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Madhvendra Pratap Singh

यूँ हवा में उड़ाई है हमने कई मोहलतें
सजाए अफ्ता बस यूं ही  तो नहीं  हैं।

समंदर को भी पता है कि प्यास क्या है
हर बूंद की कीमत बस यूं ही तो नहीं है।

कोई साहिल ये सोच के बैठा है वो सब है
दरिया को ये पता है कि बहना तो हई है।

लिहाज का मतलब वजूद मिटा देना नहीं है
ये समझ की वो सब है कोई कतरा तो नहीं है।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी #कुछ_अनकही_बातें #रातें #आवारगी

Madhvendra Pratap Singh

इश्क का क्या है वो तो हमेशा लुटता रहा सरेआम यहां
आज़ाद तो अय्याशियां थी जिसने तख्तो ताज लूट लिये

#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

देखकर पैबंद दिल पर इश्क़ ये कहने लगा
कितना रफू करोगे तुम अब लहू बहने लगा।

छोड़ दे दिल से सियासत इश्क़ बस में है नहीं
दर्द दिल का अब तेरे आंखों में भी दिखने लगा।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

वो नजर थी या कोई तीखी सी शमशीर थी
जिस तरफ भी चल गई बस कलेजा चीर थी 

#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

यूँ फुरसत में कभी मिलना तुमसे कुछ बात करनी है, 
बड़ा मलाल है इस दिल में ये खिड़की साफ करनी है।

भले से टूट जाओ खुद यहां खोकर तुम अपने को,
मगर हर जीत से पहले की गलती माफ करनी है।

कभी किसी ने लहजा बदल लिया कभी लिहाज़ नहीं रहा,
जो घुट के मर जाती है गुफ्तगू उसे क़ैदे-अल्फ़ाज़ करनी है।

देखो  हमेशा चुप ही रहना  है  यहां दिलगीर के आगे,
जब तक दम न निकले तब तक बातें बर्दाश्त करनी है।

अगर तुम से नहीं होता तो मत पालो कोई हसरत
यहाँ तो बस इन्तज़ारों में सुबह से शाम करनी है।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

मैं से हम तक आने में
खुद से खुद तक जाने में,
देखो कितने साल लगे
ये खुद को समझाने में।

खोया कितना कुछ पाकर
कोई जो गया नहीं जाकर,
जो रहा अब चुभन बना
थे बरस लगे दफनाने में।

जो शामें थी तुम संग विदा हुई
फिर  रंज था तुम को आने में
और कुछ तो खोया था पाकर
जिसे जनम लगे थे पाने में।

था यकीं मुझे इस बात पे भी
तेरे बिखरे जज्बात पे भी
मुड़कर न देखेगा मुझको
पर जरा देर लगेगी जाने में।

चल चलते हैं अब राह बदल
और वादा वही न मिलने का
आंखों का क्या है छलकेंगी
उन्हें न वक्त लगे भर आने में।

तकलीफ जरा तो होगी ही
खुद को तन्हा बतलाने में।


#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

कभी जब इश्क़ का कस खीचों तो पता है जिंदगी धुंआ हो जाती है।
और सुलगते हुए लम्हें राख होने को आमादा हो उठते हैं ।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

इश्क़ भी करना है तुम्हें नफरत भी करनी है 
तय कर लो बस जो भी करो बेहिसाब करो

#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

थोड़ा सिमट तो जाने दो चला जाऊँगा
बिखरे टुकड़े तो उठाने दो चला जाऊँगा

अभी तो ज़ख्म भी हरे है भरे नहीं मेरे 
बस नासूर तक आने दो चला जाऊँगा

दिल की बात जो जुबाँ पे कभी आयी नहीं
वो दास्तान तो सुनाने दो चला जाऊँगा।

छेड़े थे जो तरन्नुम तुमने गले लगाकर मुझको
उसे बस साज तो बन जाने दो चला जाऊँगा

मुअय्यन मौत भी थी मगर आई नहीं अब तक
एक बार उसे गले तो लगाने दो चला जाऊँगा।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी

Madhvendra Pratap Singh

एक दिलचस्प किताब का छोटा सा किस्सा हूँ मैं,
एक नायाब   खिलौने का टूटा हुआ हिस्सा हूँ मैं।

उस एक कहानी में मैं भी तो किरदार हूँ
उसकी नफरत का इकलौता उम्मीदवार हूँ।

एक गुलशन से बिछड़ा हुआ फूल हूँ,
जो कहीं जम न सके मैं वो धूल हूँ।

ढूढ़ता फिर रहा मुझमें वो गुस्ताखियां
मैं जो न सुधरे कभी एक अदद भूल हूँ।

एक कबीले से लगता है बिसरा हूँ मैं
एक अधूरी गजल का मिसरा हूँ मैं।

किसी ने उछाला किसी ने संभाला 
किसी ने यहां यार दिल से निकाला।

किस्तों में जो मिली है जिंदगी उसका पुलिंदा हूँ मैं
लोगों ने कोशिश की मगर मरा नहीं बस जिंदा हूँ मैं।

बीघे भर की जमीन में एक विस्वा हूं मैं
तुझसे नहीं यार बस खुद से रुसवा हूँ मैं।

चलो अब एक आखिरी शर्त लगाता हूँ मैं
दांव पे खुद को रखता हूँ और हार जाता हूँ मैं।

#माधवेन्द्र_फैजाबादी
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