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Best अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो Shayari, Status, Quotes, Stories

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Mo k sh K an

शाम ढ़ले सौ दीप जले पर अंधियारा जो रहता है 
मेरे अंदर ख़ामोशी का दरया बन कर बहता है 

चेहरे पर कई सावलों की पतझड़ जैसी झाई हैं 
ना जाने क्यों शाम सर्द सी मेरे हिस्से आई हैं 
सुबह रोज़ बनाता हूँ और शाम ढ़ले जो ढहता है 
मेरे अंदर ख़ामोशी का दरया बन कर बहता है 

मातम की तस्बीह उँगली पर कई फ़ातिहे पढ़ती है 
और सुलगती आँच चिता की धीरे धीरे बढ़ती है 
जलता है फिर बुझता है, जाने क्या क्या सहता है 
मेरे अंदर ख़ामोशी का दरया बन कर बहता है 

हाथों से अपने पिंड बना कर, गंगा में कई बहाए हैं 
उल्टे पैरों से चलकर भी तीरथ कई नहाए हैं 
फिर भी कांधे पर बैठा जो कव्वा क्या क्या कहता है 
मेरे अंदर ख़ामोशी का दरया बन कर बहता है 

जीना मरना बात एक है, साँसों का कोई तोल नहीं 
भरे बाजारों में सौदे के ज़ज़्बातों का मोल नहीं 
चाँदी की चम चम चकाचौंध में घाना अंधेरा राहत है 
मेरे अंदर ख़ामोशी का दरया बन कर बहता है 

अब खमोशी को कहने दो @ अन्धेरा

©Mo k sh K an #mokshkan 
#अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो 
#mikyupikyu

Mo k sh K an

अगर यादों के कोई किनारे होते
तो वो झील बन जाती
और किसी रात 
चुपचाप 
नंगे पैरों से चल कर 
कॉफी के कप से उठती भाप में 
अपना अक़्स तलाशती 

यादें 
जो पेपर टिशू से पोछ कर 
तुम मेज पर छोड़ कर चली गई 

पेपर टिशू जिसे सीने से लगा कर 
मैंने
ताबीज़ बना लिया 

अब ख़ामोशी को कहने दो @  ताबीज़

©Mo k sh K an #mikyupikyu 
#mokshkan 
#अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो

Mo k sh K an

उन पुराने टिकटों में आज भी 
उस सफ़र की ख़ुश्बू बाँकी है 
जो हमने हमसफ़र बन कर जिया था 

वो सफर 
जिसमें हमें उस बूढ़ी अम्मा ने दुआएँ दी थीं
और उस फ़कीर ने बरक़त नवाज़ी थी
वो सफ़र जिसमें एक किन्नर ने हाथ चूम कर कहा था 
ये जोड़ी सलामत रहे 

वो सफ़र 
जो हाज़ी अली की मज़ार पर अर्जी बन कर अता हुआ था 
वो सफ़र 
जो झेलम के पानी में लाफ़नी हो गया 

वो सफ़र 
आज भी जारी है 
तुम्हारी हक़ीक़त में ना सही
मेरे खयालों में ही सही 
और अब भी जब कोई तुम्हारा नाम लेता है 
मेरी धड़कन ठहर जाती है 

तेरे जाने के बाद अब मुझे अहसास हो चला है 
जो मेरा था वो मेरे ही पास रह गया है 

अब ख़ामोशी को कहने दो @ एहसास

©Mo k sh K an #अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो 
#mokshkan

Mo k sh K an

आज फिर से मैं खुद अनबन कर बैठा 
और निकल पड़ा अकेले 
डल के उस किनारे पर 
जहाँ कभी तुम्हारा हाथ थाम कर 
सुकूँ जिया करता था 

सुकूँ
गर्म छल्ली पर लगे नींबू और लहसून के नामक सा सुकूँ 
जिस से जिंदगी की मिठास दोगुनी हो जाती हैं 
और गर्म हथेलियों पर सरकती हरारत 
बालों से लिपट कर जन्नत तराशती हैं 

सुकूँ 
जो पानी पर चप्पू से जिंदगी उकेरता है 
और लहर बन कर सहील को समेट लेता है 

तुम्हारे जाने के बाद 
मुझे फिर से इश्क़ हो चला है 
तुम्हारी यादों से
कौन कहता है अंधेरों में बरकत नहीं होती 

