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Shrikant Agrahari
सरिता यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही, पूरे उफान के साथ उमड़ती हुई,, प्रचंड धारा प्रवाह से तटस्य, सीमाओ का आलिंगन कर,, मिलन के लिए आमंत्रित करती। पूर्ण वेग से उन्मादित होकर, सम्पूर्ण धरा को आगोश में लेने को आतुर। वृक्षो को!मोहक चेष्टा से अभिभूत कर, उसके विद्यमानता का क्षरण करती,, हिलोरे मारती विप्लव मचा रही है! उद्वेलित वीक्ष्य दृश्य से शैल उदिग्न्य किन्तु उत्कंठित हैं। रसिको की भांति सागर,"सरिता" के परिरंभण को प्रतीक्षित है। #cinemagraph सरिता यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही, पूरे उफान के साथ उमड़ती हुई,, प्रचंड धारा प्रवाह से तटस्य सीमाओ का आलिंगन कर, मिलन के लिए आमंत्रित करती। पूर्ण वेग से उन्मादित होकर,
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बहुत तलाश किया जी भर प्रयास किया। समाचारपत्रों में विज्ञापन दिया, थानों के चक्कर भी काटा, मंदिर मंदिर मथ्था टेका। आज भी आश नही छोड़ा है। बाबूलाल ने बेटे के मिलने का, दिल से ख्याल नही छोड़ा है। गॉव की हर गालियां सूनी है, माँ घर के कोने में बैठी कुछ बुदबुदा रही है,, माँ का हृदय कैसे भूला दे बेटे को। आज भी वो रोज की तरह उसका रास्ता निहार रही है। बेसुध है, स्वयं से अलग, आँखें भरी है। बेटे के खिलौने कपड़े आदि को बड़े प्यार से देख रही है। बाबूलाल और उसकी पत्नी के, जीवन का मानो उद्देश्य ही खत्म हो गया है ।। बहुत तलाश किया जी भर प्रयास किया। समाचारपत्रों में विज्ञापन दिया, थानों के चक्कर भी काटा, मंदिर मंदिर मथ्था टेका। आज भी आश नही छोड़ा है। बाबूलाल ने बेटे के मिलने का, दिल से ख्याल नही छोड़ा है।
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लड़ गये युद्ध मे, अभिमान जब बढ़ने लगे। अड़ गये मैदान में, हाहाकार तब होने लगे। लाल हो गये लहू से, बलिदान जब होने लगे। बुझ गये कुलदीप जब,विलाप तब होने लगे। देखकर संहार,दोनों पक्षो में शर्मसार होने लगे। रण भेरियो के बीच मे,संवाद वो करने लगे। युद्ध हो विराम अब,आगाज वो करने लगे।। नई सुबह के नये फलक का,स्वप्न वो बुनने लगे।। ©श्री...✍🏻 Shilpi Mam सहृदय बहुत बहुत आभार आपका poke करने के लिए🙏🙏#hkkhindipoetry #yqdidi #yqbaba #bestyqhindiquotes #हिन्दी_काव्य_कोश #tmkosh #श्रीsnsa Image source credit goes to google.
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ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल क्यूँ ? 👇🏻कृपया अनुशीर्षक में पढ़े👇🏻 ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल क्यूँ? उसका दिखाई न देना! ईश्वर का न होना तो नही दर्शाता, ये हमारी दृष्टि का ही दोष होगा न, हम मे वो सामर्थ्य कहाँ? जो उसे देख सके ! हम उतने सक्षम भी तो नही। कि ऐसी दृष्टि का निर्माण कर सके।
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अनुशंसा !.....अनुशंसा !........ हे ! प्रकृति अनुशंसा !!............ हे ! भद्रे मेरी अपरिवर्तित भूल... कदाचित क्षमा का पात्र नही....... स्नेहिल तृष्णा अभिभूत सा...... यद्यपि उद्देश्य संताप नही........ पुण्य पवित्र उर समतल सा...... किञ्चित मात्र भी संदेह नही...... अनुशंसा !.....अनुशंसा !......... हे ! प्रकृति अनुशंसा !!............ अध्यात्म बिहीन मन शंका सा... प्राण हीन प्राणी अंतः सा..... निष्ठा पर क्यूँ कोप लगा........ क्या अनुशंसा का पात्र नही...... हृदय अंत क्यूँ, फफक पड़े...... क्या अनंत तरंग मर्याद नही...... अनुशंसा !......अनुशंसा !........ हे ! वसुन्धरे अनुशंसा !!.......... ©श्री...✍🏻 अनुशंसा !.....अनुशंसा !........ हे ! प्रकृति अनुशंसा !!............ हे ! भद्रे मेरी अपरिवर्तित भूल... कदाचित क्षमा का पात्र नही....... स्नेहिल तृष्णा अभिभूत सा...... यद्यपि उद्देश्य संताप नही........ पुण्य पवित्र उर समतल सा...... किञ्चित मात्र भी संदेह नही......
