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Vandna Sood Topa
#काबुलीवाला भाग9 #काबुलीवाला मैंने उन बच्चों को घर लाने के लिये रविवार का दिन तय किया। अपने बच्चों से बात करना भी ज़रूरी था,कि क्या वो दो नये बच्चों के साथ अपने परिवार के लोगों को बाँट पायेंगे। मेरा phycologist होना यहाँ भी काम आया। बच्चों की सहमति मिलना बड़ा ज़रूरी था।कहीं उन दोनों की ज़िंदगी सुधारते सुधारते ,चार बच्चे न बर्बाद हो जायें। बहुत कठिन समय था,और परीक्षा बहुत कड़ी। मगर मेरा परिवार बहुत स्ट्रांग था।रविवार को मैं बच्चों को घर लाया तो मेरा बेटा रोहित को पहचान गया। उसने मुझे बताया कि रोहित उसका वोही दो
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#काबुलीवाला भाग8 #काबुलीवाला दोनों बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हो गये थे। वापस भेजने का मतलब था कि रोहित का फिर से नर्वस ब्रेकडाउन।मैंने रोहित से पूछा, कोई रिश्तेदार है तो बता दो,मगर वो चुप रहा, बस यही कहा अंकल आप मुझे आ चल के तुझे में ले के चलूँ वाला गाना सुना सकते हो।मैंने पूछा ये गाना आपको किसने सुनाया, मेरे दोस्त ने,-कहकर वो दीवार की तरफ देखने लगा।उसकी आंखें खाली थीं। मैंने पूछा पढ़ना चाहते हो?उसने हाँ में सर हिला दिया और फिर खामोश हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ।घर पहुँचकर मैंने अपनी माँ और बीवी से
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#काबुलीवाला भाग7 #काबुलीवाला हम बड़े होते होते कितने बदल जाते हैं। क्यों किसी का दुःख हम महसूस नहीं कर पाते। मैं नियमित रूप से उस बच्चे के मन का इलाज करने लगा।वो अब मुझ पर विश्वास करने लगा था। उसने अपना नाम रोहित बताया। उसकी एक बहन भी थी जो कि अनाथाश्रम में ही थी।उसने बताया कि वहाँ पर बच्चों से काम कराते थे। दिन में सिर्फ दो बार आधा पेट ही खाना मिलता था। कभी किसी बाहरवाले से बात कर लो तो रात को बहुत मार पड़ती थी। दिन रात गालियाँ देते थे वहाँ पर लोग। अनाथालय में बहुत गंदगी है ये हम सब जानते हैं। कितने बदकिस्
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#काबुलीवाला भाग6 #काबुलीवाला मेरे माता पिता ने मेरी पढ़ाई खत्म होने के बाद मेरी शादी गाँव के मुखिया की बेटी से कर दी थी।मेरी पत्नी पढ़ी लिखी और मेरी माँ की तरह ही समझदार थी।मेरे दो बेटे हुये। मेरी माँ अपने पोतों को भी काबुलीवाला की कहानी सुनाती, और अपनी मधुर आवाज़ में आ चल के तुझे मैं ले के चलूँ वाला गीत सुनाती थी। घर की तरफ से मैं निश्चिन्त था। मगर समाज की कुरीतियाँ मेरे दिल को कुरेदती थीं।मेरे बेटे के स्कूल में एक बच्चा था, उसके पिता की अल्पायु में ही मृत्यु हो गयी थी। बहुत छोटे थे तब बच्चे ,शायद Lkg में थ
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#काबुलीवाला भाग5 #काबुलीवाला मुझे बाद में बताया गया कि उसे किसी अनाथ आश्रम से लाया गया है। कोई समाज सेविका मेरे इलाज के बारे में जानती थी। वो उस बच्चे को यहाँ लाई थी।मैं अपने केबिन में जाकर बैठ गया। सोचने लगा कि क्या हुआ होगा इस बच्चे के साथ जो कि इतना बेचैन है।लोग बच्चे पैदा ही क्यों करते हैं अगर पाल नहीं सकते तो। और ये आश्रम-इनपर कोई कार्यवाही क्यों नहीं करता। दिमाग में तरह तरह के सवाल मंडराने लगे।इंसान इतना बेरहम क्यूँ है।मुझे अपनी परी की बहुत याद आ रही थी। बच्चों को किस कसूर की सज़ा देते हैं हम बड़े, औ
