ऐंठा ऐंठा है। कोई प्यासा खून का तो कोई पागल ज़हर खाने को बैठा है,
ना मालुम आजकल इंशा अपने में ही क्यूं यूं ऐंठा ऐंठा है।  Bina Babi Ishpreet Chabra Madan

कुछ लम्हें ज़िन्दगी के

छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन अँगड़ाई लेने का जी है क्या तेरा । ©️✍️ सतिन्दर #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सतिन्दर #नज़्म #रेख़्ता # #Poetry #गज़ल #shyari #ghzal

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छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन
अँगड़ाई लेने का जी है क्या तेरा । 

©️✍️ सतिन्दर

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 #रेख़्ता #गज़ल #ghzal #poetry #shyari
 #NojotoQuote छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन
अँगड़ाई लेने का जी है क्या तेरा । 

©️✍️ सतिन्दर

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 #रेख़्ता #

कुछ लम्हें ज़िन्दगी के

सवेरा छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन अँगड़ाई लेने का जी है क्या तेरा । ©️✍️ सतिन्दर #kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सतिन्दर #नज़्म#Poetry #गज़ल #shyari #ghzal #रेख़्ता

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छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन
अँगड़ाई लेने का जी है क्या तेरा । 

©️✍️ सतिन्दर
 #NojotoQuote सवेरा 
छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन
अँगड़ाई लेने का जी है क्या तेरा । 

©️✍️ सतिन्दर

#kuchलम्हेंज़िन्दगीke #satinder #सतिन्दर #नज़्म 
 #र

कुछ लम्हें ज़िन्दगी के

नज़्म नया सवेरा चस्का है चस्का ज़िन्दगी को मेरा आ गई ढूंढ़ने फिर इक नया सवेरा । छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन अँगड़ाई लेने का जी है क्या त

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Girl quotes in Hindi चस्का है चस्का ज़िन्दगी को मेरा
आ गई ढूंढ़ने फिर इक नया सवेरा । 
छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन
अँगड़ाई लेने का जी है क्या तेरा । 

ख़ुश्की ही ख़ुश्की थी रात आँखों में
तेरे न होने का सबूत ,मैल का ढेरा । 
तेरे पिछली बार के पैरों की धूल पड़ी है
आँखों के कोने लगा, छोटे टीले का पेहरा । 

खाली कमरे में मिट्टी है किराएदार
मुफ़्त में ले रही थी मेरा मज़ा बतेरा । 
क्या करेगी ज़िन्दगी तू हम होकर 
साथ में रक़ीब, उफ़्फ़ होगा बखेरा । 

मेरे रवैये में अब हम नहीं मैं ही मैं है बस
खाली कमरे में खुद से ही रहा राब्ता मेरा । 
रोज़ बंद करता हूँ आँखे फ़िर खोल लेता हूँ
इसके बीच में होता है ये नींद बींद का बसेरा  । 

चस्का चस्का चस्का छोड़ ये चस्का ज़िन्दगी
शहर में कितने हाट है कहीं भी लगा ले फेरा । 
( हाट - साप्ताहिक या मासिक लगने वाला बाजार )
परां हट ज़रा नज़ारे भी तो देखने दे
आ रहा मेरे ऊपर तेरा अँधेरा (साया) । 

अजा कभी तुझे मैं डस लूँ ज़िन्दगी
सतिन्दर भी साँप है बोल गया इक सपेरा । 

©️✍️ सतिन्दर #NojotoQuote नज़्म नया सवेरा
चस्का है चस्का ज़िन्दगी को मेरा
आ गई ढूंढ़ने फिर इक नया सवेरा । 

छुट्टी की सुस्ती में ऐंठा हुआ बदन
अँगड़ाई लेने का जी है क्या त

Pramod Kumar

चीन की बीन बजायेंगे चैन की बीन बजानेवाले ,चीन की बीन बजायेंगे कालिया नाग नचाने वाले ,ड्रेगन को भी नचायेंगे चंद मिसाइल बना लिए क्या जिनक #china

