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Manju Sharma
वो बंजारन दिखने वाली #स्त्री नाचने और गायन माहिर थी #ढोलक पर #थाप पड़ते गाने लगी #आवाज में अथाह दर्द था पड़ोस के किसी समारोह मे जब देखा, उसमे एक सुखद आकर्षण था सितारों और शीशे से जड़ित उसका लहंगा खूबसूरत बहुत था कैसे!!? अपने संगठन से दूर अपनी कला का प्रदर्शन कर रही थी पूछने पर पता चला कि किसी अंजान से प्यार करने की ये मिली सजा अपने ही बंजारा समाज़ ने उसे निकाल बाहर किया #बेकारी और #भूख से #व्याकुल होकर उसने अपना हुनर बेच दिया सोचती हूँ!! कितना कठोर होता है प्रेम... स्त्री होती है बरबाद अक्सर प्रेम में और पुरुष फैसला लेने से भी घबराता है पुरुष प्रेम तलाशता है, पूरा नहीं अधूरा जीता है स्त्री प्रेम तराशती है, अपनी कर्मठता के गुणों से ©Manju Sharma
Madhav Jha
अपने पर जरा ग़ौर हो तो काम अच्छा है, दिल के तंज़ के सिवा कहीं अपने पे हो ज़ोर तो अच्छा है । चंद मिसरे है शान में नाकाम-ए-गुस्ताख़ी की, चर्चा हो कुछ और तो अच्छा है । जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुसवाई, अब ख़ाक उड़ाने को बैठे हैं तमाशाही, तारों की ज़िया दिल में इक आग लगाती है आराम से रातों को सोते नहीं सौदाई अब ख़ाक उड़ाने को....X 2 बैठे है तमाशाही । जल भी चुके परवाने, हो भी चुकी रुसवाई । रातों की उदासी में ख़ामोश है दिल मेरा, बेहिस्स हैं तमन्नाएं नींद आये के मौत आये (सबकी तरफ से मेरे लिए और मेरी तरफ से सबके लिए ये) अब दिल को किसी करवट आराम नहीं मिलता इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई । ये महफ़िल के मेहमान्नवाज़ों के लिए जिन्हें कहानी समझ नहीं आती और उपमा में शेर हैं। तंज़ तो ग़ालिबन अखबारों के घिसे पिटे कहने को ग़ालिब बैठे हैं भर भी यहाँ भी । मगर ऐ मेरे अल्लाह जाने अक़्ल का ताला खुलता नहीं और ये बातों के इलावा उन सबको आखिर कुछ और लिखने को मिलता नहीं । चलो याद रहेगा कि मेरी किरदारी कुछ काम तो आयी। अजी साफ़गोई मैन छोड़िये बेअकलों को भी तो हँसी आयी । देख ले रीत और प्रीत यहाँ की ऐ दोस्त तेरे सिवा ये बात किसी के भेजे में न आई । जो कर चुके है तालाब-ए-ज़मज़म को काला इस जगह पे शायद इसलिए ही इस
ये महफ़िल के मेहमान्नवाज़ों के लिए जिन्हें कहानी समझ नहीं आती और उपमा में शेर हैं। तंज़ तो ग़ालिबन अखबारों के घिसे पिटे कहने को ग़ालिब बैठे हैं भर भी यहाँ भी । मगर ऐ मेरे अल्लाह जाने अक़्ल का ताला खुलता नहीं और ये बातों के इलावा उन सबको आखिर कुछ और लिखने को मिलता नहीं । चलो याद रहेगा कि मेरी किरदारी कुछ काम तो आयी। अजी साफ़गोई मैन छोड़िये बेअकलों को भी तो हँसी आयी । देख ले रीत और प्रीत यहाँ की ऐ दोस्त तेरे सिवा ये बात किसी के भेजे में न आई । जो कर चुके है तालाब-ए-ज़मज़म को काला इस जगह पे शायद इसलिए ही इस
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