अब ख़ामोशी को कहने दो @ बरकत

©Mo k sh K an #अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो 
#mokshkan

Mo k sh K an

यूँ ही कभी कभी 
बिछा लेता हूँ खुद को मेजपोश पर
और समेट लेता हूँ खुद में
वो चाय के कपों के निशान 
जो तुम छोड़ गई थीं 

दर्द है, पर अब सुलगता नहीं है 
अंगारों की आदत सी हो चली है 
टीस उठती है और दवा हो जाती है 
साँसों की सीलन हवा हो जाती है 
एक अजीब सा सुकून मुक़म्मल है 
ना अब पाने को कुछ बाँकी रहा ना खोने को 
दर्द है, पर सुलगता नहीं है 

ठहर गया हूँ शायद किसी झील की तरह 
जैसे किनारों को उम्र कैद की सजा सुना दी गई हो 
और अब तुम्हारी कमी जानलेवा भी नहीं रही 
ख़ुद में दफ़न हो कर ये एहसास हो चला है
कि तुम कितनी पराई थीं और वो यादें कितनी मेरी हैं 

वो ट्रेन की अपर बर्थ मुझ को देख कर मुस्कुराती है 
और मैं उसको बाहों में लपेट लेता हूँ
दर्द है, पर अब सुलगता नहीं है 

अब खमोशी को कहने दो @ दर्द है, पर अब सुलगता नहीं है

©Mo k sh K an #अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो 
#mokshkan

Mo k sh K an

जब जीने की पिपासा मर जाती है
तो हर दरया सूख जाता है
और उनकी तह से उड़ी रेत 
सुलग कर
सीने को दावनाल बना देती है

वक़्त दलदल बन जाता है 
और सरक सरक कर
मुँह चिढ़ाता है 

कंधों पर खड़ी दुनिया 
मरने नहीं देती 
साँसों पर चढ़ा अस्तर
जीने नहीं देता 

रिहाई रकीब बन जाती है 
और कैद के हर कोठरी पर ज़िन्दग़ी लिखा होता है 

अब ख़ामोशी को कहने दो @ रक़ाबत

©Mo k sh K an #mokshkan 
#mikyupikyu 
#अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो 
#Anhoni

Mo k sh K an

कभी कभी
बंद दरवाजों के कोने से भी
सरक कर
टीस चली आती है
और किसी अजगर की तरह 
लपेट कर मुझको
निचोड़ देती है 

हर बार मैंने तुमको 
खुद से
लहू सा रिस्ते देखा है 

ना जाने
 तुंम कितनी गहरी पसीज़ गई हो मुझ में
कि दम निकल जाता है
मगर तुंम नहीं निकलती 

अब खमोशी को कहने दो@ दम निकलता है

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Mo k sh K an

 कुछ कविताएँ बस पागलपन होती है 
जैसे किसी फटे कुर्ते का टूटा हुआ बटन 
जिसे काज़ ने कहीं का नहीं छोड़ा 

वो टूटा हुआ बटन जिसे अब भी गुमान है कि धागों से बंधा है 
और कभी ना कभी काज़ से सुलह हो ही जाएगी 

उसे कसने का दर्द नहीं है
ना कटने की कोई टीस है 
पागल ना जाने कौन सी अफ़ीम चाट कर आया है 

वो उँगलीयों पर दरकता है तो आँख भर आती है
ना जाने कौन से जज़बात हैं कि वो ज़िंदा है 

~ कुर्ते का बटन@अब ख़ामोशी को कहने दो

©Mo k sh K an
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Mo k sh K an

नहीं दो ग़ज़ जमीं मिली तो क्या 
आतिश में नज़्म कर देना 

फिर राख़ रहे
या मिट्टी
फ़र्क़ भी क्या पड़ता है 

जब साँसे नहीं रही 
तो क्यूँ फिर 
ज़िस्म का रोना रोएँ 

~ 1 मेरे बाद @ अब खमोशी को कहने दो

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Mo k sh K an

हम तुम  जब
अंदर की ख़ामोशी
लहरों में उतर आती है
तो साहिल उफ़क़ हो जाते हैं

©Mo k sh K an #Khamoshi 
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