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रजनीश "स्वच्छंद"

दुनिया सागर मैं बून्द रहा।। जो आज मैं आंखें मूंद रहा, दुनिया सागर मैं बून्द रहा। निजबल का जो अभिमान खड़ा, मूर्छित और वो कुंद रहा। अंधी नगरी #Poetry #kavita

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दुनिया सागर मैं बून्द रहा।।

जो आज मैं आंखें मूंद रहा,
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।
निजबल का जो अभिमान खड़ा,
मूर्छित और वो कुंद रहा।

अंधी नगरी का राजा काना मैं,
दुनिया बटेर उसका दाना मैं।
कुंए का मेढक मैं बन बैठा,
है जग विस्तृत कब माना मैं।

सावन का अंधा मैं बैठा था,
दम्भ लहु अंदर पैठा था।
रस्सी तो जलती रही मगर,
तना हुआ तब भी ऐंठा था।

खून पसीना एक हुआ कब,
कर्म मेरा कहो नेक हुआ कब।
बस बांछें खिलती रहतीं थीं,
यत्न कहो तुम अनेक हुआ कब।

चींटी था पर भी निकले थे,
अहं-बर्फ़ कहाँ कब पिघले थे।
खूंटे के बल जो कूद पड़ा,
चहुये के दांत कहाँ कब निकले थे।

छाती पे मूंग मैं दलता रहा,
खोटा सिक्का पर चलता रहा।
सच से आंखें चुराईं थीं,
डूबते सूरज सा ढलता रहा।

ताश के पत्ते बन बिखरा हूँ,
कब आग चखी और कब निखरा हूँ।
पल पल घुटनों पर आता रहा,
सब जिसपे फूटे मैं वो ठीकरा हूँ।

जब आंख खुली थी सवेर नहीं,
घर था अंधेरा लगी कोई देर नहीं।
अपना बोया था काट रहा,
किस्मत का था कोई फेर नहीं।

चिड़िया बस चुगती खेत रही,
जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत रही।
आज किनारे बैठ हूँ रोता,
कालिख बोलो कब श्वेत रही।

©रजनीश "स्वछंद" दुनिया सागर मैं बून्द रहा।।

जो आज मैं आंखें मूंद रहा,
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।
निजबल का जो अभिमान खड़ा,
मूर्छित और वो कुंद रहा।

अंधी नगरी

Harlal Mahato

#A_war_Against_Dowry_System #दहेज प्रथा और वर्तमान समाज कुड़मालि झुमर गीत का हिंदि अनुवाद:- आज संसार में सिर्फ वही आदमी दौड़ा दौड़ी कर #कविता

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जगते करत अरा दौड़ा दौड़ि
जाकर घारे आहेक बेटि बाढ़ि
  भाभि देखा ,देखा गउ सबाय,,,,
बिधि हाइ रे हाइ,,,,,,कलि जुगे बेटि उठा दाइ(१)

बेटाक बाप आहात मुंह फाड़ि
कइसे पाअब पइसा आर गाड़ि
रहत एरा एहे जे आसाइ,,,,,,,,
बिधि हाइ रे हाइ,,,,,,कलि जुगे बेटि उठा दाइ(२) 

           बेटिक बाप दिन दुपहर घुरि घुरि             
कांदइ संधाइ गउ माथा धरि        
     खजा निहिं पाइ कनह जे उपाइ,,,,,,
बिधि हाइ रे हाइ ,,,,,कलि जुगे उठा उठा दाइ(३)

बेटिक बाप जे कतेक अभागा
 बेचि सिराइ देलेक जमि जाइगा
       कांदि कांदि करइ बेटि जे बिदाइ,,,
बिधि हाइ रे हाइ,,,,,कलि जुगे बेटि उठा दाइ(४)

