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Prakhar Kushwaha 'Dear'
आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार! 🙏 लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है "प्रेमातिरेक भाग-५" आप सभी ने मेरी इस श्रृंखला को बेहद प्यार दे सफ़ल बनाया है,, आप सभी का मैं दिल से आभारी हूँ,, बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का।। शायद श्रृंखला का यह अंतिम भाग हो। सभी भाग पढ़ने के इच्छुक, मुझे cmnt करके बता सकते हैं। मैं आपको tag कर दूंगा। 😊 पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें ,, शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयशी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है। जिसके चलते कवि ख़ुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्जा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है। अगर प्रेयशी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो सिर्फ़ "प्रेम"। बहुत बहुत धन्यवाद! 🙏 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇 भाग - ५ मैं राजनीति सा बड़बोला, तुम संविधान की ख़ामोशी। मैं दल-बदलू एक नेता हूँ, तुम न्याय बांटती संतोषी।। मैं बेईमानी की रिश्वत हूँ,
Prakhar Kushwaha 'Dear'
आप सभी को प्रखर कुशवाहा के नमस्कार! 🙏 लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है "प्रेमातिरेक भाग-४" आप सभी ने मेरी इस श्रृंखला को बेहद प्यार दे सफ़ल बनाया है,, आप सभी का मैं दिल से आभारी हूँ,, बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का।। शायद श्रृंखला का यह अंतिम भाग हो। सभी भाग पढ़ने के इच्छुक, मुझे cmnt करके बता सकते हैं। मैं आपको tag कर दूंगा। 😊 पढ़ने से पहले मैं बताना चाहूँगा कि रचना पढ़ते वक्त शीर्षक "प्रेमातिरेक" को ध्यान में रखें ,, शीर्षक कवि की अपनी अमूर्त प्रेयशी के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है। जिसके चलते कवि ख़ुद को तुच्छ और अपनी सखी को उच्च दर्जा प्रदान कर रहा है ना कि समस्त पुरुष जाति को महिला जाति से निम्न दिखाने का प्रयास कर रहा है। अगर प्रेयशी कवि के भावों से अवगत होगी तो तुच्छ और उच्च का कोई महत्व नहीं रह जाता,, रह जाता है तो सिर्फ़ "प्रेम"। बहुत बहुत धन्यवाद! 🙏 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇 "प्रेमातिरेक" भाग - ४ मैं पैरों की पायल जैसा, तुम गले सुशोभित माला हो। मैं लिपटा चिथड़ा सर्दी का, तुम करती गर्म दुशाला हो।।
Prakhar Kushwaha 'Dear'
मैं बेढंगा सा रैप गढ़ा, तुम शीतल-संगम भजनों का। मैं मयखानों में बजता हूँ, तुम पावन सरगम स्वजनों का।। प्रस्तुत है रचना; "प्रेमातिरेक" भाग - ३ भाग - १ व भाग - २, प्रोफाइल में दिया गया है,, पढ़ने के इच्छुक मुझे बता दें तो मैं tag कर दूंगा...☺☺ पूर्ण रचना अधोलिखित भाग में पढ़ें। 👇👇👇👇👇👇👇👇 "प्रेमातिरेक" भाग - ३ मैं मई-जून की गर्मी हूँ, तुम ठंडा मौसम सावन का। मैं पतझड़ जैसा निर्झर हूँ, तुम माह बसन्ती छावन का।।
Prakhar Kushwaha 'Dear'
"प्रेमातिरेक" कृपया अनुशीर्षक में पढ़ लें। 🙏🙏 यहां आ नहीं पाएगा। 😊 भाग - २,३,४ व ५ अब उपलब्ध हैं। 👇👇👇👇👇👇👇 भाग -१ मैं कोयले की कालिख़ जैसा, तुम चंद्रप्रभा सी उजली हो, मैं पलकों वाला पहरा हूँ, तुम प्यारी-प्यारी पुतली हो। मैं युद्ध विराम का उल्लंघन,
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