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Kumar Deprive

गुदड़ी के लाल वंचितों की आवाज
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#पब्लिक है सब जानती है,
अपने #हमदर्द को पहचानती है!
जिसने दी #वंचितों को आवाज,
आज #सलाखों के पीछे क्यों है!
उसका #बंदानवाज मजबूर है,
मगर #दिल से कभी नहीं दूर है!
जिसने #दिया नई विचारधारा,
सामाजिक #राष्ट्रवाद हो हमारा!
उन्होंने #शिक्षा के लिए दिया नारा,
गईया बकरी #चरती जाए,
मंगरा झुनिया #पढ़ती जाए!
कोई कहता #वंचितों की आवाज,
कोई मानता #गरीबों का सहारा!
बहुत #जीवटता है उनमें
किसी के #सामने कभी नहीं हारा!
गुदड़ी के लाल ने #बिहार को दिया,
बहुत कम समय में #वैश्विक पहचान!
डूबती रेलवे #उन्होंने फिर संभाला,
जिस पर दुनिया की #विश्वविद्यालयों ने,
कई शोध करवा कर #शोधपत्र निकाला!
राजनीति में #लगातार बढ़ रहा था कद,
कुछ लोगों ने #घोटाला का कलंक लगा डाला!
फिर भी #अडिग हैं अपने विचारधारा पर,
कभी #हिम्मत उन्होंने नहीं हारा!
आज भी #गरीबों का उम्मीद है वह,
भारतीय #राजनीति का नेल्सन मंडेला!
फिर कोई है उन्हें #जगा रहा,
आगे देखो नव #बिहार बनाने 
#भाई..तेजस्वी........ आ रहा!!

 गौतम द गेम चेंजर 
सामाजिक और राजनीतिक चिंतक

i am Voiceofdehati

#वास्तविक_घटना इसे मैंने अपने कलम से #जीवटता देने का प्रयास किया है। आप भी पढ़िए और अंत में जो #प्रश्न है उसका उत्तर बताइए , इसमें #गलती किसकी है, मां कि , लोगों की , या पुत्र की ? बताइएगा जरुर। एक #अबला पुत्रवती थी,गरीब,असहाय थी वो शायद कोई दिक्कत थी उसको,इसलिए बकती थी सबको लोगों ने न कभी हाल पूछा,उल्टे पागल का तमगा दिया बेटे भी भविष्य की चिंता में,उस मां को पागल समझकर ,परदेश जाकर बस गए, #yqdidi #yqtales #मानवता

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एक अबला पुत्रवती थी,गरीब,असहाय थी वो
शायद कोई दिक्कत थी उसको,इसलिए बकती थी सबको
लोगों ने न कभी हाल पूछा,उल्टे पागल का तमगा दिया 
बेटे भी भविष्य की चिंता में,उस मां को पागल समझकर ,परदेश जाकर बस गए,
वो तो आखिर मां ही थी,वह क्रूर तो न हो सकी
लेकिन क्रूर,स्वार्थी लोगों ने उसकोपागल,आवारा और न जाने उसे क्या-क्या कहा
वह बाजार भी जाती,दुकान भी जाती
सभी के रुपए बराबर चुकाती 
तबीयत न पूछा उसका कभी
लेकिन शब्द बाणों से उसे बींधते रहे,
धन्य है वह नारी सभी विषों को पी लिया
सुनते हुए भी उसने सब कुछ अनसुना किया
अंततः वह एक दिन बीमार ज्यादा हो गई
वो बेचारी कैंसर की मारी हो गई
शायद इसीलिए वो यूं हमेशा बोलती थी
बेटे न परेशान हों,इसलिए वह यह सब झेलती थी
गरीबता उसके लिए अभिशाप बनी
बिस्तर पर पड़ी वो मौत का आह्वान करती
आखिर में वो दिन आ गया 
उस “मां" का निधन हो गया
लोगों ने कहा बहुत अच्छी मौत मिली है
पितृपक्ष में मरी वह,पितरों में शामिल हुई हैं
वाह क्या जमाना है आया 
जो जिंदगी भर कष्ट सहे,किसी ने दुःख दर्द नहीं पूछे,
मौत पर सब “अच्छा" बताकर जैसे उपहास उसका कर रहे।
कहां गई मानवता कहां गया वो ‘बेटे-मां' का प्यार
इसके पीछे थी आखिर वो कौन? सी दिवार। #वास्तविक_घटना इसे मैंने अपने कलम से #जीवटता देने का प्रयास किया है।
आप भी पढ़िए और अंत में जो #प्रश्न है उसका उत्तर बताइए ,
इसमें #गलती किसकी है, मां कि , लोगों की , या  पुत्र की ?
बताइएगा जरुर।
एक #अबला पुत्रवती थी,गरीब,असहाय थी वो
शायद कोई दिक्कत थी उसको,इसलिए बकती थी सबको
लोगों ने न कभी हाल पूछा,उल्टे पागल का तमगा दिया 
बेटे भी भविष्य की चिंता में,उस मां को पागल समझकर ,परदेश जाकर बस गए,


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