बेटि के लेखा पढ़ा कराइ       
 पाअइ निहिं सिखितअ जामाइ
     सेसे देलेक मुरखेक संग धराइ,,,,,
बिधि हाइ रे हाइ,,,,,कलि जुगे बेटि उठा दाइ(५)

   सिखितअ भाइ आज मानुस हेला
      पन परथा टा तभु कइसे बाढ़ि गेला 
          भाभि घाउ हेलेक हरलालेकर हिहाइ,,,,
बिधि हाइरे हाइ,,,,कलि जुगे बेटि उठा दाइ(६)

©Harlal Mahato #A_war_Against_Dowry_System 


#दहेज प्रथा और वर्तमान समाज

कुड़मालि झुमर गीत का हिंदि अनुवाद:-

आज संसार में सिर्फ वही आदमी दौड़ा दौड़ी कर

रजनीश "स्वच्छंद"

ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।। एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ। दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ। मेरा अप #Poetry #kavita #hindipoetry

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ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।।

एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।
दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ।

मेरा अपना कौन यहां बस अपनेपन का ढोंग रचा,
सायों संग जीता रहता हूँ, ऐसा एक संयोग सजा।
किससे कहना क्या क्या कहना शब्द नहीं बातों में,
मुख खोले तो कुछ भी बोले ज़हर घुली ज़ज़्बातों में।
एक परिंदा बनना चाहा, पर कतरा फिर बैठा हूँ,
कल तक था जो सूत्र एक, बन रस्सी मैं ऐंठा हूँ।

है पग पग मेरी अग्नि-परीक्षा, फ़ील वक़्त का सीता हूँ।
एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।

किससे सीखूं, क्या मैं सीखूं, दूध धुला है कौन यहां,
रोज द्रौपदी हर ली जाती, पड़ी सभा है मौन यहां।
सच तो नहीं, ख़्वाबों में ही, चना भाड़ तो फोड़ेगा,
हाथों से नहीं, पर अश्कों से, ये कलंक तो धोएगा।
देख दशा इस कुनबे की, आंखे भर नहीं आतीं हैं।
शुष्क पड़े इस शरीर मे, आत्मा मर नही जाती है।

ज़ख्म पड़े हैं गहरे, अश्कों के रेशे बुन उन्हें सीता हूँ।
एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।

इस ईमान का क्या करना जो बाज़ारों में बिकता है,
हाथ उठा जो प्रण लिया था, कहाँ कभी वो टिकता है।
मज़हब का भी हाल है देखा, पेट कहाँ भर पाता है,
ज्ञान यहां दरबारी बैठा, पंडित मुल्लों से डर जाता है।
शब्द बचे हैं जरा नहीं, काश हकीकत ख़्वाब ही होता,
धर्म के जो आड़ में बैठा, काश नशीहत शाप ही होता।

किस मुख बोलो कह दूं, मैं ही कुरान और गीता हूँ।
एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।।

एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।
दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ।

मेरा अप

CalmKazi

//कबड्डी// भोर भये उठते ही आज, कंबल सिरहाने रख दिया । इक तूफ़ान सा अंदर समेटे, पन्नों को सम्हाल लिया । निकल पड़े अनभिज्ञ राह पर, कुछ शब्दों स #jawan #Hindi #bachpan #IndianArmy #sena #martyrdom #calmkaziwrites

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        //कबड्डी//

भोर भये उठते ही आज,
कंबल सिरहाने रख दिया ।
इक तूफ़ान सा अंदर समेटे,
पन्नों को सम्हाल लिया ।
निकल पड़े अनभिज्ञ राह पर,
कुछ शब्दों स

IIshhwinder Singh

#dpf बिईग सिन्लग कहाँ - कहाँ नहीं ढूँढा उसको मैंने --- काॅलेज की हर क्लास में बन्क मारते हर मास में बायोलॉजी की लैब्स में #Poetry

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बिईग सिन्लग

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काॅलेज की हर क्लास में
बन्क मारते हर मास में
बायोलॉजी की लैब्स में
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