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Pawan Valmiki
तुसी करके अमृत वर्षा सी शिव दी चढ़ी हुई जेहर उतारी वो शेषनाग दा जहर फेला,बिच, समुंदर सारे उस जहर नो पीकेतड़पे शिव बिच समुंदर किनारे प्रभु जी ने गुटदेके अमृत दा शिवदी चढ़ी हुई जहर उतारी जय वाल्मीकि
TheHoelySaint
हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ। बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्त्मौला। नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ। जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ, मुसाफिर अजब हूँ। न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, न इच्छा किसी की, न आशा किसी की, न प्रेमी न दुश्मन, जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ। हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ! जहाँ से चली मैं जहाँ को गई मैं – शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर, झुलाती चली मैं। झुमाती चली मैं! हवा हूँ, हवा मै बसंती हवा हूँ। चढ़ी पेड़ महुआ, थपाथप मचाया; गिरी धम्म से फिर, चढ़ी आम ऊपर, उसे भी झकोरा, किया कान में ‘कू’, उतरकर भगी मैं, हरे खेत पहुँची – वहाँ, गेंहुँओं में लहर खूब मारी। पहर दो पहर क्या, अनेकों पहर तक इसी में रही मैं! खड़ी देख अलसी लिए शीश कलसी, मुझे खूब सूझी – हिलाया-झुलाया, गिरी पर न कलसी! इसी हार को पा, हिलाई न सरसों, झुलाई न सरसों हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ! मुझे देखते ही अरहरी लजाई, मनाया-बनाया, न मानी, न मानी; उसे भी न छोड़ा – पथिक आ रहा था, उसी पर ढकेला; हँसी ज़ोर से मैं, हँसी सब दिशाएँ, हँसे लहलहाते हरे खेत सारे, हँसी चमचमाती भरी धूप प्यारी; बसंती हवा में हँसी सृष्टि सारी! हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ! What does the air say? 👀 bachpan yaad aa gya :p #TheHoelySaint #Inkheart #thoughts #nojoto #nojotohindi #nojototales #hindi #wod #qanda #childhood #hawa #air #story #poem #poetry
Vikash Mehra KD
जग कहता है बुरी मुहब्बत पर मेरे सिर चढ़ी मुहब्बत, जग कहता है दुःखी मुहब्बत पर मेरे सिर चढ़ी मुहब्बत, जग कहता है अधूरी मुहब्बत पर मेरे सिर चढ़ी मुहब्बत । जग कहता है जरूरी मुहब्बत, हां जी हां जरूरी मुहब्बत ।। मै और मेरे एहसास
BlAcK CiGaReTtE
आंखें तेरी चढ़ी चढ़ी सी ये, शब भर पलकों पे क्या उठाती हो, ज़िंदगी से तिरी दफ़ा हूं मैं, आंखें किसके लिए फिर जगाती हो। *********************** "NISHANT" #nojotopoetry #nojotomusic #nojotoshayari #nojotoquotes #nojotostories #ghazal
Dev Sharma
"सिर-चढ़ी जुबान" दौलत नई , शोहरत नई ,और सिर-चढ़ी जुबान मगरूरियत ,की शाख पर ,फिर-फिर चढ़ी जुबान नई रोशनी ,की चौंध पर, यूं आंखें बिदक गई कल रात के ,कुछ हाथ थेे ,सबसे लड़ी जुबान पिछले पहर की बात है ,तब ठीक-ठाक थी कैसे हुई इक रात में ,खुद से बड़ी जुबान जो पूछ लेें ,क्या बात है ,कुछ पा लिया है क्या मेरी नाक पर, झपट पड़ी, ये नकचढ़ी जुबान आखिर गई ,वो रोशनी ,फिर रात चढ़ रही बहर-हाल ,कुछ यूं हुआ ,के गिर पड़ी जुबान!! #kavishala #सिर-चढ़ी जुबान#poetry
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