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Bharat Bhushan pathak
आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते। भय तुम्हें न ही करना था,सुनो वो उलटे भय खाते।। ©Bharat Bhushan pathak आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते।
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