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Harshit Mishra

"क्योंकि मैं गरीब मजदूर हूँ" Untold Voice of the every migrant worker. #migrantworkers #coronavirus #labourpain #poem #stayhome #staysafe poetry #kavita

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देश की अर्थव्यवस्था का स्तम्भ हूँ,
पूंजीपतियों की पूंजी का  बृहत स्त्रोत हूँ!
फिर भी बेबस मज़बूर क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मज़दूर हूँ !

विडम्बना है सहस्रवादियों से,
समाज का शोषित वर्ग हूँ।
कैसे करूँ लॉकडाउन का पालन,
नभ के नीचे सोना ही मेरी दस्तूर है!
पुलिस की लाठी सहने को मज़बूर क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मज़दूर हूँ!

दो वक़्त की रोटी  खातिर,
प्रवासी बनने को लाचार हूँ।
अमीरों के लिए तो पानी व हवाई जहाज!
पर मैं तो पटरी पर कट कर,
घर जाने को मज़बूर हूँ!
बेकसूर को निःसहाय पीड़ा क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मजदूर हूँ! "क्योंकि मैं गरीब मजदूर हूँ"
Untold Voice of the every migrant worker. 
#migrantworkers #coronavirus #labourpain #poem #stayhome #staysafe   #poetry  
#kavita

Prachi shrivastava

"मुश्किल दौर  में लोगो ने मीलो का सफर तय किया,उस मातृत्व भरे घर के  लिए, जिस  घर  से वो  काभी  कमाने  निकाले थे " #prachishri#labourpain#pandemic#apnaGhar#nowork#myquote#travel#nofood

Nishtha Rishi

परिवार का गुजर चलाने के लिए जिसे परिवार से दूर जाना था मंजूर,
आज अपना गुजर चलाने के लिए वापिस अपने पथ से लौटने को वह है मजबूर। #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqsahitya #labourpain #lockdowndiary #bestie #nishtharishi

Rabiya Nizam

मीलों दूर गांव को बोल अलविदा आया था मैं परिवार के खातिर दो रुपए कमाने, नन्हीं बेटी के दूध के बूढ़े मां-बाप के इलाज को पैसे जुटाने। मीलों दूर गांव को बोल अलविदा मैं आया था कुछ सपने सजाने, पत्नी को दिया हुआ सुखी रखने का वचन, #Politics #yqbaba #hindipoetry #yqdidi #corona #labourpain

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कर्मभूमि
(In Caption) मीलों दूर गांव को बोल अलविदा 
आया था मैं परिवार के खातिर दो रुपए कमाने,
नन्हीं बेटी के दूध के
बूढ़े मां-बाप के इलाज को पैसे जुटाने।

मीलों दूर गांव को बोल अलविदा
मैं आया था कुछ सपने सजाने,
पत्नी को दिया हुआ सुखी रखने का वचन,

A NEW DAWN

मीलों दूर गांव को बोल अलविदा आया था मैं परिवार के खातिर दो रुपए कमाने, नन्हीं बेटी के दूध के बूढ़े मां-बाप के इलाज को पैसे जुटाने। मीलों दूर गांव को बोल अलविदा मैं आया था कुछ सपने सजाने, पत्नी को दिया हुआ सुखी रखने का वचन, #Politics #yqbaba #hindipoetry #yqdidi #corona #labourpain

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कर्मभूमि
(In Caption) मीलों दूर गांव को बोल अलविदा 
आया था मैं परिवार के खातिर दो रुपए कमाने,
नन्हीं बेटी के दूध के
बूढ़े मां-बाप के इलाज को पैसे जुटाने।

मीलों दूर गांव को बोल अलविदा
मैं आया था कुछ सपने सजाने,
पत्नी को दिया हुआ सुखी रखने का वचन,

writer girl

#Labour_Day मजदूरी कोई मजा नही है पर मजबूरी है।

©writer girl #labourday #labourpain

khushboo dabaria

ये जहां ना तेरा है ना मेरा है,
वक़्त गुजरा, ना राते कटी,
क्या सारा गुनाह मेरा है...?