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आज जूते,,👞👞 मेरी तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे थे!! 😧😦😧😦😧 शायद! मालिक के चरण कमलो👣👣 का स्पर्श मिल जाये!! 😂🤣😂🤣😂🤣😂🤣 #yqdidi #yqbaba #श्रीsnsa #hkkhindipoetry
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जोड़ दे शक्ति को बाण से, तीर को कमान से ! काल का ध्यान कर !! रुद्र का आवाहन कर ! भद्र काल प्रलयंकर !, अघोर शक्ति नाद कर, शत्रु पर प्रहार कर !..... मुण्ड को खण्ड कर !. रक्त को तार तार !... कर तिलक बार बार ! विघ्न को बाँधकर !,.. भस्म से श्रृंगार कर !.. ललाट को लाल कर !.., खड्ग,को धार कर !,.. अधर्म का विनाश कर,! पाप का नाश कर, रक्त से स्नान कर !.... धरा को विशुध्द कर,!! ©श्री....✍🏻 धन्यवाद Seema Shakuni ma'am poke करने के लिए जोड़ दे शक्ति को बाण से, तीर को कमान से ! काल का ध्यान कर !! रुद्र का आवाहन कर ! भद्र काल प्रलयंकर !, अघोर शक्ति नाद कर,
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रोक लेना था मुझे !! युद्ध जो लड़े गये !। था मैं बिवश खड़ा, पुत्र मोह में पड़ा !। अतीत का जो मान था, आज रिक्त वो स्थान है, पुत्र भी नही रहे,....... "भीष्म"भी चले गये ! लुट गया सब यहाँ !, अब नही कुछ बचा। सूना है,महल पड़ा, कुरुक्षेत्र के दाँव लगा। थी हुई,भूल सब !!, हो रहा ज्ञात अब !। महाभारत युद्ध के बाद "धृष्टराष्ट्र" के हृदय में उठ रहे आत्मग्लानि रूपी सागर के लहरो की मार्मिकता को कविता के माध्ययम से दर्शाया गया है। #yqdidi #yqbaba #bestyqhindiquotes #hkkhindipoetry #श्रीsnsa #हिन्दी_काव्य_कोश
Shrikant Agrahari
आज उसकी आँखों से, पश्चयताप के आँसू! दरिया के समान बह रहे थे! व्यथित हृदय की वेदना, लहरों सा उमड़ता हुआ, झील सी गहरी हो पुनः आँखो को भर रहे थे! किन्तु भूल पर मन भविष्य में आश्वस्त,, और वातावरण सरोवर सा शांत था!...... ©श्री.....✍🏻 #hkkhindipoetry #tmkosh #हिन्दी_काव्य_कोश #yqdidi © free background #YourQuoteAndMine Collaborating with हिन्दी काव्य कोश #श्रीsnsa
Shrikant Agrahari
हवाओँ का प्रवल वेग, कदाचित उसके स्वरूप का आँधियों में परिवर्तित होना, वृक्षों का ऐसे धराशायी होना मानो बिना प्राण के शरीर! फलों का जमीन पर टपटपाना, जैसे शरीर से अंगों का अलग होना! बिजली के खम्भो का उखड़ना, छप्पर का उड़ा ले जाना.....,, चारो तरफ अफरातफरी...... धूल धूसित वातावरण......... झाड़ियों की सरसराहट........ आँधियों की उदंडता का साक्षी है।। वही दूब का नन्हा स्वरुप,, आँधियों का उपहास कर रहा है।। ©श्री...✍🏻 "टपटपाना" शब्द का तात्पर्य पेड़ से फलों का टूट कर गिरने से उत्पन्न ध्वनि से है। विशालकाय वृक्ष को धराशायी कर देने वाली आँधी, नन्ही सी दूब के सामने शक्तिहीन हो जाती है। #yqdidi #yqbaba #hindibestsadquotes #hkkhindipoetry #श्रीsnsa