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#काबुलीवाला भाग4 #काबुलीवाला जैसे तैसे मैं जल्दी से हॉस्पिटल पहुँचा।इमरजेंसी रूम में एक बच्चा बेड पर था।उसका शरीर बार बार ऐंठ रहा था। वो ज़ोर ज़ोर से कुछ चिल्ला रहा था। पर कुछ समझ नहीं आ रहा था।पता नहीं क्या कहना चाह रहा था पर कह नहीं पा रहा था।मैं उसके पास गया और अपनी कुदरती शक्ति इस्तेमाल कर उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगा। वो बार बार मेरा हाथ झटक देता। मगर धीरे धीरे मेरे प्यार भरे स्पर्श ने उसे शान्त कर दिया।उसकी आँखों में मुझे बहुत गहरा दर्द दिखा, जैसे बहुत घाव लगा हो मन पर। मैंने उससे पूछा कहानी सुनोग
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#काबुलीवाला भाग3 #काबुलीवाला मैंने उसका नाम परी रक्खा। वो बहुत कमजोर थी।मेरी माँ ने अपनी ममता लुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरी माँ कहती थी अगर ऊपरवाला आपको किसी अनाथ की सेवा करने का मौका दे तो उसे प्रसाद समझ अपनाना चाहिये।काबुलीवाला की तरह बच्चों से प्यार करना चाहिये। मैं परी को रोज़ माँ का गाना सुनता और काबुलीवाला कहानी भी सुनाता। मेरी परी ने मुझे नया नाम दिया--काबुलीवाला।मैं बचपन से ही मन पढ़कर इलाज करने लगा था,इसलिये स्कूल के बाद मेरे पिता ने मुझे शहर में phycologist की पढ़ाई करने के लिये भेज दिया।परी ह
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#काबुलीवाला भाग 2 #काबुलीवाला मेरे माता पिता प्यार के समन्दर थे। वो हर किसी का मन प्यार से जीत लेते थे।मैंने नफरत तो कभी देखी ही नहीं थी।मैं उनका इकलौता बच्चा था। मैं काफी मजबूत शख्सियत बन रहा था। स्कूल में भी अव्वल आता था। एक दिन हमारे गाँव आने वाली सड़क पर कोई एक साल की बच्ची को छोड़ गया।मेरे पिता धर्म कर्म में बहुत विश्वास रखते थे इसलिये गाँव के लोग उस बच्ची को हमारे घर छोड़ गये। मेरे पिता नें उस बच्ची के माता पिता को बहुत तलाशा पर उनका कुछ भी पता नहीं चला। बच्ची काफी बीमार थी। उसे डॉक्टर को दिखाया तो पता
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#काबुलीवाला भाग 1 #काबुलीवाला सुबह सुबह का समय था। मैं नाश्ता बना रहा था। तभी फ़ोन की घंटी बजी। मैंने फ़ोन उठाया-उधर से आवाज़ आई--सर एक बच्चे को आपकी बहुत जरूरत है। जल्दी से आ जाइये। मैंने फटाफट नाश्ता खत्म किया और हॉस्पिटल रवाना हो गया।मेरा नाम डॉ कृष्ण कुमार है।मैं एक phycologist हूँ।मेरे इलाज से कोई खाली हाथ कभी नही गया।बचपन से ही शायद मुझमे कोई शक्ति थी- जो कि मन को पढ़ना और समस्या का समाधान निकालना बाखूबी जानती थी। मेरे माता पिता काफी सम्पन्न किसान थे।मेरी परवरिश भी गाँव में ही हुई थी।मेरी माँ बहुत समझदा
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जी हाँ, मेरी कहानी का शीर्षक है-काबुलीवाला....एक बार फ़िर। हम सबने बचपन में काबुलीवाला और मिनी की कहानी सुनी और पढ़ी है।काबुलीवाला को बच्चों से प्यार था।मिनी में वो अपनी बेटी ढूँढता था।काश हम सब भी काबुलीवाला बन जायें और हर बच्चे से अपने बच्चों जैसा ही प्यार कर पायें। काबुलीवीला की कहानी के जैसे ही अगर बच्चे से स्नेह प्रेम रखा जाए तो आज के दौर के बच्चों में बढ़ रहे मानसिक तनाव को काफी हद तक सुधारा जा सकता है #काबुलीवाला