ना छाव हैं खुशी की,
अब तो चारों ओर गम का साया है,
छाले पड़े पावों में अब तो ना कोई,
मरहम भी लगाने वाला है,
क्या यही कालचक्र मेरा है..?

बांधे अपने बोरी-बिस्तर ,
निकले है एक सफ़र के लिए,
जिसकी शुरुआत तो है पर अंत ना किसी ने जाना है...?

उगता सूरज देखे चले हैं,
अब तो वो भी ढलने को आया है,
बच्चे पूछे बाबा अब ओर कितनी दूर चलना है...?

शहर की चका-चौंध से तो किनारा कर आए है,
सड़के भी बनी है बेमानी,
तोड़े है सिना मेरा, पर ना दम तोड़े ये मेरी जिंदगानी ....! #Labourpain

Nehal Jaalib

#coronavirus #covid19 #labourpain 💖 ISHQ MAZ'HAB💖 Suman Zaniyan Arkan ahmad Sadique Zarna dayma NASAR

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"وباء اور مزدور"
ایک مزدور جارہا ہے گھر 
اپنے کاندھے پہ لاد کر لاشہ
اپنی خوشیوں کا آرزؤں کا
سخت گرمی میں، دھوپ کو اوڑھے
پاؤں میں لے کے کرب کے چھالے
بھوک اور پیاس سے گزرتے ہوئے 
تھوڑا جیتے اور تھوڑا مرتے ہوئے
تنگ دستی کو یاد کرتے ہوئے 
شہر کی گلیوں اور سڑکوں پر
رزق کو ڈھونڈنے وہ نکلا تھا
اس کی قسمت کے جیسے ہی شاید
آج بازار بند تھے سارے
شہر میں گلیوں میں اور سڑکوں پر
ہر جواں لب اور بوڑھے ہونٹوں پر
ایک مہلک وبا کا چرچا تھا
لوگ سہمے ہوئے گھروں میں تھے
کام دھندا بھی بند تھا سارا
بھوک سے وہ نڈھال، چلتے ہوئے
اپنی ناکامیوں پہ روتے ہوئے 
فقر و فاقہ سے تنگ آئے ہوئے 
موت سے ہاتھ کو ملاتے ہوئے
ایک مزدور جارہا ہے گھر
بھوک شاید اسے نہ جینے دے
نہال جالب #CoronaVirus #Covid19 #Labourpain 💖 ISHQ MAZ'HAB💖 Suman Zaniyan Arkan ahmad Sadique Zarna dayma NASAR

Nehal Jaalib

#coronavirus #covid19 #labourpain دانش اثری MONIKA SINGH Suman Zaniyan Ritika suryavanshi Ritika Chouhan

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वबा और मज़दूर 

एक मज़दूर जा रहा है घर
अपने काँधे पे लाद कर लाशा
अपनी खुशियों का आरज़ुओं का
सख्त गर्मी में, धूप को ओढ़े
पांव में लेके कर्ब के छाले 
भूक और प्यास से गुज़रते हुए
थोड़ा जीते और थोड़ा मरते हुए
तंगदस्ती को याद करते हुए 
शहर की गलियों और सड़कों पर
रिज़्क़ को ढूंढने वो निकला था 
उसकी किस्मत के जैसे ही शायद 
आज बाज़ार बन्द थे सारे
शहर में गलियों में और सड़कों पर 
हर जवाँ लब और बूढ़े होंटों पर 
एक मुहलिक वबा का चर्चा था
लोग सहमे हुए घरों में थे 
काम धंदा भी बन्द था सारा 
भूक से वो निढाल, चलते हुए
अपनी नाकामियों पे रोते हुए 
फेक्रो फ़ाक़ा से तंग आये हुए 
मौत से हाथ को मिलाते हुए
एक मज़दूर जा रहा है घर
मौत शायद उसे न जीने दे

निहाल जालिब #coronavirus #covid19 #labourpain دانش اثری MONIKA SINGH Suman Zaniyan Ritika suryavanshi Ritika Chouhan


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