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Vikas Sahni

#बारह_बजे_की_बेचैनी हो चुके हैं बारह बजकर बाईस मिनट फिर भी नहीं आयी नींद की आहट कि आखिर कब उसे न्याय मिलेगा- यही सोच कर दिल में है अकुलाहट।

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White _____बारह_बजे_की_बेचैनी_____



हो  चुके  हैं  बारह बजकर बाईस मिनट
फिर  भी  नहीं  आयी  नींद  की  आहट
कि   आखिर  कब ‌ उसे   न्याय  मिलेगा-
यही  सोच  कर  दिल‌  में  है  अकुलाहट।
निराकार होकर भी आनंद जल रहा,
हल्का हौसला देती है जिसकी लपट
म्हारी महफ़िल लूटेरों से भर गयी है
तुम आओ, कष्ट मिटाओ मेरे नटखट!
कविता जो दिया है,मुझे मालूम है यह
तुम इक और उपहार दो, वह संसार दो,
जिसमें लालच न हो, न ही कोई कपट।
मेरे माधव मुझको तुम जल्दी जिता दो
तुड़वा-तुड़वाकर प्रत्येक घोटाले का घट।
यही सोचते-सोचते अब बज चुके हैं एक 
शुरू हुई बारह-बाईस पे कविता की टेक।।
                           ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #बारह_बजे_की_बेचैनी
हो चुके हैं बारह बजकर बाईस मिनट
फिर भी नहीं आयी नींद की आहट
कि आखिर कब उसे न्याय मिलेगा-
यही सोच कर दिल में है अकुलाहट।

dilkibaatwithamit

हमारे बीच नफ़रत की कोई दीवार न करते यहीं इक काम तो बस अपने चोकीदार न करते हमारा देश होता चीन से जापान से आगे सियासी लोग जो धर्मों का

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हमारे बीच  नफ़रत की कोई दीवार न करते
यहीं इक काम तो बस अपने चोकीदार न करते

हमारा देश  होता  चीन  से जापान  से  आगे
सियासी लोग जो धर्मों का कारोबार न करते

गरीबी  बेशसी  बे रोजगारी  ख़त्म  हो जाती 
धर्म के  नाम  पे नेता  जो भ्रष्टाचार  न करते 

वतन में उन्नती  होती मियां हर बार से ज़्यादा 
वतन का होशला जो पस्त कुछ गद्दार न करते

सियासी  आदमी कब का इसे  बर्बाद  कर  देतें
अगर हम जान से ज़्यादा वतन से प्यार न करते

गुलामी में ही रहता देश गर हिन्दू-मुस्लिमा सब 
कभी अपनी दर्राती को अगर तलवार न करते
.... अनवर क़ुरैशी
#26January
#26January2025

©dilkibaatwithamit हमारे बीच  नफ़रत की कोई दीवार न करते
यहीं इक काम तो बस अपने चोकीदार न करते

हमारा देश  होता  चीन  से जापान  से  आगे
सियासी लोग जो धर्मों का

नवनीत ठाकुर

#षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी, भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी। शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़, जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा

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White षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी,
भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी।
शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़,
जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगाज़।

अपहरण के धंधे अब आम हो गए,
अपराधी खुलेआम इनाम हो गए।
छेड़छाड़ के ज़ख्म लहू-लुहान हैं,
इंसाफ के मंदिर खुद बदगुमान हैं।

यह कैसी सभ्यता, यह कैसी रवायत?
जहां जुर्म को मिलती है हर इक सहायत।

©नवनीत ठाकुर #षड्यंत्रों की छाया हर दिल पर भारी,
भ्रष्टाचार की चादर ने लूट ली जिम्मेदारी।
शोषण के जख्म चीखते हैं बेआवाज़,
जुर्म के मंजर बन गए रोज़ का आगा
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