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जीtendra
मुझे लगता है, नियति से मेरा कोई सदियों पुराना विवाद है, जब भी मुझे लगता है कि कोई मेरे साथ है, और वह मेरा साथ हमेशा देगा, तब तब नियति कुछ ऐसा गठजोड़ करती है कि उस शख्स को मुझसे पृथक करने का प्रयास करती है, फ़िर चाहे वो शख्स किसी भी रूप में मुझसे जुड़ा हुआ हो... 😭😭😭 #शख्स #पृथक
Anamika
प्रवाह का नहीं,पृथक होने का है.. पास आने का नहीं , ड़र खोने का है .. #प्रवाह#पृथक#मित्र #समय_चक्र #दोस्ती_यारी
Shivam
पंदरह बाद के कृष्ण पक्ष के दिवस घूम के जब आएं पंदरह अंधियारी रातों में चाँद रहे पर गुम जाए निशा *पञ्चदश चाँद पे वो कितनी भारी होती होंगी पंदरह ही होती हैं पर कितनी सारी होती होंगी पंदरह उजली रातों में भी वो कितना खुश रहता है, सबने खुद से सोच लिया ना किसी ने उससे पूछा है माना चमक, चाँदनी, कई आकार का वो हो सकता है पर चमक, चाँदनी, शोहरत से कोई कितना खुश हो सकता है ? (पूरी कविता कैप्शन में।) #RDV19 पंदरह दिन पंदरह दिन जब चाँद विश्व में खूब चमकता भ्रमण करे, पंदरह दिन जब चाँद चांदनी पे निज अपनी घमंड करे पंदरह दिन जब अपनी कलाओं में खुद ही गोते खाए पंदरह दिन जब करे किसानी, जोते-खाए, खुशी उगाए
Anil Siwach
मीनाक्षी मनहर
लोकप्रिय लेखिका मीनाक्षी मनहर का नया कहानी संग्रह ‘ मन के मोती’ प्रकाशित हुआ. पुस्तक का मूल्य 150 रू डाक खर्च 20 रू क्या कहते है मन ये धरती के सितारें ‘‘मन के मोती पढ़ने का सौभाग्य मिला। मीनाक्षी का कथा संकलन वेदनामयी होकर दिल की गहराईयों को छूकर एक विरहन सी उत्पन्न करता है। चाहे वो बेटी के लिए हो या माॅं के लिए या फिर किसी भी मन पर गहराये रिश्ते के लिए।’’ सरोज चावला/कवित्री, एक दोस्त ‘‘मीनाक्षी की कहानियाॅं ,मन की पीड़ भरे प
Parul Sharma
भीड़ भीड़ जब किसी विन्यास में व्यवस्थित हो जाती हैं तो एक श्रृंखला बन जाती है। श्रृंखला आकृति की श्रृंखला शब्दों की श्रृंखला रिश्तों की श्रृंखला आंदोलनों की जो दिशात्मक है, सृजनात्मक है। पर इसके लिए एकीकृत होना होगा किसी निमित्त के निबद्ध होना होगा इसका मतलब ये नहीं कि तुम परतंत्र हो गये या फिर भीड़ में खो गये। भीड़ में खो जाने से भयभीत न हो! क्यूँ कि रह किसी का अपना- अपना व्यक्तित्व है अस्तित्व है । इसलिए हरेक खुद में पृथक है और सशक्त है । तो भीड़ का हिस्सा बनो, खुद व्यवस्थित हो इसे व्यवस्थित करो। पारुल शर्मा #भीड़ जब किसी #विन्यास में व्यवस्थित हो जाती हैं तो एक #श्रृंखला बन जाती है। श्रृंखला #आकृति की श्रृंखला #शब्दों की श्रृंखला रिश्तों की श्रृंखला आंदोलनों की जो #दिशात्मक है, #सृजनात्मक है। पर इसके लिए #एकीकृत होना होगा
Shivam Mishra
पृथक पथिक जीवन मे सदैव मैं पृथक चला सारे गम परेशानी लेके भी अथक चला कभी शब्दों मे कभी नयनों मे ढला कभी खेतों मे बन के कृषक चला मैने देखी झुकी देह बुढ़ापे की कभी जवानी की देख मैं लचक चला जीवन मे सदैव मैं पृथक चला मैं तो मस्त कलंदर मैने स्नेह किया दुष्टों से भी भूतों ने भी मुझे लगाव दिया मैं तो तूफानो मे ही पला मेरी तो यारी दोनो से है जड़ हो य़ा चेतन दोनो से मुझको प्यार मिला जीवन मे सदैव मैं पृथक चला हा जो भी आया मान के मुझको अपना मैने अपनाय़ा उसको मुझे किसी से कोई शिकवा ना गिला जीवन मे सदैव मैं पृथक चला मैं पृथक पथिक हूँ मनमौजी मुझे क्या लेना देना मंजिल से मैं तो बस पथ को अपना मान चला जीवन मे सदैव मैं पृथक चला सारे गम परेशानी लेके भी अथक चला ©शिवम मिश्र
Anil Siwach
Anil Siwach
Navonmeshi_Raaj
सहे बिन कहे तेरे बिन जो गुजारी ज़िंदगी, उन लम्हों के न चाह गुनाहगार हम भी हुए| राजकुमारी #NojotoQuote जो आज आप किसी के साथ करते हैं वो एक दिन आपके साथ निश्चित होगा।आप स्वार्थवश नियम सबके लिए भले ही अलग अलग बना लें।अलग अलग व्यवहार रखें,किंतु ब्रह्माण्डीय ऊर्जा आपके किये को आपको वापस ज़रूर करेगी।सकारात्मकता सकारात्मकता लेकर आयेगी, नकारात्मकता नकारात्मकता।जैसे यदि आपने जानबूझकर किसी की अतिप्रिय वस्तु आदि उससे पृथक किया है,तो आपकी भी अतिप्रिय वस्तु आपसे एक दिन पृथक होगी।आपने जानबूझकर किसी को आहत किया है, मजाक बनाया है,अथवा इससे गंभीर भी, तो यह आपके साथ भी होगा एक दिन।अथवा आपने हृदय बड़ा रखकर किसी को क