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Ek villain
हाल के समय में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा प्रदान करने वाले सीमांत गांवों को फिर से बस ने इस क्षेत्र में पर्यटन को मजबूत धारा देकर रोजगार सृजन करने के प्रयास तेज हुए हैं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के पर्वतीय जिलों में बिजली पानी सड़क स्वास्थ्य शिक्षा आदि के विशेष तौर से फोकस करने की रणनीति बनाई है धाम ही सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों के विकास से जुड़ी मेरे संबंध गांव में पलायन को रोकने और अपने से खुली हो चुकी गांव में परमाणु पुनर्वसन परसों गोलियों की तरह जोड़ दिया है सोनिया अपने कुल का 23% पर एक ही बात करते हैं अभी सरकार ने उत्तरकाशी स्थित गंगा धारा उत्तराखंड के पर्यटन का मुख्य धारा से जोड़ दिया है यह लकड़ी का पुल भारत और तिब्बत के बीच में पता नामधारी भोटिया जनजाति समुदाय इस वक्त उनके प्रयासों पर किया गया वहीं से लगे उत्तराखंड के विकास के लिए बनाई गई है जिससे लाइन और विकास के मार्ग में बाधा बन सके पर्वतीय प्रोजेक्ट से रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ चमोली जिले में गोविंदघाट दरदिया समेत प्रखंड में 27 प्रोजेक्ट के धरातल पर उतारना ही ऐसा भी बड़ी है इसे पहाड़ी राज्य में परिवहन को अधिक साधनों की व्यवसाय की जरूरत है इसमें बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर विशेष फोकस किया गया है ©Ek villain #दुर्गम इलाकों में पलायन रोकने का प्रयास #proposeday
मलंग
सरकारी शिक्षक सोचते हैं सब, शिक्षक तो पढ़ाता होगा स्कूल जाकर सिर्फ ABCD कराता होगा। जिस दिन तुम उसका हाल जान जाओगे शिक्षा की बदहाली का राज जान जाओगे कभी दाल सब्जी, कभी चावल है उठाता कभी एम डी एम का ,है हिसाब लगाता कम हो गए डाकिये, पर इनकी डाक कम ना हुई घर घर जाकर भी , इनकी नाक कम ना हुई चुनाव आते ही , ये मतदान अधिकारी बन जाते हैं जब प्रिंसिपल ना हो तो , ये प्रभारी बन जाते हैं हरफनमौला किरदार है इनका, पर घमंड बिल्कुल नहीं ज्ञान के सागर हो जायें , पर पाखण्ड बिल्कुल नहीं। नित नित नए प्रयोग, इन पर ही किये जाते हैं नवाचार के बहाने रोज नए टिप्स दिये जाते हैं प्रयोगशाला नहीं उपकरण नहीं फिर भी प्रयोग कराना है अनुदान मद प्राप्ति से पहले ही, उसका उपभोग कराना है कभी बाबू कभी क्लर्क कभी चपरासी बन जाते हैं अपने विभाग के लिए तो ये जगदासी बन जाते हैं एम डी एम की थाली गिनकर भी, कभी ये बताते हैं एम डी एम की गैस भरने की, लाइन भी ये लगाते हैं ऑडिट के समय हर चीज का, हिसाब भी देना पड़ता है विद्यालय बिल्डिंग का तो इन्हें, टेंडर भी देना पड़ता है पढ़ लिखकर ठेकेदारी की, कला तो इनमें आई नहीं इंजीनियरिंग की डिग्री भी, इन्होंने कभी पाई नहीं पर शिक्षक बन अब हर चीज में, दिमाग लगाना पड़ता है शिक्षण को ताक पर रखकर अब,हर कार्य कराना पड़ता है फिर भी नजरों में सबके ये सिर्फ, हराम की ही खाते हैं औरों के लिए तो ये स्कूल में सिर्फ, आराम फरमाते हैं बच्चा लायक नहीं फिर भी पास करना है रेड एंट्री से इन्हें हर दम हर समय डरना है स्कूल ना आये बच्चा तो ,दोष इन पर ही मढ़ना है घर जाकर हर बच्चे के, फिर पैर इन्हें ही पड़ना है नित नए नए तुगलकी फरमान इन्हें ही सुनाये जाते हैं परीक्षा परिणाम बेहतर ना हो तो आरोप भी लगाये जाते हैं अभी दुर्गम के शिक्षक का तो,हाल तुम ना पूछो कैसे जिंदा है वो वहाँ, ये राज तुम ना पूछो अपने को दूसरी दुनिया का कभी वो पाता है जान हथेली पर रखकर भी वो स्कूल जाता है ऊपर से सरकार ने इस कदर रहम किये दुर्गम विद्यालय होकर भी सुगम कर दिए अब भले ना सब्जी मिले ना मिले यहाँ चावल ना नहाने को पानी मिले ना पोछने को टॉवल फिर भी सुगम की नौकरी ये कर रहे हैं दुर्गम जैसे सुगम में , ये मर रहे हैं फिर भी किंचित गम ना करते बाधा देख कभी ना डरते मिशन कोशिश तो अब आई है ये खुद कितने मिशन हैं करते अब शिक्षकों पर प्रयोग तुम बंद करो उलझाकर इनकी बुद्धि ना कुंद करो राष्ट्र निर्माता को राष्ट्र निर्माण करने दो बख्श दो इन्हें देश कल्याण करने दो शिक्षक को शिक्षण के काम में ही लगाओ इस डूबती व्यवस्था को कोई तो बचाओ वरना वो दिन दूर नहीं जब सरकारी स्कूल सब खाली होंगे ना रंग बिरंगे फूल कोई ना चौकीदार ना माली होंगे गरीब का जो भला करना है तो सरकारी स्कूल बचाना होगा गुरूओं को स्कूलों में सिर्फ पढ़ाना होगा यकीं मानो उस दिन इक नई भोर होगी शिक्षा और खुशहाली फिर चहुँ ओर होगी। रचयिता- -बलवन्त रौतेला रुद्रपुर
Amitesh S. Anand
निरंतर जीवन जगत में जीवन बहता जा रहा बन नदी । बिना कोई उद्गम, बिन पड़ाव कहाँ से उद्गम, कहाँ निर्गम ? निक्षेप ही निक्षेप, दुर्गम ही दुर्गम अंतहीन सिलसिला । बिना कोई बांध,बिना समाधान ना धार, ना आधार कहाँ जुड़े, कहाँ बिछुड़ें ? निरख परख क्या, क्यों, कब तक है कल्पना शब्दों की तो क्यों नहीं बनती हकीकत ? अनंत से बहती आ रही थकी जीवन नदी की व्यथा का महाकाल है कहाँ ? सागर में या मरुस्थलों में सिमटेगा जहां ।
Anil Siwach
प्रभाकर "प्रभू"
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